পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৬৪

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वथासुखे जावाख्याश्रमवर्णाना १४३ यत्र च महाभारते शकुनि वध , पुराणे वायु-प्रलपितम. वय परिणामे [v] हिज-यतनम, उपवन चन्दनेधु जाद्यम, अग्नौना भूतिमत्वम , एणकाना गोत श्रवणव्यसनम , [५] शिखण्डिना ट्त्य पच्तपात , [३] भुजङ्गमानां [४] भीग , कपीनां त्रैौफखाभिलाष , मूलानामधोगति [ड] Ş [ड] धत्र ति । धत्रापि अपि वेति चाथ । महाभारत एव शकुनेदु ययाँधनमातुलस्य वध सड़देवेन इत्या श्र यते सा न तु यत्र कुत्रचित् खाने शकुने पचिणी वधी दृष्ट तेषां *ि साविरहात् । इत प्रचति मृखाना मधोगति रित्यन्त यावत् प्रत्यकवाक्य भमत्र ऽपि तात्पव्य णान्वनिरासात् शषानुप्राणिता थार्थी परिसख्याखडार । पुराणे पुराद्यशास्त्र एव वाधीदं क्षतया प्रखपित प्रक्षष शौतिषष ममिति यावत् ग तु छतावि स्वर बाबुना उन्प्रादरीगेण प्रखपित कस्यापि भनथ कं वच आसीत् तादृशरीगाभावात् । वय परिणामे वाईक्य एव द्विजानां दन्तानां पतनम् न तु महापातकादौ सति दिञानां विप्राणां पतन पातित्यम् तेषां पापखवाभावात् । दन्तविप्राखजा दिशा इत्यनर । उपवनख चन्दनेष तरुर्थव जाथ भैत्यम् न त अनेबु आय मूख ता सर्व वानेव पूण मिचाखाभात्। चऔनामेव भूतिमख भणवत्तम न तु सुनौनां भूतिमख धनसन्पइखम् धनासग्रहकारियात्। एपकागो हरिणाना मेव गीतश्रवणे व्यसनम् थारुति न तु मुनीनाम् तेषां कुवाध्यासन्धभावात् । शिखण्डिनां मय,राणामेव नृत्य नतनकाले द्वचस्य पतत्रख पात पतन वाखचित् राखखनमित्यथ न तु मुनीनां नृत्ये नृत्यदशने पचपात स्प्र हा तेषां सव त्रीव निस्त्र हत्वात् । भुजङ्गमान सर्पाथामेव भीग गरीरम न तु मुनोनो जीग खकचन्दनवलितादिसमींग जनित मुख सब भोगवण नात् । भीग सुखे स्त्रादिधतावईश फणकायधी रित्यमर । कपौनाँ वानराणामेव औफखा मिखाष विखफलेष्वभिरुचि न तु मुनौनां श्रौध नसन्पति सव फल काम्ययागादिफल तत्राभिखाष तेषां मुसुचतथा সময়েই ভ্রান্তি (পরিভ্রমণ) ছিল, কিন্তু শাস্ত্রে ভ্রাস্তি (લ)'નિ না , স্বর্গের কোন উপাখ্যান বলিবার সময়ই বস্নগণের (অষ্টবসুর) উল্লেখ হইত, কিন্তু ধনেব লোভে বমুর (ধনের) উল্লেখ হইত না , জপের সময় রুদ্রাক্ষমালাতেই গণনা (স খ্যা) ছিল কিন্তু শরীরের প্রতি গণন (আদর) ছিল না , যজ্ঞ আরম্ভেব সময়ই মুনিগণের বলা (কেশচ্ছেদন) ইহত, কিন্তু মৃত্যুম্বার বালনাশ (বালকবিনাশ) হইত না রামায়ণ শুনিয়া রামের প্রতি অনুরাগ (ভক্তি) হইত, কিন্তু যৌবনবশত রমণীর প্রতি অনুরাগ (আসক্তি) হইত না , বাদ্ধক্যবশতই মুখের বিকৃতি হইত কিন্তু ধনর অহঙ্কাব নহে। (ড) এব যে আশ্রমে মহাভারতেই কুনিবধ (য্যোধনের মাতুলবধ) শুনা যাইত কিন্তু আশ্র মর কোন স্থানে শকুনিবধ (পক্ষিবিনাশ) দেখা যাইত না , পুরাণেই বায়ুপ্রলাপ (পবনদেবের প্রকৃষ্ট বর্ণন) শুনা যাইত কিন্তু কোন গৃহে কাহারও বায়ুপ্রলাপ বায়ুরোগ বশত প্ৰলাপ) শুনা যtষ্টত না , বৃদ্ধকলেই দ্বিজপতন (দস্তপতন) হুইত, কিন্তু পাপে দ্বিজপতন (ব্রাহ্মণদিগের পতিত্য) হইত না , উপবানব চন্দনতরুতেই জাড্য (শীতলতা) ছিল, কিন্তু কোন মানুষের জাড্য (মুখত) ছিল না, অগ্নিবই ভূতি (ভম্ব) ছিল, কিন্তু মুনিগণের ভূতি (সম্পদ) ছিল না , হরিণগণেরই গান শুনিতে আসক্তি ছিল, কিন্তু মুনিগণের নহে , ময়ুরগণের নৃত্যের বেলায় পক্ষপাত (পাখা পড়িয়া যাওয়) ছিল কিন্তু মুনিগণের নৃত্যদর্শনে [१] परिणामेन । [३]गीतव्यसनम्। [३] मिखखिनीनां गीतवृत्यपषपात । [५] भुजगानां, भुजङ्गानां ।