পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১০০

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

कथासुरैडे शाखमलीतरुवण नम् । €లీ , तस्रव पन्नसरस (१) पश्विमे तैौरे राघव-शर-प्रहार-जजरित जैोण-तालतरुषणङख [२] च समीपे दिग्गज करदण्ड़ानुकारिणा जरदजगरेण सततमावेष्टित मूलतया बदमहालबाल इव [ख] तुङ्ग-खान्धावखब्बिभिरनिलवेखित रहिनियाँकेधृतोत्तरीय इव [ग] दिक्चक्रवाल परिमाणमिव ग्टज़ता भुवनान्तराखविप्रर्कौण*न शाखासञ्चयेन प्रलयकाख ताण्डव प्रसारित भुजसहस्रसुड्पतिशेखर [३] मिव AAAAAAAS AAAAAS AAASASAS SSAS विचरणकारिणां चक्रवाकनाब्बां पथियाँ मिथ नानि युगखानि अद्यापि मूति मता रामशापेन दाशरथेरभिसन्यातेज ग्रक्तानि बटहौतार्नौव भालोक्यन्त तत्र ख्रित ज जरिति शेध ! झामायमानपचपुटत्वादिति भाव ! अत्र क्रियीत्दाखड़ार । शालिन्य व्यात्वि पापै इति कविसमयप्रसिद्धिवर्शन पापस मलिनतया वण नीयत्वात् शापख च पापजन्बतथा ततुल्यतयव वच नौचित्यात् श्यामायमानपचपुटतया रामशापग्रतानीवे क्षुत्रि विवमिति बोध्यम् । पुरा किख पश्यासरसौतौरै सौतावियोगविकख राममवलोक्य चक्रवाका हसन्ति स्म । रामस्तु तदवखोक्य मलेव युद्माकम प यानिन्याँ प्रियाविर्योगी भविष्यतौं ति शृश्राप इत्याग्रिवश्झरामायणबान्त । (ख) तस्य वेति । राधवस्य रामस्य ग्ररप्रहारेण आज रितानां विदारितानां जीर्णानां पुरातनानां ताखतरुणां तालछचाणां षण्डस्य समूहख समौपे महान् जौण शाल मलौष्ठचोऽक्षौति वच्यमाणेनान्वय । अत्र प्रथमान्तपदानि शाख मलौद्वचस्य विशेषणानि । दिग्गजस्य करदण्ड शृण्ङादण्ड़म् भनुकर्तुं शैौल यस्य तेन तइदूद्वङ्गतेत्यथ जरन् छड़ी योऽजगरतदाख्यो हन्नत् सप स्तन । बद्ध निर्मित महत् थालबाल मूले जलरचणाथ खातख मृत्परिवेष्टन यस्य स ताडश इव । भव दिग्गजेत्यत्र थार्थों समासगता लुप्तोपमा भाखबाखबन्धनीत्मघणात् क्रियीत्मचा च अजीरङ्गाद्विभावैन सखुर ! पुरा शिल रामचन्द्रख बालिवधीपयोगि बलमति अवेति परौचाथै सुयौवेण प्रेरिती रामचन्द्र एकैनौव प्ररेण श्रेयौ वडान् सप्त तालतख्न् बिभेद इति रामायणम् । (ग) तुङ्गति । तुच्चम् उच्च स्वन्ध प्रकाण्डदैशम् ध सदैशञ्च श्रवलबितुम् भाथित्य खम्बमानौभवितु शौख येषां त भनिखवेल्लितर्वायुकम्पित भहिनिकॉक सप कचुक धृतोत्तरौय इव ग्टहोतीतरीयवसन इव । अत्रापि पूव वदुत्य चाखडार । (ध) दिगिति । दिकचक्रबालस्य सकलदिद्मएड़लस्य परिमाणम् इथतापरिमित ग्टझतेव बुध्यमानेनेव अथवा (ক) যে পম্পীসবোবরে প্রস্ফুটিত নীলোৎপলসমুহের প্রভাম্বারা পক্ষপুট শুামবর্ণ হইয় গেলে মধ্যবর্তী চক্রবাকনামক পক্ষিগণকে অদ্যাপি রামচন্দ্রের মূৰ্ত্তিমান অভি পিগ্রস্তের ন্যায় দেখা যায় । (খ) সেই পদ্মাকর পম্পাস রাবরের প িচমতীবে বামচন্দ্রের শবপ্রহাবে জর্জরিত পুরাতন তালবৃক্ষসমূহের নিকটে পুরাতন ব্লু ২ এক শান্মলীবৃক্ষ আছে। দিগ হস্তীর গুণ্ডের স্কার বৃহৎ ও প্রাচীন এক অজগর সর্প সেই শাম্মলীবৃক্ষের মূলদেশ বেষ্টন করিয়া থাকায় যেন প্রকাগু আলবাল নিৰ্ম্মাণ করিয়া রাখা হইয়াছে বলিয়া প্রতীতি হয় (গ) সাপকধুক (লাপের খোলস, বা খোদ) তাহার উচ্চ স্কন্ধদেশে লম্বিত থাকিয়া বায়ুবেগে সঞ্চালিত হওয়ায় সেই শাম্মলীবৃক্ষ ৰেন স্বন্ধে উত্তীয় বসন ধারণ করিয়া রহিয়াছে বলিয়া বোধ হয়, (খ) শাখা (१) तस्रव विधख खरस । (२) वाखतदखखल । (२) उशुपति प्रकखबखरमिव ।