পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১১০

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লেখমালা।



शत्रुवनिता-प्रसाध-
१३ न-विलोपि-विमलासि-जलधारः॥(৫)
दिक्‌पालैः क्षितिपालनाय दध[तं देहे]विभक्तान् गुणान्
श्रीमन्तं जन-
१४ याम्बभूव तनयं नारायणं स प्रभुं।
यः क्षोणीपतिभिः शिरो[मणिरुचा-श्लिष्टाङ्घ्रि]-पीठोपलं
न्यायो-
१५ पात्त मलञ्चकार चरितैः स्वैरे[व धर्म्मासनम्]॥(৬)
तोया[श]यै र्ज्जलधि[मूल]-गभीरगर्भै-
र्द्देवालयैश्च
१६ कुलभूधरतुल्य-कक्षैः।
विख्यातकीर्त्ति र[भव]त्तनयश्च तस्य
श्रीराज्यपाल इति मध्यमलोक-पालः॥(৭)
तस्मा-
१७ त् पूर्व्वक्षितिघ्रान्निधि रिव महसां [राष्ट्र]कूटा[न्व]येन्दो-
स्तुङ्गस्योत्तुङ्ग-मौले र्द्दुहितरि तनयो भाग्यदेव्यां प्र-
१८ सूतः।
श्रीमान् गोपालदेव श्चिरतरम[वने रेक]पत्न्या इवैको
भर्त्ताभून्नैक-[रत्नद्यु]ति-खचित-चतुः सिन्धु-
१९ चित्रांशुकायाः॥(৮)
यं स्वामिनं राजगुणै रनून मासेवते चा[रुतरा]नुरक्ता।
उत्साह-मन्त्र-प्रभुशक्ति-लक्ष्मीः पृथ्वीं स-
२० पत्नीमिव शीलयन्ती॥(৯)

^(৫)  আর্য্যা।

^(৬)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

^(৭)  বসন্ততিলক।

^(৮)  স্রগ্ধরা। সাহিত্যপরিষৎ-পত্রিকায় “চিত্রাঙ্গকায়া” পাঠ মুদ্রিত হইয়াছে।

^(৯)  ইন্দ্রবজ্রা।

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