পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৪৭

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१२६ कादशबरो पूर्वभागे दण्डन व्यापृत-सव्यतर-पाणि , (ल) बिषाण शिखरोत्खाता (१) सुइहता खानऋदसुपजात-परिचयेन नैौवारमुष्टि स वहितेन कुश-कुसुम-लतायास्यमान (२) लोखइष्टिना तपोवनस्वीणानुगम्यमान, (३) (ब)\ विटप इव कोमल-वस्त्रकलाडत (४) शरीर , गिरिरिव समेखल , राहुरिवासक्कदाखादित सोम , पद्मनिकर برای مایحه ۹ گرم سیستم सुतरा विरल सान्तर पृथक पृथग भावेनीपलक्ष्यमाण यत् पाश्वथिपञ्चर पार्खाखिसमृइ तत् गथयता तत् सख्यान कुव तब बाने श्र से स्कन्ध धवखग्वते उपर्यवतिष्ठत इति तेन স্বাধীন छङ्गासमानी दौप्यमान ! अत्र किबीन्म चवीनि थी निरपेषतया संखटि । यज्ञोपवीतिनी खचणमाइ गोभिल- दचिण वाइमुड,त्य भिरीऽवधाय चष'ऽ वै प्रतिष्ठापयति दृषिश् झषमंश्चिमब भषतौल्यं च यंतीपौती भवति । (ख) दैवतेति । दैवतानामञ्च नाथ म् आग्रहीतँ समनतात् सञ्चितँ वनलतान कुसूर्म परिपूर्ण श्वत यत् पच पुट तेन सनाथ सहित शिखरम् उपरिदैशी यस्य तेन थाषाढदण्डन पलाशद्वचनिर्मितदण्डन पखामी दष भाषाढ इत्थमद्र । ब्राह्मणी व खपाशा विति मनुवचनातिति भाव । व्यापृतो भ्यासन थाश्रित सव्य तरी दचिप पाखिय ह्यश्व । (ब) विषायेति । विषाणशिखरंथ भद्राग्रेण उत्खातामुद्ध तां खानमृद झारौतस्य व खाननतिकाम् उदइता प्रहायणब धारयता उपजात परिषग्न भहि साकरलन विशेषज्ञान यस्य तेन नैौवारमुष्टिभि मुष्टिपरिमितमुनि धाश्च प्रत्षच तपि परित्षष्च वंबखिं तं परितोषितक्ष न कुशकुसुमखताभि उभग्"प्रश्व वति ौभिरित्थथ षाथाय माने संप्रमाँत् ह्निमामाने अतएव खोले चञ्चले दृष्टौ चतुषैौ यस्य तेन । (म) विटप इति । विटपी द्वचशाखेव कीमलेन कोमलत्बादैव परिधानयोग्यैनेति भाव अन्यत्र मूलादि ६थान्प्र दुखेन बरुकलेन त्वचा घाइत शरीर यस्य स । इत प्रभृति मधुकर इत्यन्त यावत् सव व दप णकारमते पूर्वोपनाखडार । थपरेषां मते तु ब्रवीपमा । गिरि पब त इव मेखलया मुञ्चनिर्मितकटितूबण मध्यभागेन च। सर वन त इति समेखल । राइ सै। हिकेय इव थसकृत् बहुवारान् थाखादित यज्ञकाले पौत पूणि मासु ग्रतय सीम सीमरस चन्द्रश्व बैंग स । पछानिकरी जलजसमूह इव दिवसकरख सूर्यख मरीचौन् रशौन्। पिबति


.--م۔ عهم...-م میت- سیسی سیستمی - مترمرم- مرده مست.

হারাতের বামম্বন্ধের উপরিভাগ হইতে লম্বিত ছিল, অত্যন্ত যুগ্ম বলিয়া তাহ যেন নূতন মৃণালস্বত্রদ্বারা নির্শিত হইয়াছিল বলিয়া বোধ হইতেছিল, অব নিতান্ত লঘু (হালক) বলিয়া সেই যজ্ঞোপবীতটা বায়ুভরে কম্পিত হইতেছিল, তাহাতে প্রতীতি হইতেছিল যেন সেই যজ্ঞোপবীত, হরীতের মNসহীন বিরল (ফfক ফাক করা ) পশ্বাস্থিসমূহ গণনা করিতে ছিল । (ল) হারতের দক্ষিণ হস্তে একখানি পলাশের দণ্ড ছিল, তাহার উপরিভাগে দেবতাপূজার জন্য সংগৃহীত বন্ত লতার কুমুমসমূহে পরিপূর্ণ একটা পত্রপুটক ( পাতার ঠোঙা ) বদ্ধ ছিল । (ব) প্রতিদিন বহুবার মুষ্টিপরিমিত উড়াধান্তদ্বারা যাহাকে স বঞ্চিত করা হইয়াছিল তাহতেই পরিচিত সেই তপোবনের হরিণ হারাতের পশ্চাৎ পশ্চাৎ গমন করিতে ছিল সেই হরিণ হারাতের স্বানের নিমিত্ত শৃঙ্গের অগ্রের দ্বারা উদ্ধ ত মৃত্তিক বহন করিয়া নিয়া যাইতেছিল, আর পথের উভয় পাশ্বের কুশ ও পুষ্প তার সম্পর্শে সেই হরিণের নেত্র, বেদন পাইয়া চঞ্চল হইতেছিল। (শ) বৃক্ষের শাখার স্থায় হারাতের শরীর কোমল বন্ধলে () विषाषीत्खातान्। (९) उपाखमान । (३) ব্যান । (४) वरकाढ़त ।