পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২২৩

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२०२ कादब्बरो पूर्वभागे यो नरकासुर-शस्रप्रहार-भीषणे (१) भ्रमन्प्रन्दर-नितम्व-निद्दय-(२) निष्यष कठिनासपैौठे नारायणवच खलेऽपि खितामदुष्करखाभाममन्धत प्रज्ञाबलेन खच्छीम् (ग) । यञ्च समासाद्य (२) दशितानेकराज्यफला लतेव महापादपम् (४) अनेक प्रतानगहना विस्तारमुपययौ (५) प्रज्ञा (घ) । यस्य चानेक-( ) चारपुरुष सहस्र-सञ्चार निचिते (-) चतुरुदधि-वलय بیمه میدهیم. - سمیر • سريعي مینماییم. (ग) य इति । य शुकनास अज्ञाषलेन बुद्धिसामध्य न नरकासुरस्य शस्त्रप्रहारेण भीषणे चतचिज्ञयालितथा भयडरे तथा धमत समुद्रमथनसमये घण मानख मन्दरख पव तख यी नितग्वी मध्यर्दश्यतख णिइ यनिष्प्रेषेण निधुरधष येन कठिने थ सपीठे पौठवदिशाल खान्धदय यस्य तादृशे नारायणस्य वच खले खितामपि खस्नीम् भदुचारी खाभी यस्यास्तां सुखमामित्यथ भमन्यत । भव नरकासुर शस्त्रप्रहारेणापि यां लब्धु, णायकत् या च मन्दर निर्थवऐनापि न ययौ तामपि लक्षौमदुष्करलाभाममन्थत इत्यथस्य प्रथमविीषणइयेन सूचनाप्नापुष्टाथत्वदीष । छाण न भूमिपुत्री नरकासुरी निइत इति इरिव अवार्ता । समुद्रमथनब्बत्तान्तख ज्ञा । (घ) यमिति । खता मछापादप विशाखद्वचमिव प्रज्ञा बुद्धि यच्च शुकनास समासाद्य प्राप्य दशि तानि चनेकानि राज्यानि नतनानेकराज्यखामा इत्यथ फलानौष बया सा । खतेवैद्युपमानुसारादुपभितसमास एव न्याय । तथा अनेक प्रतानौ पल्लव गहना निविड़ा बुडिपचे तु अनेकेपु विषयेषु प्रतानेन प्रसारैण गहना थपरंदु गैमा सतौ । अत्र लुमीपमासडीर्खा पूर्णोपमाखड़ार । (ड) यखति । अनेकस्य चारपुरुषाणां गुप्तचराणां सइस्रस्य सञ्चारेण विचरणन निचिते ब्याप्त चत्वारि م-میہ، ছিলেন। (খ) বৃহস্পতি যেমন ইন্দ্রের শুক্রাচার্য্য যেমন অমুররাজ বৃষপৰ্ব্বার বশিষ্ঠ যেমন দশরথের বিশ্বামিত্র যেমন রামচন্দ্রেব ধৌম্য যেমন যুধিষ্ঠিরের দমনকমুনি যেমন ভীমরাজার এবং সুমতি যেমন নলরাজাব মন্ত্রী ছিলেন শুকনাস ও তেমনই তারাপী ডুর মন্ত্রী ছিলেন , আর তিনি সকল কাৰ্য্যেই বুদ্ধিপ্রয়োগ (মনোনিবেশ) করিতেন। (গ) নরকাসুরের অস্ত্রপ্রহারের ক্ষতচিহ্নে যে বক্ষ স্থল ভয়ঙ্কব হইয়াছিল এবং সমুদ্রমন্থনের সময় ঘূর্ণমান মন্দবপৰ্ব্বতেব নিষ্ঠুর ঘর্ষ।ে যে বক্ষ স্থলের নিকটবৰ্ত্তী স্কন্ধস্বয় কঠিন হইয়াছিল, লক্ষ্মীদেবী নারায়ণের সেই বক্ষ স্থলে বাস করি7েও যিনি বুদ্ধিবলে উহাকে লাভ করাও দুষ্কর নহে বলিয়া মনে করিতেন। (ঘ) এব কোন লতা বৃহৎ একটা বৃক্ষ পাইয় তাহাব অবলম্বনে ফল জন্মাইয়া নুতন নূতন পল্লব নিবিড় হইয়া যেমন ক্রম বিস্তার লাভ করে সেইরূপ বুদ্ধি যে শুকনাসকে পাইয়া নুতন নুতন রাজ্যলাভ দর্শন করাইয়া এব বহুতর বিষয়ে প্রবেশ করায় অন্যের দুজ্ঞেয় হইয়া ক্রমে বিস্তীর লাভ কবিয়াf ল । (ঙ) অ1র দি জর গৃহে কোন ঘটনা ঘটি ল তাহ যেমন লোকের অজ্ঞাত থাকে না (१) शस्त्रभौषणं । (२) मन्दरनिद्द य । (३) यच्चासाद्य । (४) पादपम् । (५) उपाययौ । (६) यखानेक । (७) परिचिते विचिते ।