পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৪৩

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३२३ कादख्बरो पूर्वभागे विचारनिपुणम्, (छ) सुछतमिवादिमध्यावसानकख्याणकरम, (ज) वासरारकामित्र परिसङ्गुरत् (१) पद्मरागारुणे-क्रियमाण निशान्तम, (झ) दिव्यसुनिगणमिब कलापि (२) स ताथ-स्खेतकेतु शोभितम्, (३) (अ) भारतसमरमिव छातवर्क बाण (8) चक्र सम्भार भीषणम् (ट) पातालमिव महाकच्चकिसइस्राध्यासितम,(५) به میه-میر SAA DA AMS AA MA SAMS (च) भगम्यति । यगम्य थभीग्य विषये वेश्यामद्यादौ यासन्नमपि प्रशंसनीयमिति विीध भगम्य थन्य गैश्तुमप्यशक् विषये प राज्य धावता छायाय झतभिनिविश्यमिति तत्समाधानम् । षतएवाव विरोधाभांीऽष्जत्वार । (ङ) अन्तकेति । अन्तकभटगणनिव यमदूतगण्मिव क्कताक्क यो प्रजावग ण विहितावितिय कार्ययो सुछतेन विचारै धम्म नुसारेण भौमांसायां निपुण गुप्तचरेभ्य सर्वावगमात् न सगि कप्रतिभाषखाय दधम् । अन्यत्र तु झतयीजाँवजनेन विहितयी थक्कतम्नक्कत थी पापपुण्य४ी विचार नपुणम् । (ज) सूक्कतमिति । सुक्कत पुगद्धनिव धादिमध्यावसानषु वहिढे शू मध्यदैश शषदैशषु कह्याराकरम् थक्षि बासिना सुखसञ्चरणीयत्वात् शुभकरम् । अन्यत्र तु आदिमध्यावस नेपु अवस्धासु कख्याणकरम् । (झ) वासरति । वासर रभ प्रभातकालमिव परिस्फुरहिटॉप्यमा । पद्मराग तदाख्यमणिमि भरुणैक्रिय DBB BBBB DDD DDBB BDS BBB B BBBBB DDDD DBB DDD DDDD DiBD म्राण निशान्ती राविशेषी येन तम् । (ञ) °िय ति । दिव्यमुनिगण महधि समूहमित्र कला िसनाथ मय र पुकालिकासरिर तिकैतुमि सितध्वज प्रिीभितम्। अन्यत्र तु कलापी व शन्यायनशिष्य मुनिविशष ततसनाथ ब्रेतकतुनामा मुनिस्तन प्रीभितम्। (ट) भारतति । भारतस्रमर कुशपाण्ड् वयूखमिव क्त य ०र्रेण ब॥णाश्t चक्राशश्च स्रग्भार् संग्र`हतं ज। भौषणम् । अन्यत्र त क्लतवर्षणस्तनाख्यस्य यदुव शौयमहावौरस्य या चक्रग्य शरसमूहस्य सञ्चारण प्रयौगैण भौषणम् । (ठ) पातालमिति । यातालभिव महता कञ्च किनाम् अन पुरचराण ब्लडूब्राध्रणान निर्णीकवता सर्पाणाञ्च सइस्र ण भध्यासितमाश्वितम् । BBB BBBS gB BB BBB B BB KStttt BB SBB BB BBB BBBB BB B BBB যত্ন করিত এবং প্রশংসনীয় ছিল)। (ছ) যমদূতগণ যেমন জী বব পাপপুণ্যবিচারে নিপু, BB BBBB BBBB BBBB BB BB BBSBBS B BS BBBBSBS BBBB BB BBB নিপুণ ছিল । (জ) ধৰ্ম্ম যেমা প্রথম মধ্যম ৩ েধ—ম কল অবস্থাতেই লোকের মঙ্গলকর সেই রাজবাটীও তেমন বাহিব মধা ও অন্দব-সকল স্থানেই অধিবাসিগণের মঙ্গলকর ছিল । (ঝ) প্রভাতকাল যেমন প্রকা মান পদ্মের রক্তি মায় রাত্রিণ েষভাগকে বক্তবর্ণ কবে, সেই রাজবাটও তেমন দীপ্যমান পদ্মরাগমণিসমুহম্বাবা গৃহসমূহকে রক্তবর্ণ কবিতছিল। (ঞ) মহর্ষিগণ যেমন কলাপিনামক মুরি সহিত শ্বেতকেতুনামক মুনিদ্বারা শোভিত হইয়াছিলেন, সেই রাজবাটাও তেমন কৃত্রিম ময়ূর্বস যুক্ত শ্বেতবর্ণ ধ্বজসমূহে োভিত ছিল। (ট) কুরপাণ্ডবের যুদ্ধ যেমন কৃতবৰ্মাব বাণ ও চক্রনিক্ষেপে ভংঙ্কব হইয়াছিল, সেই বাজবাটাও তেমন বৰ্ম্ম, বাণ ও চক্র সংগ্রহ করায় ভয়ঙ্কর ছিল । (ঠ) পাতাল ধেমন মহাসর্পসমূহকর্তৃক () জৰিল ষ্ট্রিবিন नाशि । (ર) विवकलाप | (ર) उपीभितम् । () भिजौमुख । (५) जहाकचुक्याध्यासितम्।