পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২১৯

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१९८ काढग्बरो पूर्वभागे व शाना शिलीमुखचति , (१) देवताना यात्रा, कुसुमाना बन्धनस्थिति , इन्द्रियाणा निग्रह वनकरिणा वारिप्रवेश , व्रतिनामग्निधारणम, (२) ग्रहाणा तुलारोहणम प्रगस्यादये विषशुद्धि , कैश नखानामायतिभङ्ग जलधर-(३) दिवसाना नमनम् न तु लोकानामवन त भ६ख्याक्रास सव षामेव महीद्यमेन धनाद्यज नात् । व शानां वैण नामेव ীিমূৰ, श्व मर चतिाव वरविधानेन हानि न तु खोकानां णि ौिमुख र्वाण चतिरवदारण युज़ाभावात् । दैवतानामेव यावा पूजायामुतसव न तु स याना धावा बुहाथ गमन विपघामावात् । याव्रीतसवं गतौ हभौ इति ईमचन्द्र । कुसुमागां पुष्पाणामेव ৰমন নৱ ভনিল নৰান্ধন बध्वंने बन्धनग्ट है कारागारी स्थिति अपराधामावात । इन्द्रियाणां मन प्रभृतीन मेव निग्रईी योगाशुष्ठानेन दसनम् न तु लोक नां निग्रहो दमन दुव्य वहाराभावात । वनकरिणां वन्यइक्षिनामेव वारौ बन्धनस्थाने प्रवेश शिचा ५ प्रवेशनम् न तु खोकाना वारिणि जगं प्रवेश यदाइ पापौ स्या तटा मग्नौ भवय भि d शपथनाटतरग पापाभावा । वारि क्लौवर नौरयी । वा२ि६ ठयां सरस्द त्यां गशब-धनभुश्यपि ॥ इति हॆम नन्द्र । व्रतिनाम् अग्निह्रीवाटिनियमवतामेव धन्धुिप्रण इंीमाथ मनिग्रच्हषम् न तु ीकानां यद्य-पापी खा तटाग्निना दग्धइस्त भवथ मिति शपथेनाभिधारण पापाभावात । यहाणां रव्यादौनामिव লুলাৰীত্বা লুলাৰাখা বাদলম ল ল लोकानां যযন্ধ সাল স্থা নহা નીલગામો भवयमिति शपथेन तुलादण्ड़ा रोइण पापामा आत । भगस्यादये सौरमाद्रमासणषं भगख्यनचत्रीटय एव முட்டிைே স্মলনা_ল ন पापीदयसशबै जीकान विषेष यद्यष्ट पप्ले ह्य त । विषपानेमाचेनुनी भवैयमिति ग्रपथुपु कविषपानेन राडि निष्पापताख्यापन पापस श्याभावाe । विषन्तु गरत्न गोयेऽतिविषायाच योषिति । इति मेदिनौ । कैश्यनखानामेव अापतेर्नोघ ताया भङ्ग-क्व दैन् विन्नीप न तु लोकानामायतेरुत्तरकाएँस्य उत्तरकालवत्ति न सुखस्य मङ्गो नाश शृभाट्टटवस्वात ! जलधरादवसाना मेघाच्छ्व्र िनानामेव मलिनास्बरत्व मेघाइतत्वात मलिनाकाशत्वम् न तु लोकानां স্বভাবেব তীক্ষুত ছিল না , ধ্বজদণ্ডেবই উন্নতি (উত্থান) ছিল কিন্তু লোকের উন্নতি (ঔত্য) ছিল না , ধনু কবই অবনতি (গুণ।পর্ষণেব সময় নমন) হইত বিস্তু লোবের অবস্থাব BBBB BBB BS DDSDD SttDDg SBBBBBS BBBS DB BB BBBB BB কাহাবও শিলীমুখম্বারা ক্ষতি (বাণধাবা বদবেণ) ছ ত না , দেৱগণেরই পূজাদি উপলক্ষে যাত্রা (উৎসব) হইত কিন্তু যুদ্ধার্থ সৈন্ত গণের যাত্রা (প্রস্তান) ত না , পুষ্পসমূহেবই বন্ধনে (বুস্তে বোটায) অবস্থান ছিল কিন্তু লোকের বন্ধনে (কাবাগারে) অবস্থান ছিল না , ইক্রিয়গণেবষ্ট দমন ছিল কিন্তু লোবে ব দমন ছিল ( , বন্ত হস্তিগণকেই বাবতে ( স্কনস্থানে) প্রবে ; করান হইত কিন্তু পাপের শপথপূৰ্ব্বক কোন লোকের জলপ্রবেশ ইষ্টত না , ব্ৰতি গণরই অগ্নিগ্রহণ ছিল কিন্তু পাপেব শপ পূৰ্ব্বক কোন লোকের অগ্নিগ্রন্ণ ছিল না , গ্রহ গৱেষ্ট তুলাবাহণ (তুলাবাf ত গমন) ছিল বিস্তু পাপেব শপথ পূৰ্ব্বক কোন লোকের তুলারোহণ (তুলাদণ্ডে আবোহ৭) ছিল না , অগস্তনক্ষত্রেব উদয়ে বিধশুদ্ধি (জলের নিৰ্ম্মল ত) হইষ্ট কিন্তু পাপে শপথপূৰ্ব্বক কোন লোকের বিষশুদ্ধি (বিষপান করিয়া নিষ্পাপত প্রকাশ) হইত না , কেশ ও নখসমু বই আযতিভঙ্গ ( ছদন করাষ বৃদিব ব্যাঘাত) হইত কিন্তু লোকের আয় িভঙ্গ (পরবর্তিকালে মুখভোগের অভ ব) হইত না মেঘাচ্ছন্ন দিনেষ্ট (१) शिलीमुखमुखचति । (९) क्वचित व्र तनामसिधारारणम् इति पाठ क्वचिदेष पाठी नास्ति । (३) অন্তৰ i