পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২০৩

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१८२ कादब्बरो पूर्वभागे जलधि (१) मथनवेलेव महाघोष-पूरित दिगन्तरा, (ण) प्रस्तुताभिषेक-भूमिरिव (२) सब्रिहित-(३) कनकघट (४) सहस्रा, (त) गौरोव महासि हासनो चितमूति , (थ) भदितिरिव देवकुल सहस्रसेव्या, (द) महावराह-लीलेव दर्शित हिरण्खान्तपाता, (ध) अास्तोकतनुरिव (५) आनन्दित-भुजङ्गलोका, (न) इरिव ग عليه. يسمي بهير باسمبر ممبہمبستمبر तख्तान् पशून् निइत्य सग्टद्य खापित चारुचामर चमरस्वगण सुन्दरलीमभि लागन्नड़ तिदन्त श्र धवखानि ग्टछाणि यखाँ सा । पूर्णाँपमा । (ढ) वैिति ! षिस्य अनन्तन गस्य तनु शरीरभिव सदा आसम्रा सब्रिहिता यसुधाधर, पब ता यस्या सा । पश्ले सदा सवदा भासन्नाम् उपरिस्थित वसुध धरतौति सा । पूर्णीपमा । (थ) अखधैौति । जलषिमथनवलैव समुद्रमन्थनसमय इव মছালীন ৰিমান্তানী ৱিদি জিয়ান্ধসময়ল ध्वनिभिरु पूरितानि दिगन्तराशि यस्या यखाञ्च सा । पूर्णीपमा । (त) प्रतुितिति । प्रस्तुत चारब्धी यॆीऽ'-षक राशा'भषॆकखतश्य भूमि यागमिव संझिञ्झितं सख्यापेित झशक्षा घटसरुख खण कलससमूही यस्याँ सा एकत्र भबनइारतीरणशश्वमूलेषु मङ्गलाथ म् अन्यत्र स्नानीथजलसश्वाराथ मिति भाव । पूर्णोपमा । (थ) गौरीति । गौरी दुग व महासि हासर्न विशाल सि हाकारासन उचिता खर्थीग्या परममनीइरैत्यथ मूत्ति यखा सा पचे महासि हरूपे आसने उचिता खितियीग्या मूति य स्या सा । पूर्थीपमा । (ड्) षदितिरिति । चदितिद बमालेव दूषकुजचह्रिश्न दॆवालयसमूह वेश्य प्रद् चwक्षरषादिना विबभौश्च यत्र सा पचे देवकुखसहस्रण दैवव प्रसमूहेन सेव्या प्रसूतित्वात् सेवनौया । पूर्णोपमा । (घ) महति । मझाबराहस्य नारायणढतौयावतारस्य खौखा वष्ट व दशि त खेखाकाले जन प्रदशि त हिरणक्षाच्याणां खण निचितपाशकानां पाती निचेपी यस्यां सा पचे दशिती हिरण्य़ाचस्य तदाख्यस्य हिरण्झकशिपुधातु पाती विनाशी यया सा । पूर्णोपमा । पुरा नारायणेो वराइमूत्ति परिग्zन्ना पृथिवीमुर्तीलय पर गिरिगृहागo हिरण्ाद्य निइतवानिति भागवतवार्ता। (ग) आर्यौकेति । चाखौकख तदाख्यख मुने तनुराकृतिरिव आनदित विलासीपर्योगिप्रचुरतरग्रहश्राखि - میم ও হস্তিদস্তে পূর্ণ থাকায় শুভ্রবর্ণ থাকে উজ্জয়িনীতেও তেমন বহুতব শুভ্রবর্ণ গৃহে ও ছে তাছার মধ্যে হস্তিদন্তে সুন্দর চামব সকল ঝুলান আছে , (চ) অনন্তনাগেব শরীরে যেমন সৰ্ব্বদা পৃথিবী অবস্থিত, উজ্জয়িনীর নিকটেও তেমন সৰ্ব্বদা পৰ্ব্বত অবস্থিত (৭) সমুদ্র মন্থনের সময় যেমন মহাশন্ধে সকল দিক পূর্ণ করিয়াছিল গোপগণের পল্পী সকও তেমন উজ্জয়িনীর সকল দিক পূর্ণ করিয়া রহিয়াছে , (ত) রাজার অভিষেকের স্থানে যেমন বহুতর স্থবৰ্ণকলস সংস্থাপিত হয় উজ্জয়িনীতেও তেমন প্রত্যেক গৃহের তোরণের মূলে সুবর্ণবলস সংস্থাপিত আছে , (খ) দুর্গব মূৰ্ত্তি যেমন নিজবাহন মহাসিংহে উপবে।uনর উপযুক্ত উজ্জয়িনীও তেমন বৃহৎ সিংহাসন মুহের উপযুক্ত , (দ) দেবগণ যেমন মাত অদিতির সেবা করেন উজ্জয়িনীর জনসমূহও তেমন দেবালয়ের সেবা করে , (ধ) নারায়ণ বরাহমূৰ্ত্তি ধারণ করিয়া যেমন হিরণ্যাক্ষদানবের বিনাশ দর্শন করাইয়াছিলেন, উজ্জয়িনীর লোকও


(i) অলিম্বি (૨) भूमौरिव वैलेव । (३) सदाखतिक्ति । (४) घटक ! (५) कछुरिव ।