পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৪১

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३२० कादब्बरो पूव भागी प्रायावेदकम (१) (ख) महानदी प्रवाइमिव सवदुरितापहरम, (२) (व) धनमिव न कस्यचित्राकाङ्घर्णीयम (२) (श) सन्ध्यासमयमिव दृश्यमानचन्द्रापोडोदयम., (ष) नारायणवच ख्यखमिव श्रो रत्न प्रभा भासित-दिगन्तम , (स) बलभद्रमिव कादम्वरो रस विशेष वणनाकुलमति, (४) (इ) ब्रघ्राणमिव (५) पद्मासनोप م۔م۔ काब्बनिपुर्ण प्राप्त भाखादी यअिन्। तत् । अन्यत्र तु विविधाना शब्दाना तन्त्रीसमुथितरवाण रसस्त्र माधुर्थस्य लब्ध श्रीढनि प्राप्त धtख्यादो यक्षात् तत् । (ल) स्वदिति । मृदु वंोमल प्रसाटगुणावितमित्यथ कम्वनिव अन्य रितररह्यानरह्यञ्जन चितित केवल चिन्ताविषयैौक्कत न तु खब्ध इति भाव य खभाव खरूपम् अभिप्रायस्तव्रत्यजनानामाशयथ तयोरावेदक ज्ञापकम् तस्य राजभवनखासाधारणचमत्कारित्व तवत्यजनानामुदाराशयश्व भन्थलीकराकड़ित एव न तु खब्ध तयोश्व सूचक तङ्गवनमिति सरखाथ । अन्यत्र तु भन्य व ता भिन्न अ न चिनित श्रुतिमात्र णावगत य खभाव खाथ थभिप्रायी वा,राश्रयष तयोरावेदक प्रकाशकम् । (व) मईति । महानद्या गङ्गार्द प्रवाइमिव सर्व षा दुरितानां दुरितजनकदुराचाराणाम् अपहर तत्रत्य पख्तिान समुपर्दशात् विनायकम् । अचत्र तु सव दुरिताना सव विधपापानाम् अपहर खानेन विनाशकम् । (अ) धनमिति । धननिव कस्यचिन्नाकाड्यौयमिति न अपितु सव स्य व आकाङ्घरौयमित्यथ । (घ) सन्र्यति । सन्यासमयमव दृश्यमानषन्द्रापौड़ख तदाख्यख राजपुत्रस्य उदय उपस्वितिय झिन् तत्। भन्वत्र तु दृश्यमान चन्द्र एवं भापौड सन्याया एव गिरीभूषण तख उदयी वजिन् तम्। (स) नारायणेति । नारायणवच रह्यलनिव बौयुतानि रत्रानि श्रेोरब्रानि कातिविशिष्टमणयखषा प्रभार्मि भसिता दपिता दिशाम् अन्त श्रषसौमा यस्य तत् । अन्यत्र तु बिया खक्षा रत्रख कौस्तुभमणष प्रभाभिर्भासिता द्गिन्ता यख तत् । (इ) बलति । बलभद्र बलराममिव कादग्दथ्र्या सुराया रसविशषवण ने भाकुला व्यस्ता मतिज नानां बुद्धिय विान् तत् यख तच्च । नखमद्रमित्यनेनान्वये तु मतिमिति खिच्चम्यत्यय कार्य । নানাবিধ কাব্যরসের আস্বাদ পাইত। (ল) প্রসাদগুণান্বিত কাব্য যেমন অন্তের বোধগম্য অর্থ ও কবিব অভিপ্রায় শ্রবণমাত্রেই ব্যক্ত করে বাজবাটীতেও সেই তেমন অন্তের কেবল চিন্তার বিষয়ীভূত স্বকীয় চমৎকারিও ও অধিবাসিগণের সদভিপ্রায় ব্যক্ত করিত , ( ) গঙ্গাপ্রভৃতি মহানদীব প্রবাহ যেমন সকল পাপ দুর্ব করে, সেই রাজবাটাও তেমন জ্ঞানি গণের উপদেশদ্বারা সকলের ব্যবহার দূর করিত। (শ) ধনের ষ্টায় সেই রাজবাটীও সকলেরই বাঞ্ছনীয় ছিল । (ঘ) সন্ধ্যাকালে যেমন সন্ধ্যার শিরোভূষণ চন্দ্রের উদয় দেখা যায় সেই রাজবাটীতেও তেমন তখন চন্দ্রাপীড়ের উদয় দেখা যাহতেছিল । (স) নারায়ণের বক্ষ স্থল যেমন লক্ষ্মী ও কৌস্তুভমণির প্রভাদ্বারা দিগন্ত আলোকিত করে, সেহ রাজবাটাও তেমন দীপ্তিসম্পন্ন ঋতুসমূহের প্রভাদ্বারা দিগন্ত আলোকিত করিয়ছিল। (হ) ৰশরামের মতি যেমন মদ্যের রসমাধুৰ্য্যবর্ণনায় ব্যস্ত থাকিত, সেই রাজবাটীর অনেক লোকের মতিও তেমন মস্তের রসমাধুর্ধ্যবর্ণনায় ব্যস্ত থাকিত । (ক্ষ) ব্রহ্মচারীকে যেমন তাহার গুঞ্চ তত্ত্ব (१) वदकम् । (२) दुरिततापस्रम् । (३) काड़ शैयम्। (४) मतिम्। (५) ब्राझपनिष•