পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪১৭

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8ሿ• कादम्बरो पूर्वभागे झल्वा खयश्च सलिखं पीत्वा कस्यचित्तरोरधश्चायायां लुतिमात्र विश्रम्य ततो गमिथामि' (ङ) । इति चिन्तयित्वा सलिलमविष्थन (१) सुडुमुडुरितस्तती दत्तदृष्टि पर्यटन् नलिनोजलावगुहोत्थितखाचिरादपक्रान्तस्य च महतो गिरिचरस्य वनगजयूथस्य चरणोत्थापिते (२) पइपटलैराद्रॉक्कतम, करावछद्यैव समृणालमूलनाल (३) कमलकलाप कलाषितम् श्राद्रॉईंख शैवालप्रबाल स्वामलिनोद्देशम्, उद्दलितँख कुमुद-(४) कुवलय-कञ्चारकुटमलेरन्तरान्तरा विच्छुरितम्, उत्खातेख सकइ म शालककन्दराकीर्णम, खण्डितच (५) مرمره ۹ گره مجم (ड) परौति । एनमिन्द्रायुधम् भाग्टईौता मुखेन धृता खादिता इत्यथ कतिपये दूर्वाप्रबालानां दूर्वापशवागा कवला ग्रासा येन तम् । शिलाप्रस्रवण पव तनिझ र सरिदम्भसि नदौजले वा श्रादौ स्वात खानाश्रयौहात परच पौतम् उदक येन तम् अतएव अपनौत श्रमी यस्य त तादृश्रम् । (च) इनीति । पर्यटन् चन्द्रापौड़ा मार्गमद्राधीदिति परेशान्वय । नलिन्या पद्मयुक्तख सरीवरख ञ्जलिं স্বৰ্য্যাক্সলান বস্তুত্রিনয়। नलिनौ पद्मिनी पद्म व्योम सिन्धु, सरोवरे। नजुिकायाच_नलिनी ब्रूहितः। विश्व । भपकान्तख घपसृतख । पद्धपटल कद्द मसमूहै । भाद्रॉक्कतमित्यती दिसैौर्यकवचनान्तपदानि मार्ग मिति वच्यमाणस्य विशेषणानि । करावक्लष्ट शृण्ड़ाभिराक्कष्यानैौत । भपि चेति चकाराणामथ सव व । कथाषित विचित्रौष्ठतम् । थाद्रांद्र रचिरीतीलनादतिशयेन जलक्लिद्र शैवालप्रवाल शैबालपल्लव शग्रामलिता ग्झाम वर्षोंछता उइ मा खानानि थख तम् । उद्दलि मइ यित्वोत्यापितै कुमुदानि श्र तोत्पलानि कुवखयानि नौजीन् पलानि कष्ट्राराणि सौगधिकानि तेर्षा कुट मल मुकुल अन्तरान्तरा मध्यै मध्यै विच्छुरित रञ्चितम्। उत्खातै रुत्पाटित शाख ककन्दरुत्पलान मूल भावौण ब्याप्तम्। शाल कमेषा कन्द ख। ट्त्यिझर् । धश्च याज क्षी शब्द न व चरिताथ ल पुनभलाथ ककन्दशब्दोपादानादधिकपदतालीष कन्दपदपरित्यागेनैवासी समाधेय । ভুক্তি भग्न कुसुमखवकशार पुष्प्रगुच्छविचित्रै । घाख नाभिछिल्लाभि कुसुमेषु उपविष्टा सन्त उल्लसग छो" ° - سیم مسیه অলঙ্কৃত করিতেছেন। (ঙ) এই চন্দ্রাযুদ্ধ ও পরিশ্রস্তি হইয়া পড়িয়াছে , অতএব ইহা ক কয়েকটা দুৰ্ব্বপল্লবের গ্রাস ভক্ষণ করাইয় কোন সরোবরে কি বা পাৰ্ব্বত্যপ্রস্রবণে অথবা নদীর জলে স্নান ও জলপান করাইয়া ইহার পরিশ্রম দূর কবিয়া আপনিও জলপান করিয়া কোন বৃক্ষের নীচের ছায়াতে কিছুকাল বিশ্রাম করিয়া তাহার পবে যাইব । (চ) এইরূপ চিন্তু কবিয়া জলের অন্বেষণে ইতস্ত বারংবার দৃষ্টিপাত কবিয়া বিচৰণ করিতে কবিতে একট পথ দেখিতে পাইলেন। পৰ্ব্বতচারী কতকগুলি বন্ত হস্তী সরোবরেব জলে অবগাহন পূর্বক উঠিয়া দ্বাই চলিয়া গিয়াছে তাহদের চরণদ্বাবা উত্থাপিত কর্দমসমূহে সেই পথটা আর্দ্র কবিগছিল , শুণ্ডদ্বাবা মৃণাল মূল ও নালদণ্ডের সহিত উত্তোf ত কতকগুলি পদ্মে সেই পথটী বিচিত্র করিয়ছিল ভলক্লিয় শেওলার পল্লবে তাহাব বহুস্থান গুণমবর্ণ করিয়াছিল উদ্ধ ত শ্বেতোৎপল নীলোৎপল ও সুধির কলিকাতে মধ্যে মধ্য সে পথটা রঞ্জিত করিয়াছিল (१) अविषमाण अन्वेषमाण अन्व षयन्। (९) अपक्रान्तस्य भतिमद्दत गिरिचरख चरीत्तारितै । (२) करिकखभक्कट नपाखनाख । (४) कमलकुमुद । (५) भाग्वखितव ।