পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৯০

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कॅथॉमुरैडे संन्ध्यावणना । {{è. हिमवार सरसि विकच-पुण्डरीक-सिते चन्द्रिका जखपान-लोभादवतीयाँ निखलमूत्ति'रस्वतपइ-लग्न दवाइश्खत (१) हरिण (ध) । तिमिर जलधर समयापगमानन्तरम् (२) अभिनव सित सिन्धुवार-()कुसुम पाण्डुरोरणबागतैरगाछान्त(४) ह सरिव कुमुदसरांसि चन्द्रपाद (न) । विगलित-सकलोदयराग रजनिवारविम्बमब्बरापगावगाह धौत-सिन्दूरमरावत-कुभखखमिव तत्चणमखणत (प) । शन शनच दूरोदिते भगवति हिमस्र ति (५) सुधा धूखि पटलेनेव धवलौछते ” (ध) हिमेति । बिक्षषपुष्ड्रौक्षवत् प्रस्फुटं वपद्मवत् चितॆ च तबषं तं विते च हिमशरश्चन्द्र एष चर सरोवरस्तविान् चन्द्रिका व्योत्स्रव जल तख पानखोमात् भवतैौर्णो मध्यगत इरिणथन्द्राइगतषिङ्गकपी चग भखत चन्द्रसुधव पड़ कद्द म तत्र खग्नी इढससता इव सन् निथलमूति थलच्यत खोकैरद्धखत । चपरीऽपि हरिण सरसि पानीय पातुमवतौण पद्धमग्री निश्वखतिष्ठति । यत्र चदिकाया पाणासन्ध्रवात् अश्वतस्त्र तरलतया तत्र ताइशलग्नत्वासक्षवाञ्च खाङ्गरूपकमेवालडारी न तु लुझेोपमा क्रिथैोत्चा चानयीरङ्गाक्किमावेन सहर । (न) तिमिरॆति । चभिगवानि बानि चितामि श्व तानि विन्धुबारकुसुमानि निग्र श्ङीपुष्पाणि तचत् पाड्,रौ। तथा यण वेभ्य समुद्रेभ्य चागत पदे समुद्रानपि प्राप्त हस रिव चन्द्रख्य पादै किरण तिमिरमन्थकारी जलधर समयी वर्षाकाख इव क्वणत्वसाम्यात् तस्य भपगमानन्तर निवृत्त पर कुमुदसरांसि करवमया सरोवरा भगाद्यन्त आखीडान्त अस्य झन्त च । इसा हि शरत्समये सागरादागत्य सरसि विचरन्तौति खभाव । अत्र जुप्तीपभायुगल सर्रीर्णोपमालङ्कार । (प) विगलितेति । विगलित क्रमेणीह गमनादपद्धत उदयराग उदयकाखौनी रतिमा यख तत् रणनिकर विश्व चन्द्रमण्डखम् अस्वरापगा आकाशनदी मन्दाकिनौ अग्बररुपापगा च तखाम् जवगाईन झञ्जनेन चौत प्रचावित सिन्दूर थस्य तत् तथीनाम् ऐरावतख च तवण न्द्र इतिन कुभखखमिव तत्चण लीकरखच्यत । भत्रीपमाखडार । (फ) अनौरिति । एवश्व,तसमये झारीत छाताड़ार मामादाय पितर जावाजिमुवाचेति वच्यमाणेगान्वय । किचेति चाथ । हिमखुति तुषारवषि णि चन्द्र दूरीदिते सति । तथा जगति भुवने सुधाया विलेपनद्रव्य ও হংসের দ্যায় ধবলবৰ্ণ জ্যোৎস্না, চন্দ্র ও নক্ষত্ৰগণে পরিশোভিত আকাশ হইতে ভূতলে পতিত হইতে লাগিল। (ধ) প্রস্ফুটিত শ্বেতপদ্মের ন্যায় শ্বেতবর্ণ চন্দ্ররূপ সরোবরে জ্যোৎস্নারূপ জলপান করিবার লোভে অবতীর্ণ হইয়া একটী হরিণ তাহার অমৃতরূপ কর্ণমে মগ্ন হইয়াই ষেন নিশ্চলদেহ হইয়া রহিয়াছে বলিয়া দেখা যাইতে লাগিল। (ন) নূতন নিসিনাফুলের মত শ্বেতবর্ণ এবং সমুদ্র হইতে আগত হংসগণের স্থায় চন্দ্রের কিরণসমূহ, বর্ষাকালের স্থায় অন্ধকাররাশি দূরীভূত হইলে কুমুদ (সাপল) পবিপূর্ণ সরোবরসমূহে পতিত হইতে লাগিল। (প) উদয়কালের সমস্ত রক্তিম দূৰীভূত হইলে চন্দ্রমওলটা, মদাকিনীর জলে অবগাহন করায় মস্তকের লিঙ্গুর প্রক্ষালিত হইয়া গেলে, ঐরাবত হস্তীর কুম্ভস্থলের স্থায় সেই সময়ে দেখা যাইতে লাগিল। (ফ) ভগৱান চন্দ্র, ধীরে ধীরে আকাশের অনেক দূরে উঠলেন, তখন সুধানামক বিলেপনদ্রব্যের চুর্ণসমূহের ছায় (সাদা পাউডারেব মত) চন্ত্রের আলোক পৃথিবীমণ্ডলকে (१) थाखख्यत। (९) समयानन्तरन्। (३) सिखुवार । (५) अवागभन्त अग्रअन्त । (५) हिमवतिषु,ति हिमशैषिर्तौ । २९