পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১২৩

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१०१ कादब्बरो पूर्वभागे छष्णागुरु (१) पर्छेनेव सुरभिणा मदेन छाताङ्गरागम्, (उ) उपरि तत्(२) परिमलान्धन परिभ्रमता (३) माय र पिच्छातपत्रानुकारिणा (४) मधुकरकुलेन तमास्त्र-पज्ञवेनेव निवारितातपम्, (ढ) आलोखपल्लवव्याजेन (५) भुजबल-निजि तया भयप्रयुप्तासेवया विन्ध्याटव्यव करतलेनापसृज्धमान-गण्डख्यल-खदलेखम्, (६) (य) भापाटलया हरिणकुल काल रात्रि-(७) सन्ध्यायमानया शोणिताद्रयेव दृष्या दतस्यत्यथ भुजगख सप स्य फणामणे फणाखितमणे चापाटख ईषच्छ`तरक्त थ गृभि किरण थालीस्तिौ छतेन ईषज्ञोहितवर्षोंझतेन भतएव पण शयनस्य द्वचपत्रषु शयनस्य अभ्यासात् पौन पुन्थात् लग्न ससप्ता पल्लवानां रागी रतिामा यत्र तेनेव शय्याभूतपण षु पल्लवानामपि स दिति भाव वामपाच न विराजमान मीभमागम् । थब पल्लवरागस्य खप्रक्रियीत्प्रचणात् क्रियीत्य चाखडार । (ख) भचिरंति । अचिराइतस्य सद्यीव्यापादितख गञस्य इक्षिन कर्पोखाभ्यां गण्ड़इयात् ग्टशैतेन भानौतेण सप्तचदख सप्तपण उघख परिमलमिव परिमल सौरभ बइतीति तेन क्वणस्य भगुरीसदाख्यसुगन्धिद्रव्यख पड नेव द्रवेशेष सुरभिणा ब्राणतप पगन्धवता मदैन दानवारिणा क्कत अङ्ग राग भङ्गविलेपन येन तम्। अब शुर्नीपीप मयीमि यी निरपेचतया ससृष्टि । (ड) उपरौति । तेन गजमदसण्वन्धौयेन परिमलेन सौरभेण अग्धी विङ्गलस्त न धतएव चपरि नदीकी परिभागे परिधमता मयरखदमिति मायर यत् पिच्छ बड़े यस्य भातपत्र तन्निर्मितच्छत्रम् अशकरोतीति तैन तमालझ तरी पल्लवनेव रिझतेण मधुकरङखन घमरखनूरुन निवारित शतपत्र्यकिरवी यस्य तम् । षत्र प्रथमा थार्थों हितौया च श्रौतौ उपमा तयी पूव वत् सरुष्टि । (थ) थाखीलेति । भुजबलेन मातङ्गस्य व बाहुबलेन निजि तया भायत्तौक्कतया अतएव भयेन प्रयुना भारब्धा सेवा परिचय्र्या वया तया विन्याटव्या कमर्या भालीख वायुवगेन सम्यक चचल यत् पझव तद्यार्जन खकौयडचजातपल्लवकन्यनच्छखेनेत्यथ करतलेन पाणिनेव अपमृज्यमाना प्रीब्कामाना गख्खजयी खदलेखा घर्नीविन्दुत्रेणिय स्य तम्। अत्र सापज्ञबैोत्ग्रेद्यालद्दार । - - سے ہی مہہ یہ تیمم۔ محسہ অত্যন্ত উন্নত ও ভয়ঙ্কর ছিল (ঠ) তাহাব বামকর্ণে অলঙ্কাররূপে একটী সর্পমণি স যুক্ত ছিল, তাহার ঈষৎ বক্তবর্ণ কিরণে বামপাশ্বও ঈষৎ বক্তবর্ণ হইয়াছিল তাঁহাতে বোধ হইতে ছিল যেন, সৰ্ব্বদা বৃক্ষের পর্ণ ও পল্লবময় শয্যাতে শয়ন করায় পল্লবের রক্তিমা বামপার্থে লাগিয়া রহিয়াছে, (ড) সদ্যোনিহত হস্তীর গগুস্বয় হইতে আনীত সপ্তপর্ণবৃক্ষ ও কৃষ্ণ গুরুর DYBBB DD BBBB B BBBB BBBBBS BBBBBBB BBB BBBB DBBBBS সেই মদজলসৌরভে বিহ্বল হইয়া মাতঙ্গের মস্তকের উপরে পরিভ্রমণ করত ময়ূরপুচ্ছ নিৰ্ম্মিত ছত্রের অনুকরণ করিয়া তাহার রৌদ্র নিবারণ করিতেছিল (ণ) মাতঙ্গের বাহুবলে নির্জিত স্বয় বিন্ধ্যাঢবী যেন ভয়বশত তাহার পবিচৰ্য্যা করিতে প্রবৃত্ত হইয়া, বৃক্ষের পল্লব কম্পনচ্ছলে করতলম্বারা তাহার গণ্ডস্থলের ঘৰ্ম্মবিন্দু সকল মুছিয়া দিতেছিল, (ক্ত) হরিণ --- (१) छायागद । (९) पतत् । (३) धमता । (४) দাবানলাবৰি मय रपिचखातपबालु कारिखा भयरपिचङचङमानुकारिखा । (५) थाखीलकश पज्ञवब्याजेन । (९) सजिललेखम् । (७) खगकुख चथर ब्रि !