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GG अनाथवन्धु' सत्कम्म । (लेखक :-बदरीप्रसाद खन्ना ) जिसकर्म के करने से सर्व साधारण का भला ही उसी को सत्कर्मी कहते हैं। एसे कर्मी को करते समय यह ध्यान अवश्य रहै कि इसमें हमारा अपना कोई खार्थ नहीं हमें इसके फल की आकांक्षा नहीं यह केवल हामारा कर्तव्यमात्र है। हम केवल कर्मकताँ ही हैं फलाफल पर हमारा धोई अधिकार नहीं। जो स्थायी है वही सत् है और जो क्षणिक है अथवा नाशवान है वही असत् है। इसी तरह पाप पुण्य का भी लेखा है। जिस से जीव का अनिष्ट ही वही पाप है और जिस से जीव का मङ्गल हो वही पुण्य है। मनुष्थ तीन बातों में अधिकतर लिम रहता है:-संगति, कामना और कर्मी इसलिये उसे उचित है कि वह सत्संगति सत्कामना और सत्कर्मी करता रहे। कारण स्वाभाविक रोती से ही जीव बिना संगति, कामना और कर्मी के नहीं रह सकता । कर्म से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है कर्म से ही खर्ग मिलता है कर्म से ही यश प्राप्त होता है। महात्मा तुलसी दास ने भी कहा है कि ‘कर्मी प्रधान विश्खकरि राखा, जो जस करै सो तस फल चाखा” कर्म से मनुष्थ क्या नहीं पा सकता यदि तीनों लोकपर विजय की इच्छा रखता हो तो उसके लिये वह भी सम्भव है किन्तु इन वस्तुओं की प्रामि के लिये जो कर्मी बने हुए हैं उन्ही के करने पर इच्छित फल मिलता है। । संसार में जिसकी कोर्ति है वही अमर है। मनुष्य देहत्याग कर चला जाता है और अपने पीछे जो कुछ छोड़ जाता है वह सब नाश हो। (8)이 जाता है परन्तु कीर्ति और अकीर्ति रह जाती है इसका नाश जब तक समार रहता है तब तक नहीं होता । जीव के मङ्गलोह श्य से जिन्हों ने कुआ, तलाव इत्यादि खुदवा दिया है क्या उनका ' नाम कभी मिट सकता है ? जिस समय कोई पथिक हारा थका चला जा रहा है और थका वट के कारण उसे प्रयास लग आई हो एसे समय कोई कुआां या तालाव दिखाई देजाय तो उसे उस समय कितना आनन्द होता है इसका अनुभव हमारे पाठक स्वयं कर सकते है। जल पोने के अनंतर उसकी . आत्मा आशेोव्वद देने लगती हे कि जिसने इस जलाशयको खुदवाया हो वह सुरक्षी रहे। कम से कम यदि और कुछ नहीं तो वह पथिक ईश्खर को तो धन्यवाद अवजूद्ध देता है। सोचना चाहिये कि जिस सत्कर्मी ने उस मनुष्थ को ईशखर की याद दिलादी वह कितना महत्व पूर्ण है। आजकल यदि लोग कुछ करेंगे भी तो क्या कि एक मन्दिर बनवाया उसमें टाइल जड़वा दी इलेकड्रिक लाइट लगवा दी, सीढ़ी पर संग मरमर तथा रूपये जड़वा दिये। परन्तु वे यह नहीं सोचते कि इन ऊपरी आड़म्बरों से सब्र्वसाधारणा की क्या लाभ, केवल नयनटमि ? अहा यदि उसी दुव्य से अनाथबालकों को अन्न वस्त्रादि दे शिक्षा दी जाय, शिक्षा से हमारा यह मन्तव्य नहीं है कि उन्हे एम०ए, वी०ए की डिगरी से भूषित किया जाय बरन् उन्हें शिल्प, विज्ञान आदि कलाओं से सम्पन्न किया जाय जिससे वे अयना एवं अपने बन्धुगणों का हितसाधन कर