পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২৯৩

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

২৩২ कादम्बरो पूव भागै सूत्कारेण (१) अतिजवापोतमनिलमिव नासिवाविवरेणेोइमन्तम्, (इ) अन्त खलित-मुखर-खलोन-खर-शिखर चीभ-जन्मनी लूालुाजुलुभुव फेनपल्लवान (२) उदधि-निवास परिपीतामृतरस गण्ड्षानिबीदृगिरन्तम्, (च) षत्यायत निर्नासतया (३) समुत्र्कोणमिव वदनमुद्दहन्तम् (क) आनन मण्डल-निहितारुण मणि समुद्रतरशुकलापेरुपेतेनावसप्ता रज्ञा चामरेणेव निखलशिखरेण कणयुगलेन विराज मानम् (ख) उज्ज्वल-कनक-श्रृङ्खला रचित (8) रश्मि कलाप कलितया लाक्षा (घ्) भनेति । धनवरत परिसक्नु,रत इतखत सञ्चरत प्रीथपुटान्नासिकायात् उन्मुनी य सूत्कार सूत् इत्थव शव्द तेन हेतुना नासिकाविवरण करणेन भतिजवेन पूव क्वतेन नितान्तवेगेन भापौत सम्यक पौतम् अनिल वायुम् उइमन्त नि सारयन्तनिव । भत्र क्रियीत्ीचालडार । (च) अन्तरिति । अन्तसुखमध्ये खलित सच्चलित अतएव मुखर शब्दायमानी य खलौन कविका तस्य खरशिखरेष तौवणाग्र ष य चोभां घष ष तचाष्जन्म चैषां तान् लालाशज मुखुष्aावजं तष्ाह्नवन्ति उष्पद्यन्त ये ते तान् फेनपल्लवान् विस्त तफेनान् उदधिनिबासे समुद्रावस्थान्काले परिपौता ये अमृतरसास्तषां गण्ड़ षान् मुखपूरणपरिमितांशान उदृगिरन्त वहिष्क व तमिव । अत्रापि क्रियीत्मघाखडार । (क) थत्यति । अत्यायतमतिदौघ म् निद्मासतया थश्वजाते खभावात् देहीपयोगिमांसईौनतया समुत् कौण निव सन्तक्षय काष्ठविशेषादुस्त्र तमिव वदनम् उदइन्त धारयन्तम् । भत्र क्रियीत्झैंचास्नद्धार । (ख) भाननेति । भाननमण्डलैं मक्षक इत्यथ निहितैभ्य प्रिीभाथ सूत्र ग्र थित्वा स्थापितेश्य अरुणमणिभ्य रज्ञावण रत्रभ्य प्रबालादिभ्य समुद्गत थ शृकलाप किरणसमूहै उपेतेन युतीन भतएव अवसक्त सलग्न रक्ती लोहितवण षामरी यधिान् तनेव स्थितेन निश्वले निष्पन्दे शिखरे भयभागौ यख तेन । भत्र रक्तचामरस योगीत् प्रचणाद्गुणोत्प्र चालङ्कार । (ग) उज्ज्वलेति । उज्ज्वलया कनकयङ्खलया रचित कपिती यी रश्मिकलाप प्रयहसमूहस्र्तन कलितथा बड़धा तथा लाचावत् लोहितो रतवण खम्बी दौघ लीख६ञ्चल सत्रासन्तानी जटासमूही यस्यां (স) মূৰ্ত্তিমান বেগসমূহেব ন্তার সে দণ্ডায়মান ছিল । (হ) অবিশ্রান্ত ইতস্তত সঞ্চালিত নাসিকার অগ্র হইতে স্বৎ সুৎ’ শব্দ গিত হইতেছিল সেই জন্য বোধ হইতেছিল যে পূৰ্ব্বে অত্যন্ত বেগবশত যে সকল বায়ু পান কবিয়াছিল তাহ যেন নাসিকারন্ধ দ্বাব নি স্থত করির দিতেছে । (ক্ষ) মুখমধ্যে সঞ্চf ত কবিকণব (কড়িয়ালিব) তীক্ষু অগ্রভাগের ঘর্ষণে লাল হইতে বিস্তৃত ফেন উৎপন্ন হইতেছিল তাই তে বোধ হইতেছিল যে সমুদ্রমধ্যে নিবাসকালীন যে সকল অমৃত পান করিয়ছিল তাহাব গণ্ড ষ যেন বাহির করিয়া দিতেছে। (ক) অত্যন্ত দীর্ঘ এব মাংস না থাকায় কাষ্ঠ বা প্রস্তর হইতে খোদিতেব স্থায় অবস্থিত মুখমণ্ডল ধারণ করিতেছিল । (খ) কর্ণযুগলে ব অগ্রভাগ নিশ্চল ছিল, তাহার উপরে মণ্ডুকস্থিত রক্তবর্ণ মণিসমূহের রশ্মি আসিয়া পড়িতেছিল তাহতে প্রতীতি হইতেছিল যেন ছু থানা রক্তবর্ণ চামব কর্ণযুগলের উপরে স লগ্ন হইয়া রহিয়াছে। (গ) চক্রমকে সোনার শিকলের লাগামে তাহার গলা বাধা ছিল গলার উপবে লা’র মত রক্তবর্ণ লম্বা লম্ব বহুতর T(t) फुत्कारेको (ર) লিন্তৰাল। () अतिगिर्भसितया । (४) रुचिर ।