পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৮৮

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दद्याश्वाँ चन्द्रापीडदिग्विजययात्रा । ફટ.t समन्तात् ससण,मोचित्तैख परखर सङ्घइ-विघटित (१) हारसूत्रविगलितान् अनवरतमाणाविजयप्रस्थानमङ्गलखाजानिव (२) सुज्ञाफल-प्रकरान् चारद्धि , पारिजात इव सित-कुरुमसुकुख पातिभि करुपपादप , ऐरावत इव विमुझकरशैोकरेराशागज , गगनाभोग इव तारागणवषिभिदि गन्तरे , जलदकाल इव ख्यूल जख लवासार खदिभिजंखधरे, अनुगम्यमानो नरपतिसहस्रो राख्यानमण्ड़पाजिर गात् (ढ) । निर्गत्य च पूर्वारूढया पत्रलेखया (२) अध्यासितान्तरासनाम, उपपादित प्रखानसमुचितमङ्गख्यालद्वारा ससश्वमाधौरोपनोता करेणकामारुन्त्र (g)अचल (ढ) समन्तादिति । किच्च समन्तात् सर्वाभ्यो दिग भ्य ससन्ध्र म सस्वरम् उथितँ परखप्ररसङ्घईन अन्वीन्व सङ्घष प विघटितानि झिञ्चागि यानि कारसूवाणि तेभ्यी विगलितान् आणविजयाय दिग्विजयाय प्ररह्याने मङ्गललात्रान् माङ्गलिकधाना इवेति जात्युत्मचा मुलाफखप्रकरान मौतिकसमूहान् भनवरत चरहि पातयहि नरपतिसहस्र सामन्तगण अनुगम्यमान इति सण्वन्ध सितकुसुममुकुखपाति भ शुधवण पुष्पकलिकावषि मि कल्पपादपे पारिजाती इंच इव विमुक्ता विचिप्ता करेभ्य शुण्ड़ाभ्थ शौकरा जलबिन्दवी यस्त थाशागज दि ग्गज ऐरावती इस्तौव तारा गशवषि भिदि गन्तर वि मिब्रदिग भि गगनाभीगी विक्ष ताकाशदेश इव तथा ख खजललवासारखन्दिमि ख,ल जलबिन्दुधारावधि भि जलधरैमो घुँ जलदकाली बर्षाकाल इव अनुगम्यमानशन्द्रापौड भाखागमण्डपात् सभाग्टहात् निरगात् निर्गती वधूव । अब मालीपमाखडार प्रागुलजालुन्ग्रेचया सीधैते । (ग) निर्गस्थति । किञ्च । समध्यासितम् अधिष्ठितम् अन्तरासन मध्यखितासन यस्त्राक्षाम् । उपपादिता श्वत्यैय थाखान यीजिता प्ररह्याणसमुचिता रणप्रयाणयोग्या मन्त्रख्याखड़ारा यखाक्षाम् । ससन्ध्र मेख आधीरणन इतिपकैन उपनौताम् उपखापित करेखक काञ्चित् हसौनौम् भारुह्य चन्द्रापौड अचलरैचकेण मन्दरश्चमीन चक्री (ট) চন্দ্রাপীড় সিংহাসন হইতে নামিলে সকল দিক্ হইতে সামস্তনরপতিগণ তাড়াতাড়ি গাত্ৰোখীন করিলেন তখন পরস্পর সঙ্ঘর্ষবশত র্ত{হীদের গলার হাবের স্থতাগুলি ছি ডুয়া যাইতে লাগিল তাহাতে দিগ্বিজয়প্রস্থানকালীন মাঙ্গলিক থইর ন্যায় মুক্তাগুলি অনবরত পতিত হইতে লাগিল , তখন শুভ্রবর্ণ পুষ্পকলিকবেৰী কল্পবৃক্ষগণ যেমন পারিজতিবৃক্ষের, শুণ্ড হইতে জলবিন্দুধর্মী দিগ হস্তিগণ যেমন ঐরাবতের, নক্ষত্রবধা দিগ সমূহ যেমন আকাশের এব স্থলজলবিন্দুধর্ষ মেঘ-মূহ যেমন বর্ষাকালের পশ্চাতে অবস্থান করে সেইরূপ সামন্তনরপতিগণ চন্দ্রাপীrড়র পশ্চাৎ পশ্চাৎ অবস্থান করিয়া যাইতে লাগি লন এই অবস্থায় চম্রাপীড সভামণ্ডপ হষ্টতে নির্গত হইলেন। (ণ) চঞ্জীপীড় নির্গত হইলে, হস্তিপক সত্বর এ টা হস্তিনী আনিয়া উপস্থিত করিল, পত্ৰলেখা পূৰ্ব্বেই তাহাতে আরোহণ করিয়া মধ্যবর্ভা আসনে উপবেশন করিয়া রহিয়াছিল, ভৃত্যগণ যুদ্ধযাত্রার উপযোগী মাঙ্গলিক অলঙ্কারে তাহাকে অন্ধকৃত করিয়া রাখিয়াছিল চক্সপীড় সেই হস্তিনীর পৃষ্ঠে আরোহণ করিয়া রাজবাটী হইতে নির্গত হইতে আরম্ভ করিলেন , (१) विधठ्ठित । (२) मछखर्जौदाक्षाजाणिव । (३) कुख तैश्वरपुब्रह्मा । (४) अभिरुञ्च ।