পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৯৫

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१७४ कादब्बरो पूर्वभागे कारै केतको-ध,लि-ध सरेरुपगुख्युको रुपशीभिता, () (ङ) मद सुखर-मधुकरपटखान्धकारित (२) निष्कटा, (ज) सफ रदुपवन लता-कुसुम परिमख सुरभि समौरणा, (भी) रणित-सौभाग्यघण्टरालोहिताशुक पताक राबच्च रक्तचामरीविदुममयै प्रतिभवनम् (३) उच्छुितैर्मकरादित (४) मदन यष्टिकेतुभि (५) प्रकाशित मकर ध्वज-पूजा, (अ) सतत-प्रष्ठताध्ययन ध्वनि-धौत कखाषा, (ट) स्तिमित सुरज रव


सुवण निर्किता थमला खच्छा कलशा शिखरेषु उपरिभागेषु येषां त तथा अनिलेन वायुना दीखाविता सञ्चालिता सितध्वजा शुश्वपताका येषु त चिक्र शेफपताकासु खटाङ्ग'ऽपि ध्वजोऽस्त्रिया मिति ब्रिकाण्ज्ज#ीच चतएव पतन्तौं अश्वगङ्गा याकाणगङ्गा येषु तँ तृषारगिरिशिखर हिमाद्विश्रव्र रिव अमरमन्दिर छोच्चदैवग्टझै क्राि जितानि शोभितानि शग्झाटक्षागि चक्षुष्यथानि यस्यां च यङ्गाटक्षचतुष्पथॆ इत्यमरः । बक्न लुप्तोपमीपमधीरनीतःि भावेन खडर । T (द) सवैनि । सुधावेदिकाभि पिपासुजनीपवेगनार्थाभि चुण लिप्तपरिष्क तभूनिभि उपीभितानि उद पानानि कृपा येषु तँ पु स्वान्धुप्रङ्गी कूप उदपानन्तु पु सि वा । इत्यमर । अनवरत चलिर्तचणि तँ जखचलौथनत्र जलकुम्भनिर्मितयनच सिच्यमानानि यानि हरितानि हरिद्वर्णानि उपवनानि तान्ब व निविड़यामत्वा दन्धकारा येषु त तथा केतकौनां कुसमाना धुलिमि पराग ध सराथि ध्रुखवर्णनि तै उपशुष्यक ग्रामान्तौं उपशोभिता । ग्रामान्त उपश्यश्च स्य। देित्यमर । (ज) मदैति । मदैन मधुपानजनितमत्ततथा मुखर शब्दायमान यन् मधुकरपटल भमरसमूहर्खण थन्धकारिता भन्धकारविशिष्टीक्वता निष्कुटा भवनसमैौपखीपवनानि यखां सा । एतेन नानाविधकुसुमयीभातिशय सूचित । ग्य्द्दारामास्तु निष्कुटा इत्यमर । (भी) खप्त रदिति । समुरन्तौनां वायुभरेण स्यन्दमानानाम् उपवनलताना यानि कुसुमानि तेषां परिमलेन विमद्द गन्धन सुरभिघ्राणतप ण समौरणी वायुय स्यां सा । (अ) रणितेति । रणिता शदिता सौमाग्यघण्टा सौभाग्यसूचिका घण्टा येषु तँ आलीहिता सम्यग সিদ্ধ গন্ধৰ্ব্ব বিদ্যাধর ও নাগগণের নানাবিধ চিত্র বহিয়াছে , (চ) প্রত্যেক চতুষ্পথের (চৌরঙ্গীর) নিকটে অত্যন্ত উচ্চদেবতার মন্দির আছে , সেগুলি ক্ষীবোদসাগরমন্থনের সময়ে DBBB BB DDBBB DBBBBBB BB BBB BBS BBB BBBB BBBBB BBB কলশ স্থাপিত আছে, বায়ুবেগে তাহার শ্বেতপতাকা সকল আন্দোলিত হইতে থাকে, তাহাতে উপরে আকাশগঙ্গা পতিত হইতে লাগিলে হিমালয়ের শৃঙ্গসকলের ন্যায় সেই দেবমন্দিরগুলি দৃষ্টিগোচর হইয়া থাকে, (ছ) নগরের প্রান্তভাগ কেতকীকুমুমের রেণুতে ধূসরবর্ণ হইয়া যায় এব সেইস্থানের উদ্যানসমূহ অবিশ্রাস্ত ঘূর্ণমান জলষন্ত্রের জলে সিক্ত হইতে থাকে এবং সেখানে শুভ্রবর্ণ বেদিতে পরিবেষ্টিত বহুতর কুপ আছে , (জ) বাসভবনের নিকটে বহুত্তর উস্তান আচে, ভ্রমবগণ মধুপানে মত্ত হইয়া ‘গুন গুণ রব কবন্ত সেই উষ্ঠানসমূহ অন্ধকার করিয়া অবস্থান করে , (ঝ) উপবনের লতাগুলি বায়ুভরে দুলিতে থাকে, তখন কুমমসৌরভে বায়ু বড়ই তৃপ্তিকর হয়, (৫) গ্র ্যেক বাটতে প্রবালমালাবােটত মক্ষরচিহ্নে চিহ্নিত (१) विभूषिता । (१) कुखान्धकारित । (३) प्रतिग्रन्। (७) नकराखेँ । (५) सदणबष्टिकैतुभि ।