পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৪১

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१९० कादब्बरो पूर्वभागे भजातपचतया च [१] नातिखिरतर चरण [ ] स्रञ्चारस्य सुडुसुडुसुखेन पततो [३] सुडुस्तियैड निपतन्तमात्मानमेकया पक्षपाख्या सन्धारयत चि ततलस सर्पण श्रमातुरस्य [४] अनभ्यासवशादेकमयि दत्त्वा पदमनवरतसुन्ग्रखख, खख खूल [५] खसत [4] ध लिध सरख स खर्पती ममाभूझनसि [s][ट]–‘अतिकष्टासु दृष्णास्वपि [८] जीवित्-[८] निरपश्ा न भवन्ति खलु जगति प्राणिनां [t e] छत्तय [१]। नाति जीवितादन्धदभिमततरमिड जगति सवजन्त नाम [१२]। तयागमनप्रदयेति भाव । इति इत्यम् । पापकारिए तमेव व्याध पदै पदै उन्ग्रेचमाण आशढावशात् खाने एाने पद्मब्रिब । उपसर्पु गन्तुम् । (ट) भजातेति । नातिस्थिरतर किञ्चिदस्थिर इत्यथ चरणसच्चार पादचेपी यस्य तस्य । मुखन वदनेन पूव कायेनेत्यथ पतता भूमौ शुठत । तिर्यक पाश्व यीरित्यथ । पचपाख्या पचमान्तन । पालिय काखि पड क्तिषु । जातश्झश्रुत्रिया प्रान्त इत्यादि ६मचन्द्र । चितितले ससप रीन गमनेन य श्रम कातिरतैन आतुरस्य पौड़ितख । उन,खख ऊरु वदनख । ख,लख ल दौघ दौर्घ यथा स्यात्तथा श्वसत अमेण श्राम त्यजत । ध,जिभिमु इमु इ पतनात् लग्न भू तखरजीभिध सरस्य ध बवण ख स सप त जलसमौप गच्छती मम मनसि अभूम् द्वय छतिरिति शेष । (ठ) किमभूदित्याह भर्तौति । थतिकटा खपि नितान्तदु खदायिकाखपि दशासु श्रवख्यासु प्राणिनां छतयी व्यवहारा जौवितनिरपेक्षा जौवलापेक्षारहिता न भवत्ति प्राणिी छि प्रातमपि क्रष्ट सङ्घनत तथापि ऊँौवनसत्तt क्षामयन्त एवेति तात्पर्यम् । षतएष हि जगति सब जन्तूनां स्रव विधप्राणिना औबितादचत् औवमादितरत् عموم حمحميم ,ميمير مسم করিয়া গলদেশ একটু উত্তোলন করিলাম এব ভয়ুবশত চকিতনয়নে চতুর্দিকু নিৰীক্ষণ করিতে লাগিলাম তখন একটা তৃণ কম্পিত হইলেও অবাব নিবৃত্তি পাইতে লাগিলাম, এই ভাবে আশঙ্কাবশত পদে পদে যেন সেই পাপাত্মাকে দেখিতে দেখিতে সেই তমালবৃক্ষের মূল হইতে নির্গত হইয়া জলের নিকটে যাইবাব জন্য চেষ্টা করিলাম। (ট) কিন্তু পক্ষ উৎপন্ন না হওয়ায় অস্থিরভাবে পদক্ষেপ হইতে লাগিল বাব বাব শরীরের সম্মুখভাগ ভূমিতে লুষ্ঠিত হইতেছিল বারংবার পাশ্বের দিকেও শরীর পড়িয়া যাইতেছিল , তখন পাখার প্রান্তভাগদ্বারা স্থির রাখিতেছিলাম, ভূতলে গমন করার পরিশ্রমে ক্লান্ত হইতে ছিলাম, অনভ্যাসবশত একটবরমাত্র পদক্ষেপ করিয়াই বার বীর মুখ উত্তোলন করিতেছিলাম, দীর্ঘ দীর্ঘ শ্বাস নির্গত হইতেছিল, ধূলিতে শরীর ধূসরবর্ণ হইয়া গিয়াছিল, এইভাবে গমন কবিতে করিতে আমার মনে হইল— (ঠ) জগতে অভ্যস্ত কষ্টকর অবস্থা উপস্থিত হইলেও প্রাণিগণের ব্যবহার জীবন নিরপেক্ষ হয় না (প্রাণিগণ জীবনের আশা ত্যাগ করিতে পারে না ), সুতরাং বলিতে হইবে (१) चनुपञ्जातपचतया अजातपचतवा गाति । (s) गातिरिक्षरचरण । (३) अधोमुखेनापत । (४) वमातुरख । (५) मुड़सु इ रह्म जस्झ ख । (६) नि श्वसत । (७) लम समभून्प्रगसि । (८) अबखाखपि । (९) खर्जीवित ! (१ ) सव प्राणिनां । (११) प्रहत्तय । (१९) सव जन्त नामेव ।