পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৫৭

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१३ई कादम्बरो पूर्वभागे खरृत-सुनिशग-भोजन भूमिमागम्, [१] [ब] परिचित-शाखामग-कराछाष्ट यष्टि-[२] निष्काश्यमान-प्रवेश्यमान-जरदन्ध तापसम्, [ग] इभ-करभवार्तीपभुतापतितै सरखती-भुजलता-विगलिते [३] शङ्कवलयैरिव मृणाल-शकल कखाषितम्।, [ष] ऋषिजनाध्मेषकेवि षाष शिखरीत्खन्यमानविविध-कन्दमूलम्,[च] धम्बुिपूर्णं पुष्कर-युटैवनकरिभिरापूर्थमाण-विटपालबालकम्, [इ] ऋषि-कुमारकाक्कष्थमाणवनवराइ-दष्ट्रान्तराल लग्न शाल कम, [च] उपजात परिचयै कलार्षिभि पक्षपुट معتمد عيبتعد (ख) रक्तति । रशचन्दनेन उपलिप्त चित्रिते थादित्यमण्डले सूर्यविम्ब निहित सूर्याय निवेद्य खापित करवैौरकुसुम यत्र तम् । (व) इत दृति । व्रतक्षती विविप्ताििव कौर्णामि भखान लेखाभि रेखामि अलङ्कता सौमाबडौकरणात् झोभिता मुनिजगानां भोजनभूमिमाग यत्र तम् । चरणस्यर्थादिनिवारणाय भखारेखाडितत्वमिति बोध्यम् । (य) परिचितेति । परिचित पूर्वावधिज्ञातखभाव शाखामृगर्वानरी कराक्कष्टयष्या इस्ताक्लष्टदण्डन निष्काझमाना केचिद्ग्टहादहिष्फि यमाणा प्रवैश्यमाना केचिद्ग्रहमध्य पूर्यमाणाश्व जरन्ती छड़ा अन्धा तापसा यत्र तम् । (ष) इभेति । इभकरभकै करिशिगृमि यडॉपभुक्त पद्यात्पतितै कथमपि तेषां वदनेभ्यी धष्ट सरखत्या व ग दैव्या भुजलताया सकायात् विगलित पतित श्रद्धवलय रिव ह्यितौं स्वशालशकलौवि सखण्डौ कक्षाषित विचित्रौक्कतम् । अत्र जात्युत्म चालदार । तेन च वाग देव्या सतताधिष्ठान व्यज्यते इत्यलडारण वस्तुध्वनि । (स) ऋषौति । कदृषिजनाथ मुनिजनभोजनाथ म् एणक ख ग कत भि विषागृशिखरं एब्राय करण उत्खन्बमानानि उत्पाटयमानानि विविधानि कन्दा णाल,कानि पद्मादीनां मूलानौत्यथ मूलानि मूलकादौनि च {}यत्न तम् । (इ) थम्बु,पूर्ण ति । वनकरिभि भन्नु,भिजलो पूर्णनि यानि पुष्करपुटागि शुण्डाग्राणि तँ करर्ण चापूर्यमाणानि मियमाणानि विटपानां हित्वा भानौथ रोपितानां शाखानाम् श्रालबालानि मूलजलधारणखातानि थम तम् । पुष्कर पडजे ब्योबि पय करिकराग्रयी इत्यादि विश्व । f (च) ऋषौति । ऋषिकुमारक षाक्ष्यमाणानि ६नवरrहाणf द ट्रान्तराखजन्नानि शाखा कानि उतूपलानां कन्दा मूखानौति यावत् यत्र तम्। शाल कमेष कन्द खा दियमर । স্বধ্যমগুলের উপবে নিবেদিত করবীপুষ্প স্থাপিত ছিল (ব) নানাদিকে তস্মবেখাদ্ধাব মুনি গণের ভোজনস্থান বিভক্ত করা ছিল (শ) পরিচিত বানবগণ হস্তদ্বারা যুষ্টি আকর্ষণ করিয়া কোন কোন প্রাচীন অন্ধ তপস্বীকে গৃহ হইতে বাহির করিতেছিল আবার কোন কোন প্রাচীন অন্ধ তপস্বীকে গৃহমধ্যে প্রবেশ করাইতেছিল, (ঘ) হস্তিশাবকগণ অৰ্দ্ধাংশ ভোজন কবিলে কোন কারণে তাহদের মুখ হইতে নিপতিত মৃণালখগুদকল বাগ দেবীর হস্ত হইতে স্খলিত শঙ্খবলয়েব ন্তায় থাকিয়া আশ্রমটাকে বিচিত্র করিয়াছিল, (গ) মুনিগণের ভোজনের নিমিত্ত হরিণগণ শৃঙ্গের অগ্রদ্বারা নানাবিধ শালুক ও মূল উত্তোলন করিতেছিল, (হ) বন্ত হস্তিগণ জলপূর্ণ শুণ্ডাগ্রদ্বারা রোপিত শাখার (কলম গাছের) আলবাল পূরণ করিতেছিল, (খ) ঋষি (१) लेखाक़त् भोजनभूमिपरिहारम् । (२) ৰাক্সভিলিঙ্কান্নদাদ । (३) थाइखताविभूषण ।