পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৮৬

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वाथायाँ चन्द्रापीडदिग्विजययात्रा । ५८e. नोव (१) पृथकछतानीव विस्तारितानीव गर्भीछतानीव प्रदचिर्णीछतानैव वधिरी छातानीव रवेण भुवनान्तराणि, विश्लेषिता द्व दिशामन्योन्यबन्धसन्धय (ङ)। यस्थ च भयवशविषमचलितोत्तान (२) फणासहस्रोणालिङ्गयमान इव रसातले शेर्षण, (च) सुडुसुड्डरभिसुख दत्तदन्तोङ्घघातो () आङ्ग्यमान द्व दिछु दिककुञ्चरै, (छ) सन्त्रास-रचित-रेचित (४) मण्डले प्रदचिर्णीक्रियमाण इव नभसि दिवसकर-रथ तुरग , (५) (ज) अपूव शर्वाट्टहास शढ़ा हर्षा डुड़तेन (६) भाभाथमाण इव वेलास उत्पातशखधर इव औत्पातिकमेघ इव । तथा महावराइस्य नाराय ढतैौयावतारस्य धीणाया नासिकाया थभिपातै प्रहारो पाताखख कुचिम ध्यदैण इव आमन्थरम् भतौवविशाल दध्वान शदितवान्। अत्रापि मालीपमालदार । मन्थर सूचकै कीशी वक्र मन्दे पृथौ मथि । मन्थर तु कुसुग्भग्ना स्यात् । प्रति ईमचन्द्र । (ङ) येनेति । ध्वनता शब्दायमानेन येन च दुन्दुमिना रवण भुवनानाम् अन्तराणि मध्यदेश्या समायाता नौव परिपूरितानौव उनौखितानौव जागरितानीव सुखरौक्कतानौव शब्दायमानैौक्कतानौव पृथ९ झतानौव विदारिता `ौव विस्तारितानौव प्रसारितार्नौव गमॉक्वतानौव अन्तर्गतौछतानौव । सव व्र जातानोति शेष । तथा दिमाम् अन्वीन्वबन्धसन्धय परस्यरबन्धनजनितसयीगा विश्न षिता विभज्ञा द्रव जाता । अव सव व्र क्रियीत्म चालद्धार । (घ) यस्नेति ! यस्य च दुन्दुमेनि नाद इति सम्बन्ध । रसातलै पातालै भयवीन विषमम् यसमानम् इतशत इत्यथ चलित कन्पितम् उत्तानम् ऊढ़ॉभूत फणानां सहस्र यस्य तेन तादृशेन सता शषेण धनन्तनागेन भाजिब्रय मान सव त प्राप्यमान इव सन्। क्रियीत्ीघ लङ्कार । (ख) मुइरिति । दिच्च मुजुमु कु अभिमुखे पव तभित्त्यादौ दत्ता दन्ताभ्याम् ऊन्न घाता यस दिककुम्ररै दिग दतिमि आइयमान धामन्त्रामाण द्रव प्रतिहिरदगज नश्वमादिति भाव । क्रियीतम्रै बालद्धार ! तैंग व दुदुमिनिनादै प्रतिदिरदगज नश्वमादृश्वान्तिमानलङ्कारी व्यज्यत इत्यखड़ारीणालङ्घारध्वनि । (ज) सनवासेति । नभसि प्राकाशॆ सनासेन भयेन रचित विहित रचितमण्ड़त मध्यमवेगगत्या परिभ्रमण هيدرة مما سة عم BBBBS BBB BBB BBBBBBB BBB BBBBBBB BB K BBBtt tBB বায়ুর আঘাতে ভূতলেব ন্তায় বিদ্যুতের আঘাতে উৎপাত মেঘের স্থায় এব নাবায়ণের তৃতীয় অবতাব মহাবরাহের নাসিকার আঘাতে পাতল মধ্যদে ের ন্যায়, অত স্ত বিশাল শব্দ করিতে লাগিল । (ঙ) শব্দায়মান যে দুন্দুভির বে সমস্ত ত্রিভুrনর মধ্যভাগ যেন পরিপূরিত, জাগরিত, শঙ্কিত, বিদাবিত বিস্তারিত, অভ্যস্তবগত প্রদক্ষিণকৃত ও বধিবীকৃত হইয়াছিল এবং সকল দিকের পরম্পর সন্ধিস্থলগুলি যেন বিভক্ত হইয়া গিয়াছিল (b) এবং পাতালে ভয়বশত অস্তিন্যগের উত্তোলিত সহস্র ফণা ইতস্তত চলিতে লাগিয়াছিল এই অবস্থায় তিনি যে দুন্দুভিধ্বনি সকল দিক্ হইতেই যেন শুনিতেছিলেন , (ছ) সকল দিকেই দিগ হস্তিগণ সম্মুখবর্তী পৰ্ব্বতভিত্তিতে উৰ্দ্ধদিকে বাব বার দস্তাঘাত করিয়া বিপক্ষ হস্তীর গর্জন মনে করিয়। যে ছন্দুভিব শব্দকে যেন আহবান করিতেছিল (জ) আকাশে স্বৰ্য্যরথের অশ্বগণ অত্যন্তভােবশত মধ্যমগতিতে মওলাকারে প রক্রমণ কবিয়া যে দুঙ্গুতিধ্বনিকে যেন (१) क्वचिदय पाठी नास्ति । (९) बलितोतान । (३) दन्तधात । (४) रेचक । (५) तुरङ्गम । (६) क्लचित् असुतपूर्व इत्यधिक पाठी दृश्खते ।