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बूढ़वा उपदेश। (अनुवादक-रामञ्जशा उपासनो ) R धन तथा विद्याका गौरव ही मनुष्थ को आत्म , भान रहित कर देता है। उस अवस्था में दूसरों की मत तथा संगत में पड़ कर मनुष्थ और भी । अधिक भूल करने लगता है। ऐसी ही भूल समाज तथा संसार में गड़बड़ी मचादेती है। R । शिक्षा तथा संसर्ग इन्ही दोनों से मनुष्थ के चरित्र का संगठन होता है। उच्च आदर्श, शास्त्र, अध्ययन उपधुत गुरुग्रहण, पितामाता को भक्ति, उनके उपदेश एवं आदर्श ग्रहण द्वारा मनुष्थ अपने चरित्रका गठन करता है। गुरुजनों तथा पूज्थलोगों सरोखा महत् चरित्र बनालेने तथा अपना कर्तव्य साधन करने से मनुष्थ मात्र का दोष मर्दन हो जाता है। निरोग, शान्त, अभाव शून्य अऋगणी तथा अग्रवासो हो मानव जाति सुखसे जीवन बिता सकती हैं। R मनुष्थ जीवन में आश्रय नितान्त आवश्यक है। फिर समाज बन्धन भी जरूरी है, रोग में, शोक में सेवा की आवश्यकता पड़ती है, सारांश प्रत्यक मनुष्थ को अवश्वानुमार इन ‘आवश्यक बातों” की दरकार पड़ती है। कहना यह है कि जिनके पास उपाय नही, शक्ति नहीउन्हें देश के शक्तिशा ही लोगों को उचित हे कि वे उन्ह কৰন্থায়না বৰ । 8 . उच्चपद तथा उचवग की जवाबदेही बहुत । अधिक है। जो मनुष्थ दस बीत रुपये की । नौकरी से लखपति हुआ है उनको जवाबदहो औरभी अधिक है। जो दु:खी तथा निराश्रय का दु:ख मोचन करते है, ओर जो दूसरों हरा गुरु ऐसा सम्मान पाते हैं वही ईश्वर हार। यश नी बनाया जाते हैं। देश में ईज्जत भी पाते है। अभावग्रस्त मनुष्थों का अभाव दूर करना हो प्रत्येक धनी व ज्ञानी मनुष्थ का धर्म है। जिन्होने उच्चवंश में जन्म ग्रहग कर चूं।ान तथा विज्ञान में उद्यति किया है, व यदि भूवे का आहार, दुःखी का दुःख मोचन, आश्वयीन को अप्राश्रयदान अfद न करें तो उ ह क्रमः नन्दाभागी होना पड़ता है। अन्त में वे भी उपी अब क्षा को प्राप्त होते हैं। दरिद्र की प्रव या जानकर उसे आश्य दान तथा अन्नदान करना चाहिये । अप्राय समभ व्यय करना चाहिये । अपने संयम शिक्षा न कर दुसरे को संयम ट्रिक्षा नही देन' चाहिये। अवस्था समझ कर दान करना चाहिये। आय का अर्थ यथा नहीं व्यय का ना उचित है। पहिला भाग ग्रासाच्छादन के लिये, दुसरा भाग लड़के बालों तथा राजकर आदि के लिये तो मरा भाग दान, धर्मादि के लिये और चतुथ भाग जमा करना चाहिये, परन्तु हिमाब से चलेंकारण हिसाब से चलने वाले लोग कभी दु:ख नही भोगते। आय से अधिक व्यय कर वहुतेरे लोग ऋणि हो गएँ हैं। ऋणिपुरुष सदा सन्र्वदा अपमानित तथा लांछित होते हैं। अतएव समयबीतानेयोग्य काम करना चाहिये, याद रहे, इनके अतिरिक्त कुछभी व्यय न हो, अन्य या वेईल ।ो तथा अपमान का सामना का करना पड़गा।