পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৪৮

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कथासुरैडे शारीोतषष'ना । १२e इव दिवसवार (१) मरीचिप , नदी तट तरुरिव सतत-जख चाखन-विमख-(२) जट , वारि करभ (३) इव विकच कुमुद दल-शकखसित दणन , द्रौचिरिव छपानु गत नक्षत्ररागिरिव चित्रभृग क्कत्तिकान्नेधोपशोभित , घर्गकाख-दिवस इव चत्रियदोष , (४) जलधर समय इव प्रशमितरज प्रसर , वरुण इव छातीदवास , इरिरिवापर्नेोत नरकभय, प्रदोषारम्भ इव सन्ध्या पिङ्गरू-(५) तारक , प्रभातकाल ग्रैौम पञ्चाग्निमध्यखी वर्षासु खखिलेशय । इति शृतेरेकत्र ऊइ मुख सन् ग्रसते थन्वत्र पूष विकासात् खा,गतौति मरौचिप । नदीतटतरुरिव सरिभौरखहच इव सततजखचालनेन त्रिसव्यमबगाइनेन विमला चरजखा जटा खप्रकचा यस्य स । पचे सततञखचालनेन सव दा स्रोतीजलप्रचाखनेन विमला स्वतिकाभ्रेौना जटा मूख यस्य स । अटा खप्रकचे मूले झचमांसिकयोज टौ । इति विश्व । करिकरमी इतिग्रावक इव विकच प्रखतु,टित यत् कुमुद करव तस्य दखशकखवत् पत्रखण्ड़वत् सिता गृधा दणना दन्ता दन्तौ च बख स ] द्ि मुभयत्रापि समानम्ं। द्रीणखापत्य पुमानिति द्रौणिरश्रत्यामा स द्रव क्कप दयाम् अनुगत प्राप्त सव व दयावित इत्यथ पदे छापेण कृपाचाय्य ण अनुगत युद्धादावनुछत । नचत्राणां राशि समूरु इव चिब्रखगख विचित्र झरिषस्य क्ष्णसारस्य घा क्ान्तिका क्ातिश्र्च तश्च बान्न क्षेष संधौऱीण उपशोभित पदे चित्र चित्रा चतुष्ड् झ। नचत्रम् स्वग स्वगशिर पञ्चम नचवम् कृतिका द्धतीय नवयम् अश्लेषा नवम नक्षत्रम् तँरुपङ्गीभित । धर्ण कालस्य यौद्मकालस्य दिवस द्रव क्षधिता सञ्चातक्षया दोषा कालादयी यस्य स पदे द्यथिता सञ्चातकासा दीषा रात्रिय ख स । दोषा राविमुखे रावाववानव्ययमप्यसौ । इति विश्व । जखधरसमयी वर्षाकाख इव प्रश्रमित योगा भ्यासैण निवारिती रज प्रसरी रजोगुणव्यापार काभादिर्य न स पचे प्रशमिती इटिपातेन निवारिती रण प्रसरी ध,जिसमूही येन यमिन् वा स । वरुण इव झत उदके जले वासी:वख्यानं येन स एकत्र तपखाविमेधरूपत्वात् चन्थन जलदेवतादिति भावः । उदकखीद पेषवासे त्यादिना उदार्दम । इरि झण इव चपनौत दूरीकत नरक मय गिरयगमनभौति नरशासुरभीतिश्ा वैन स एकत्र स्रतततपश्चरणात् षषव्रं तहषादिति भाव । प्रदॊषेी रञ्जगौ। আবৃত ছিল, পৰ্ব্ব৩েব ন্যায় হাবীতেরও মেখলা ছিল রাহু যেমন অনেকবার চন্দ্র গ্রাস করিয়া থাকে, হারাতও তেমন অনেকবাব সোমরস পান করিয়াছিলেন পদ্মসমূহের ষ্ঠায় হানীত BBBBBBB BBB BBB BB BBBB BBS BBBBB BBBBB BBBDD বৃক্ষমূল যেমন নিৰ্ম্মল হয়, তিন বেল অবগাহন করায় ২ারতের জটাগুলিও তেমন নিৰ্ম্মল হইয়াছিল, হস্তিশাবকের ছায় হাবীতেব দন্তগুলি, প্রস্ফুটিত কুমুদের (সাপ লার ) পত্রখণ্ডের স্থায় শুভ্রবর্ণ ছিল, কৃপাচার্য্য যেরূপ সৰ্ব্বদা অশ্বথামার পশ্চাদ্ভাগে থাকিতেন, হারাতের চিত্তেও সেইরূপ সৰ্ব্বদা দয়া ছিল, নক্ষত্রসমূহ যেমন চিত্রা মৃগশিরা, কৃত্তিক ও অশ্লেষ নক্ষত্রদ্ধাব শোভিত হয় হারাতও তেমন বিচিত্র হরিণের চৰ্ম্ম ধারণ করায় শোভিত ছিলেন , গ্রীষ্মেব দিনে যেমন রাত্রি ক্ষয়প্রাপ্ত হইয়া য়ায় হারীতেরও তেমন বাগদ্বেষাদি দোষ ক্ষয়প্রাপ্ত হইয়াছিল বর্ষাকাল যেমন বৃষ্টিদ্বারা ধুলিসমূহ প্রশমিত করে হারাতও তেমন ধোগাভ্যাস দ্বারা কামক্রোধাদি প্রশমিত করিয়াছিলেন বরুণ যেমন জলে বাস করেন, তিনিও তেমন জলে বাস করিয়াছিলেন কৃষ্ণ যেমন নরকান্ধবকে বধ করিয়া তাহার ভয় নিবারণ করিয়াছিলেন, AASAASAASAASMASAS SSAS SSAS (१) दिनकर । (२) विरल । (३) कलभ । (४) चपितवइदीष । (५) पिशङ्ग ।