পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৭২

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वाघामुखे जावालिवणना । ነዪዪ कालभिव चोणववंम (च) गान्तशुमिव प्रियसत्यव्रतम , (क) अबिका-करतखमिव रुद्राच-ग्रहण-(१) निपुणम ,(ख) शिशिर-समयङ्कर्यमिव छतीत्तराखङ्गम, (ग) वडवानलमिव (२) सतत-(२) पयोभच्झम , (ध) शून्धनगरमिव दोनाणाद्यविपत्रशरषम , (ङ) पशुपतिभिव भस्त्र पाण्डुरोमाझिष्ट शरीरम , भगवन्त जावाखिमपभ्खम.(च) ।) अवखोक्ध चाहमचिन्तयम -'अङ्घी प्रभावस्तपसाम ! इयमरय शान्तापि میستم تیپیجمعیسم (च) शरदिति । चौणानि वर्षाणि वयी वत्सरा यख तम् खल्पावशिष्टायुष्कमित्यथ , पचे चौच खख्यौभूत वर्ष इटियअिन् तम् । पूर्वीपमा । (क) प्रान्तशुमिति । प्रान्तनु तदाख्य चन्द्रव शैय राजानभिव प्रियम् अभीष्ट सत्यत्रत सत्यवाकसत्य व्यवहाररूपी नियमी यस्य तम् पचे प्रिय परसीत्लष्टपुत्रलात् औतिकर सत्यव्रती भौभी वख तम् । पूर्णोपमा । (ख) अग्विकेति । अग्बिकाया पाव त्या करतख पाणिमिव रुद्राचमाखाया ग्रहणे निपुण दचम पचे रुद्रस्य शिवस्य चचिषी चञ्चषैौ इति रुद्राचे तयीय इणे कौतुकवशेन पिधाने निपुणम् । पूर्णोपमा । (ग) गिणिरैति । ब्रिगिरसमयस्य शैतकाखख तपस्तपस्यौ अँगिराइतु रिति सुते भाषफाल जुनमासयी रित्यथ सूर्यनिब छात खन्ध अपि त उतरासष्ठ उत^ौयवस्र येन तम् पचे क्वत उत्तरखा दिय सङ्ग क्रमेण संसर्गाँ येन तम् तदानी रवेरुत्तरायणरभात् । (घ) वड़वेति । सतत पयी दुग्धमात्र जलव भच्य खाद्य शेषचौयच यख तम् । (ङ) शूरबति । शून्थनगरमिव खीकरहित नगरमिव दौगानां दुर्गतानाम थणाद्यानां रचकरहितानां विपन्नानां रीगार्तादौलाख अरण रचकम पक्षे दौनानि सौन्दर्यरहितानि धनाद्यानि निबासिअनईौणाणि विपब्राणां भग्रानि अरणानि ग्टइापि यअिन्। तत् । पूर्णोपमा । (च) पब्रिति। पशुपति शिवनिव भअवत् पाखनि पक्षलात् त्रेतानि यानि रीमाथि भद्मना पाखुरीमाथि च तँराशिष्ट संसप्ता गरौर यख तम । भगवन्त माछात्माबन्तम्। पूर्णीपमा । (ঃ) দিনের প্রথম ভাগ যেমন উদয়মান স্বৰ্য্যমণ্ডলদ্বারা দীপ্তিমান হয় জাবলির মুখমণ্ডলও তেমন উদয়মান স্বৰ্য্যমণ্ডলের স্তায় দীপ্তিমান ছিল (ক্ষ) শরৎকালে যেমন বৃষ্টি ক্ষয় প্রাপ্ত হয় জাবালির বয়সের বৎসরও আমন ক্ষয় প্রাপ্ত হইয়াছিল (ক) ভীষ্ম যেমন পিতা শাস্তমুর প্রিয়পাত্র ছিলেন সত্যবাক্য ও সত্যব্যবহারের নিয়মও তেমন জাবাণিব প্রিয় ছিল, (খ) পাৰ্ব্বতীর পাণিতল যেমন শিবের চক্ষুধারণে নিপুণ জাবালিও তেমন রুদ্রাক্ষের মালাধারণে নিপুণ ছিলেন (গ) মাঘমাসেব স্বৰ্য্য যেমন ক্রমে উত্তরদিকে পদার্পণ করেন জাবালিও তেমন স্কন্ধে উত্তরীয়বস্ত্র অর্পণ করিয়াছিলেন (ঘ) বা বানল যেমন সৰ্ব্বদা সমুদ্রের জল পান কর জাবালিও তেমন প্রতাহ দুগ্ধমাত্রই পান করিতেন, (ঙ) জনশূন্ত নগর যেমন সৌন্দৰ্য্যহীন ও মৎস্যহীন ভগ্ন গৃহ সকলের আশ্রয় জাবালিও তেমন দরিদ্র অনাথ ও বিপন্ন BBBBB BBD SDDDSZ BB S BBBBBB BBB BBB BBBB BBBS BDS সমূহে ব্যাপ্ত জাবালির শরীরও তেমন ভষ্মের ন্যায় খেতবর্ণ লে মসমূহে ব্যাপ্ত ছিল। (१) रुद्राचवखयग्रहण । (९) और्वानखनिव । (३) सन्तत । بچس*