পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১১১

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芭° कादब्बरो पूर्वभागे जतुरसाक्षिष्ट-धझमाखमिव (१) सशेषनिद्राजिग्निततार (२) चतुरुचोखयत्सु गर्ने गर्ने रुषरशय्याधूसर क्रोड-रीमराजिषु वनमगैषु, (झ) इतग्तत सञ्चरत्रु वनचरेषु, विजूश्वमागे श्रोत्रइरिथि पम्यासर कखरु सकोोलाइले, ससुशसति नतितशिखण्डिमण्डले (३) मनोइरे वनगुजकण ताहशव्द, (अ) क्रमेण च गगनतख(४) मवतरती दिवसकरवारणस्यावचूल (५) चामरकलाप इवोपलच्यमाणे मकिञ्जष्ठारागलोहितै किरणजाले, (ट) शर्न शनरुदिते भगवति सवितरि (ठ) ٭-جی. AAAAAASAAAAASA SSASAS SSAMAAAS ممر ....-..... (भी) प्रभातेति । ऊषरथय्थया चारचशिकायां शयनेन ध सरा *ध,धवर्ण क्रीड़रीमराजधी येषां ताद्वभेषु बनसगैषु प्रभातगिणिरमारुतेन प्रात कालीयशैतलवायुना आइत ताडित झा प्टमित्यथ उत्तर्मन वङ्गिना सन्तसँग असुरसेन लाक्षाष्ट्रवेण आश्लिष्टा परस्परर्सर्योजकभाबेनालिङ्गिता पद्ममात्ला खैोमपड तििथ स्य तदिव निद्राईोषबीन सहसीनौलयितुमशक्यत्वादुतप्तलाचाद्रवेश परस्प्ररगथितलीमपड शिकमिवानुभूयमाननिति भाव सीषया किखि दवशिष्टया निद्रया जिद्मिता कुटिलौञ्जता तारा कनौनिका यस्य तत् ताद्वश चचू शन शन उन्मौजयत्सू प्रसार यत्सु सत्प्त ? भत्र क्रियौत्र्मचाखड़ार । (ञ) शृति भ्रति । चणचरॆषु चरण्य़चारिषु प्राक्षिषु । श्रीवच्छ्ाििष मधुरतया क्षणंौषि णि पम्पासरख कखड्सानां कोलाइले विश प्रमाणे वईमाने सति । नति त नाटित शिखखिमखल मय रसमूही येन तअिन् मनोहरै झुतिमधुरै वनगजानां বৰখন্ধিল গ্ৰন্থ খ্ৰী-মন্ত্রী ताखवत् करतलध्वनिवत् शब्द निनादै समुल्लसति तेर्षा जागरणानन्तरमुनिष्ठति सति । अत्र लुीपमालडार । ताख कवतखध्वनि इत्यनेकाथ ध्वनिमञ्चरौं । (ट) क्रमेणेति । गगनतलमवतरत आकाशमारोइत दिवसकर सूयाँ वारणी इसौव तस्य मञ्जिष्ठा नानौषषिविग्रंष तखा रागवत् रज्ञिामवत् लीहिते रतावण किरणजाले रश्मिसमूह भवनता च.ड़ा थय भागी थख स भवष ली यश्चामरकखापथामरसमृइस्तषिान्निव उपलच्यमाणे इश्झनाने सति । उबर्दय नधिरीइती गजस्य कण समौपखम्बिन्बधीमुखे चामरकलाप इव भाकाशमधिरीइत सूर्यस्याधीमुखे किरणजाले سیاسی سیس۔۔۔۔۔۔ মদম্রাবী হস্তিসমূহের গণ্ডের উপরে বসিয়া গুণ গুণ ধ্বণি করিতে লাগিল আর কতকগুলি ভ্রমর রাত্রিতে মধুলোভে প্রস্ফুটিত কৈরবসমূহের অভ্যন্তরে (সাপলার ভিতরে) অবস্থান করিতেছিল , কিন্তু প্রভাতে সেই কৈরবসমূহের দলসকল সঙ্কুচিত হওয়ায় পক্ষ আবদ্ধ হইলে তাহার সেইভাবেই অব্যক্ত ধ্বনি করিতে লাগিল, (ঝ) ক্ষারমৃত্তিকায় শয়ন করায় বন্ত হরিশগণের বক্ষ স্থলের লোমসমূহ ধূসরবর্ণ ইয়ছিল, প্রভাতকালের শীতল বায়ু তাহাজের নয়ন স্পর্শ করিতেছিল, তখনও নিদ্র সম্পূর্ণ না হওয়ায় নয়নের তার বক্র হইয়াছিল এব নয়নের লোমগুলি যেন উত্তপ্ত লাক্ষরসে জড়িত হইয়া গিয়াছিল, (এ) অরণ্যচারী প্রাণিগণ ইতক বিচরণ করিতে লাগিল, পম্পাসরোবস্থ কলহসগণের প্রতিমধুর কোলাহল বৃদ্ধি পাইতে লাগিল, দুই করতলেব শব্দের ন্যায় বস্ত হস্তিগণের কর্ণের মনোহর শব্দ ময়ুরগণকে মৃত্য করাইয়া উখিত হইতে লাগিল, (ট) ক্রমে স্বৰ্ধদেব আকাশের দিকে উঠিতে (१) प्रकजाखलिव । (९) जिघ्रतारम् जिछािततारकन्। (३) गत्ति तबिखणिनि । (४) गगगतषबाधम् गगगमागैम्। (५) बवष्व ।