পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৩৯

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३१८ क्षादब्बरो पूर्वभागे सञ्चयम् (ण) प्रथम (१) वेश्ह्यासमागममिव अविदित ह्रदयाभिप्राय चेष्टा विकारम, (त) कामुकजनमिव बडु चाटु स लाप सुभाषित रसाखाद दत्त ताल शव्दम्, (थ) ध,त्तमण्डलमिव दीयमान मणि शत सहस्रालद्वारण क्कत लेख्यपत्र सञ्चयम, (द) धर्मै्रारभमिवाशेषजन-मन-प्रgादनम , (घ) महावनमिव विविध श्रृखापद-(२) दिजोपघृष्टम , (न) रामायणमिव कपि (३) कथासमाकुलम , (प) (त) प्रथमे त । प्रथमवेश्झासमागममिव चविदिती नितान्तगानौर्यात् कैनाप्यनवगती हृदयाभिप्रायी याभ्य खाढएाथ टा क्रिया विकारा मुखनेत्रादिभक्रपथ यअिन्। तत् । धन्यत्र तु अविदित अपरिचितत्वात् केनाप्यञ्चात हृदयाभिग्नायी यासु ताद्वश्धश्लेष्टा कामचेष्टा विकारा ध भङ्गौप्रस्वतयक्ष यझिन् तम् । (थ) कामुकै त । कामुकजननिक बहनि चाट नि प्रियवचनानि येषु तादृशे सलार्पनि थी भाषण सुभाषिरै रैक कस्य मर्नेोइरवाक्र्यक्ष यी रसाखादी रसावबोधखर्तन दत्त सस्त्र तज्ञापनाय দুল মৰমৰ करतलध्वनिय खान् तत् चन्षत्र तु धेन तम् । (द) ध से ति । धन्तमण्डल द्य तकारसमूइनिव दीयमानानि विभिन्त्रदैगौयसामन्त रुपहारभावेन वितौर्य माणानि यानि मयौनां शतसहस्राणि अलङ्करणानि भूषणानि च तेषां क्वती नियुतलेखक वि हित लेख्यपवसञ्चय शान्चुल्लिख्यज्ञिख्य तत्पत्रसग्रईी यषिान् तत् । भन्यव तु दीयमानाय द्य ते पराजितलान् दातव्यायत्यथ मणिगत सहस्राय अलडरद्याय च क्कत खहस्तावरंवि हित खरठ्यपत्रसञ्चय एतावत्कालमध्य एतानि मया दैयानि इति प्रमाणपत्रसग्रही येन तत्। (ध) धझ ति । धर्मारक्ष यागादिधर्मकाय्याँपक्रममिव भशेषाणां सकलानां जनानां मन प्रहृदन चित्तानन्द जनकम् थौववंचिवादिति भाव । इदमुभयत्रापि समानम्ं। (न) मछैति । महावननिव विविध श्वापद प्रालितहि स्वजन्तुमिक् त्यहिस्रज्ञन्तुभिष व्यान्नादिभि दिर्ण पाखितपविभिब्राध्रण र्वा अन्यत्र वन्यपचिभिष उपधुट मुखरोक्कतम्। DDD BB B BBBBBS SSBBB SBDDS BBB BB BBBSBB BBS BBD সংগৃহীত ছিল । (ত) প্রথম বেগুণ সর্গে যেমন তাহাব মনেব অভিপ্রায় ব্যবহার ও মুখভঙ্গীপ্রভৃতির ভাব বুঝা যায় না সেই রাজবাটীতেও তেমন লোকদিগের মনের অভিপ্রায় ব্যবহাব ও মুখভঙ্গীপ্রভৃতির ভাব বুঝা যাইত না । (থ) কামুক ব্যক্তব স্থায় সেই বাজ বাটীর লোকেরাও বহুতর প্রিয়বাক্যদ্বারা পৰম্পব আলাপের এবN একের একের মনোহর বাক্যের রসাম্বাদন করিয়া করতলধ্বনি কবিত। (দ) দূতকাবগা যেমন দ্যুতে পরাজিত হইয় পণের ত সহস্র মণি ও অলঙ্কারের জন্ত লেখ্যপত্র (দ িল) লিখিয়া দেয় সেই রাজ বাটতেও তেমন সামন্তরাজগণ উপহারভাবে যে শত সংস্র মণি ও অলঙ্কার দিতেছিলেন লেখকগণ তাহার লেখ্যপত্র (তালিকা) লিখিয়া লইতেছিল। (ধ) যাগাদি ধৰ্ম্মকার্ধ্যারম্ভের স্থায় সেই রাজবাটও সকল লোকের চিত্তেৰ আনন্দজনক ছিল। (ন) মহারণ্যের স্কার সেই রাজবাটাও, বিবিধ চিত্ৰজন্তু ও পক্ষীব শব্দে শস্বায়মান ছিল। (প) রামায়ণ (१) प्रधान । (२) क्वचित् विविधपद नाति । (३) कवि ।