পাতা:অনাথবন্ধু.pdf/২৩৯

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可日丐呼,可ā弓可1} मेरौ उच्च प्रायः ७० बर्ष कौ हो गई । मै विगत ५० वर्षं से व्यवसाय कर रहा हूं और अपने अनुभव तथा धैर्यबल से अबभी एक बड़ा व्यवसाय चला रहाई । ईश्वरेच्छा से, भारतवर्ष, योरीप एवं एरिका के सभी महत् व्यतिीयों से मेरा व्यवसाई सम्बन्ध है परन्तु आज तक मेरे ऊपर उन महानुभावों का स्थायी विश्वास एवं श्रद्धा ज्यों की त्यों चली आरही है। मेरे हारा किसी । प्रकार के प्रपंच की सम्भावना है या नहीं यह बात भरे बहुत से पूज्य तथावन्धुगण जानने चै । ३। अन्नपूर्ण आश्रम स्यापित करने का मै' उद्योग कहेगा। आश्रम स्थापना में प्राय: एक लाख रुपयें की आवश्यकता है। कम से कम तीस पैंतीस हजार रूपग्रे ही जाने परभी मैं किसी तरह इस की आरम्भ कर सकता हूं इसके पथात् सहायक वन्द के अभिप्रायानुसार आयम के कार्थ की छति हो सकती है। ४। ‘अनाथबन्धु" से जी कुछ आय होगी वह आश्रम के कार्यों म व्यय हुआ करेगी । यदि इस पविका के पांच हजार ग्राहक ही जार्थ तो मैं समझता हूं कि फिर आश्रम के लिi अविक सहायता की आवश्यकता नर्भी ही । दूम पविका की प्रथम संग्व्या प्रकाशित कर जैसा मैं उन्माहित किया गया हूं उसने ती मेरे अभौट सिद्धि में तनिक भी संदह नहीं दीखतु। में पहिले ही लिख चुका हूं कि मेरा स्वार्थ केवल 'आनन्द” माचही है। जहां तक सम्भव है मैं 'अनाथबन्धु" की सव्वीज़ मुन्दर बना आग्रम की मेवा में उपयोगी स्थान देने में कदापि तुटि न क६गा। तिमपर मैं अपने सहायकों इारा भ खूब उत्साहित किया जा रहा हूं। बड़े हका विषय है कि बहुत से महानुभावों ने पचिका पाने ही अपना नाम ग्राहकों की ग्रेणी में उदारता पृथ्वक लिखवा मभ की अत्यंत उन्Fाहित तथा वावित किया है। उन लीगों का नाम यहां प्रकाश कrना मेरी समभा भे' अनुचित न होगा । वंगैश्खर हिज एक्सेलेन्सो लौर्ड कारमाइकल बहादुर । महामान्य महाराजा सोनपुर । महामान्य राजासाहब बामड़ा । अनरेबल सर महाराजा दरभङ्गा । अनरेबल सर महाराजा मनोन्द्रचन्द्र नन्दो बहादुर-कासिमबाजार । अनरेबल महाराज बहादुर-नसीपुर । महामान्य जेनेरल तेज शमसेर जङ्ग बहादुर राणा-नेपाल । राजा विजयसिंह धुधुरिया । सर महाराजा प्रद्योत कुमार ठाकुर बहादुर । लाला ज्योतिप्रकाश नन्दी साहब-वर्षमान । महामान्य राजासाहब-लनजीगड़। महामाननोया महाराणी साहबा, -आयीयागढ़। रायबहादुर चतुयजय रायचौधुरी-गौरीपुर। कुमार ए, पो, लाहिरो-राजसाह्रौं । बौयुत प्रभातचन्द्र गिरि-ताड़केशखर। अनरेवल स्यर गुरुदास वन्दधोपाध्याय । श्रयुत कुमार जितेन्ट्रकिशोर आचार्थ चौधुरो -ধনদাবাছা । ओयुत वावु फणीन्द्रनाथ मित्र-भबानीपुर। पण्डित एन, विद्यारत्न । योयुत वावु ज्योतिषचन्द्र चाटाउिर्ज— कलकत्ता । श्रीयुत वावु आशुतोष मजुमदार-कलकत्ता । श्रोयुत वावु एन चाटाजि । श्रीमती एस, वि, देवी-कलकत्ता । त्रीयुत लाला एस, पि, नन्दोसाहेव वजैमान। श्रीयुत राजा प्रमथभूषण देब वाहादुर লন্ডনভাত্না । श्रीयुत कुमार विचित्र सा; टिहरि, गाड़ीयाल । इत्यादि इत्यादि । जिन जिन मान्थवर महाशयों ने 'अनाथबन्धु’ का ग्राहक बन सभी उन्मोहित किया है उनमें से उपरीत सभी सज्जन दूमके पृष्टपीषक तथा अभिभावक होंगे इसमें कोई सन्देह नहीं । आशा है सब्वसाधारण अन्नपूर्ण आथम स्थापित करने के सम्बन्ध म' निवेदन । R. सभी महायता देने में कदापि पीछे न हटेंगे एवं ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि, सब खस्थ और स्वच्छन्दता पूर्वक दिन वितावें तथा मंगलमय जगदीश्वर के आशीव्र्वाद से इस महत् कार्य म' सभिलिल ही जीवन सफल करें। दंशी हाथ का शिल्प तया अय'तावश्यक नवाfवष्कृत फलदायक औषधादि पर प्रबन्ध लिख भेजने में हमलीग उमें सादर ग्रहण करेंगे। प्राचीन ममय का ग्राम्य-दूतिहास, मन्दिरों के विवरण एवं विवादि भेजन पर प्रकाशित किय जायँगे। किभी की निन्दा, अझील शब्द पूर्ण निबन्म अथवा राजनीति सम्बन्धीय लैख दूसै पत्रिका में प्रकाशित न होंगे । यदि कोई रमणी धाभिक विषयपर लेख, काव्य अथवा गीत लिख कर भेनें तो छापी जा सकती है। 'अनाथबन्धु" में छापन के लिये बहुत सी तसबौर जीवन चरित के साथ मिली हैं। आशा है अन्य सज्जन भी अपना २ जौवनवृतान्त एवं चिव भेजने में दैर न करेंगे। कुछ दिन बाद ही और एक भारतके राजालीगों के जीवनचरित्र एवं फीटी का एलबम प्रकाशित क६'गा । इसका छापना