পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩০৩

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

२८२ वैतादवरो पूवभाग जखमिव चन्द्रोदयेन चन्द्रापीडनिर्गमेन सकलमेव सञ्चचाखाश्वॆीयम् (च) । श्रहमहमिकया च प्रणामलालसा सरभसापनौतातपत्र-शून्ध शिरस परस्यरोत्पीडन कुपित तुरङ्गम निवारणायस्ता (१) राजपुत्रास्त पर्ययवारयन्त (छ) । एवैकशख प्रतिनाम ग्रहणम (२) श्रावद्यमाना बलाहकेन विचलित मुकुट पद्मराग-किरणोद्गमच्छुलेनानुरागमिवोइमङ्गि सङ्घटित सेवाञ्जलि सुकुखतया यौवराज्याभिषेककलसावजित सलिल लग्न कमलो रिव दूरावनतै शिराभि प्रणेमु (ज) । (च) तर्यति । किन्जति चाथ । चन्द्रीदयेन सागरञ्जलमिब चन्द्रापौडनिगैमेन हेतुना तत् सकलमेव अत्रीयमत्रसंन्यद्वन्द सञ्चचाल तख्य परिवष्टनाय गमनीदामादिति भाव । अत्रीपमालद्धार । द्वन्द त्वष्ट्रीय लाश्वब दित्यसर ! (छ्) थइमिति । श्रहमादौ पहमादौ इत्यमिमानोऽहमहमिका तया मय रब्य सकादित्वाद्रिपात । भइ मध्यमिका तु सा स्यात् परन्तयर यी भवत्थइङ्कार । इत्यमर । प्रणामलालसाश्वन्द्रापौडस्य नमस्क्वारायाभिलाषुका सरअस सवेगम् अपर्नौसनमितै भातपत्रव्छत्र शून्यानि विरहितानि शिरांसि येषां ते तथा परस्यरीत्पौडनेन श्रन्थीन्य सरुष ण कुपितान तुरङ्गमाण निवारणन निरोधनेन आयस्ता क्लान्त । त चन्द्रापौड पर्यवारयन्त पर्यवष्टत । (ज) एकैकश इति । बलाहकेन तदाख्यन सेनापतिना प्रतिनामग्रहण यथा स्यात्तथा एक कण चावंदमाना चयममुकदेशस्य राज्ञ पुत्र ईदृशचरित्र इत्थ प रचाय्यमाना राजपुत्र विचलिताना शिरोऽवनमनेन कम्पितानां मुकुटान ये पद्मरागा मणयस्तैष किरणीद्गमच्छखेन थनुराग चन्द्रापौड प्रत्यलुरक्रिम् उहमल्लिरुद्दगिरििरव खिर्त । भत्र सापज्ञवीत्ग्रेक्षालद्धार । सङ्घटिता ललाटपु सयोजिता सेवाञ्चलय प्रणतिद्योतककरसयीगा मुकुलानौव येषु तेषां भावस्तया हेतुना तेषा यौवराज्य यौऽभिषकस्तव कलस खानकुम्भ भावजि तेभ्य पातितेभ्य सखिलेभ्य खद्मानि ललाटेषु संसतानि कमलानि पद्मानि येषु त रिव ख्यित लल टखप्रसेवाञ्जलौनां कमखतुख्यत्वा दिति भाव । दूरावनत अत्यन्तावनत गिरीभिश्वन्द्रापौड प्रणमु भत्र लुप्तीपमागुपीत्ग्रेचयीरङ्गाङ्गिमावेन सद्भर । (চ) চন্দ্রের উদয়ে সমুদ্রজলেব ন্তায় সকল অশ্বাবোহী সৈন্যই চন্দ্রাপীডের নিগমে চঞ্চল হইয়া উঠিল (ছ) এবং “আমি আগে আমি আগে এইরূপ ইচ্ছাপ্রণোদিত হইয়৷ ৷ পীড়কে নমস্কার কবিবার অভিলাষী ছত্রসমূহ সত্বব অপসাবিত কবায় অনাবৃতমস্তক এবং পরস্পর সঙ্ঘর্ষবশত ক্রুদ্ধ অশ্বগণকে অবরুদ্ধ করায় পবিশ্রান্ত রাজপুত্ৰগণ আসিয়া চন্দ্রাপীডকে পরিবেষ্টন করিলেন। (জ) তখন বলাহক (সেনাপতি) প্রত্যেকের নাম উচ্চারণ করিয়া এক এক জনের পরিচয় করাইয়া দিলে, রাজপুত্ৰগণ মন্তক অত্যন্ত অবনত করিয়া চন্দ্রাপীড়কে নমস্কার করিলেন, তখন তাহাদেব চঞ্চল মুকুটের পদ্মরাগমণির বিরণোদগমচ্ছলে মস্তকগুলি যেন জ্ঞাপীড়ের প্রতি অনুরাগ উদগিরণ করিতেছিল , অব রাজপুত্ৰগণ নমস্কার করিবার সময়ে ললাটদেশে পদ্মক লকার ন্যায় অঞ্জলিপুট স স্থাপন করায় তাহদেব যৌবরাজ্যাভিষেকের সময়ে কলস হইতে নির্গত জল হইতে পদ্মসমূহ যেন লাটে লাগিয়া রহিয়াছিল বলিয়া বোধ হ তেছিল। (१) निवारणायायसितघ्रता निवारणाथायासिता । (२) प्रतिगामग्राइन्।