পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩০৭

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२८६ कादअबरो पूर्वभागे इव पौणमासोरजन्ध , (ध) काखिदाद्रलज्ञक रस पाटलित चरणपुटा कमल-परिपैोत बालातपा द्रुव नलिन्ध , (न) का ञ्चित् ससश्वमगति विगलित-मेखला-कलापा कुलित चरण किसलया श्रृङ्खला सन्दान मन्द मन्द सञ्चारिणह्य द्रव करिणल्ल , (प) काच्चिज्जलधर समय दिवसश्रिय दूवेन्द्रायुध राग-रुचिराब्बरधारिण्य , (फ) काश्वि दुल्लसित-धवल-नख मयख पल्लवान त पुररवाक्कष्ट-ग्टहकलहसकानिव चरणपुटागुइ दिति । वाषिर्श्वास मध्य काशिल्लखना दत्यघ । एवमन्वत्रापि । वामकरतलेषु गता श्रिता दप णा सुतुरा यासा ता अतएव सरित प्रकाशित सकल सम्पृण रजनिकरमण्डल चन्द्रविष्व यासू सा पौण मासौरजन्य भ्रष । दप षागf वसुखतया निझलतया च चन्द्रमण्ड्जतुष्यत्वात् तालाश्च ज्योत्स्नावखितकीतिमवादिति भाष । अक्रोपलास्जङ्घार । (न) वाक्षिदिति । श्राद्र ण भलताकरसेन पाटलितानि झारतीौक्वतानि चरणपुटानि याभिस्ता अतएव कमज पद्म करण परिपीतां ग्रस्त ग्टईौत बालातपी रज्ञावणाँ गवैौनसूयाँखौका थाभिस्ता नखिन्थ पद्मिन्य पद्मखता इव । अत्रोपमालदार । बालातपेन भखझाकरसस्य पद्म धरणानाम् पद्मिनौभिश खलनानां सादृग्झ बोध्यम् । (प) काषिदिति । ससश्व मगत्था सत्वरगमनेन विगलित कटिटशात् स्वस्तै मेखलाकलाप कायौदामनि चाकुलितानि व्याकुलौक्कतानि पदै पर्द प्रतिवध्यमा नि चरणकिसलयानि यासा ता भतएव एड़खया सन्दानेन चरणयोब न्धनेन मन्दमन्दसञ्चारिण्श करिण्य दूव । भत्रोपमाछुत्यनुप्रासयो सैरष्ट प्ट । (फ) काधिदिति । जलधर समयदिवसथिय वर्षाकान्तदिनशैोभा इव इन्द्वायु वस्य शक्रवापस्य राग इव रार्गी विविधवण योगस्तैन रुचिराणि अस्बराणि वसनानि धारयन्तौति ता पखे इन्द्रायुधस्य रागैण रञ्जनैन विरम् भष्वरमाकाश धारयन्तीति ता । अत्र पूर्णोपमाखडार । (घ) कश्चिदिति । उल्लसित उलिथत धवली नखाना मय खपल्लव किरणसमृझे वैभ्यतान् अतएव पुररष राक्कटा थाक्कष्य या'ौता यै ग्य्इकलइ सकास्तानिव खितान् चरणपुटान् पादयुगलागि उच्च रुन्ती धारयनीय । भत्र जात्युत्म च वाखद्धारी न तूपमा नपुररवाक्कष्टपदाभिधानतात्पय्र्यादिति सुधौभिर्भाव्यम् পরিসমাপ্ত অবস্থায় পরিত্যাগ কবিয়া তাড়াতাড়ি যায় দালা নয় ছাদে ও মধ্যের তলায় উঠিতে লাগিল । তাহদের মধ্যে কেহ কেহ বামহস্তে দর্পণ ধারণ কবিয়া প্রকাশমান পূর্ণচন্দ্র সমন্বত পূর্ণিমারাত্রিব ন্যায় শোভা পাইতে লাগিল। (৭) কেহ কেহ আৰ্দ্ৰ অলক্তক বসে চরণযুগল রঞ্জিত কবিধা পদ্মের উপরে নূতন স্বস্যালোক পতিত হ’লে পদ্মলতার স্কায় বিরাজ করিতেছিল (প) কোন কোন বর্মণী দ্রুতগমনবশ কটিদে হইতে নিপতিত কাঞ্চাদমে চরণযুগল আবদ্ধ হওয়ায় চরণে শৃঙ্খলাবন্ধননিবন্ধন মন্দমন্দগামিনী হস্তিনীর ন্যায় ধীরে ধীrব উঠিতে লাগিল (ফ) বর্ষাকালেব দিনলক্ষ্মী যেমন চন্দ্ৰধনুর বিবিধবর্ণে মনোহর আকাশ ধরণ করে সেইরূপ কতক গুলি যুবতী ইন্দ্ৰধনুব সায় বিবিধবর্ণে মনোহর বসন ধারণ করিয়। আরোহণ করিতে লাগিল , (ব) কেহ কেহ নখ হইতে উখিত শুভ্রবর্ণকিরণরাজি সমম্বিত চরণযুগল বহন কবিয়া যাইতেছিল তাহাতে বোধ হইতেছিল যেন নুপুরের লবে আকৃষ্ট গৃহপালিত কলহংসগণকে চরণে বহন কবিয়া লইয়া যাইতেছে , (ভ) কোন কোন