পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৮৬

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कथायाँ पुण्डरीकदर्शने महाझेखेताया अवख्या । gEటి विष्टतैव, निष्यन्ट्सकलावयवा तत्कालाविभूतेनावष्टमेन, अकथित'शिचितैन अनाख्ययेन खसवेद्य न केवलम्, (झी न विभाव्यते, कि तडूपसम्प्रदा, कि मनसा, कि मनसिजेन, किमभिनवयौवनेन, किमनुरागेण वा (१) उपदिश्यमाना (२) किमन्थनौव वा केनापि प्रकारेण, अह्रमपि न (२) जानामि कथ कथमिति तमतिचिरं व्यलीकयम् (ञ) । उत्क्षिप्य नेोयमानेव ततसर्मीपमिन्द्रिर्य , पुरस्तादाक्कष्यमाणेव हृदयेन, (भी) अद्यापराण्यपि तत्काखजातानि দ্বমিভাবা দ্বন্মিলননি। আমিনৰ সৰীজনৰ लिखितव चित्रितेव उत्कौण व दारु पाषाण वा सन्तच्याविष्क तेव सयतेव बड़ व मूच्छि तेव मूच्छ या सभाईौनेव तथा कैनापि जनेन विधूतेष रटईौतेव सतौ निष्यन्दा सकखा अवधवा भङ्गानि यस्या सा तद्योaा भइम् भकथितोऽपि नयन चाखयितुमनुपदिष्टोऽपि शिचितस्तवाभिशस्तन भनाख्ययेन भाकविकीपखित्या किश्व,त इत्याख्यातु वतमशक्य न भतएव खसवदन केवलमनीमात्रश्न यन तत्काले थाविभू तेन अवष्टभन नियन्दता प्रयोजकसात्त्विकविकारविशेषावलम्बनेन केवल तमतिचिर व्यलोकयमित्यन्वथ । अत्रापि स्तम्भितेवत्यादौ प्रत्यकविशेषण एव क्रियीत्ग्रे चालद्धार । (अ) नेति । न विभाव्यतं वच्यमाणानां मध्य केन उपदिश्झमाना सत्यइ तमतिचिर व्यलीकयमिति न निक्षतु शक्यत इत्यथ । कि तख मुनिकुमारस्य रुपसम्पदा सौन्दर्यसमृड्रया उपदिश्यमाना सतौ तमतिचिर व्यर्लीकयम् इत्य सव व्रान्वय ! मनसिजैन मन्नेन । वा अद्यत्रा अन्य न व उन्नभिन्न नौव व्यतिविशेषेण केनापि प्रकारेण चनिव चनौयभावेन उपदिश्यमाना सतौ कथ केनाप्यनिष चनौयभावंन चतिचिरम् प्रतिबहुतरसमय यावत् त मुनिकुमार व्यलीकय दृष्टवतौ किन्तु कथ त तथा व्यलोकयमित्यहमपि न जानानौत्यथ । भब्र वितर्काखयभावी विप्रलम्भएङ्गारखाङ्गमिति प्रेवीनामालङ्कार । किन्तु अइमपि न जानार्मौ ति वाक्यख उपदिए। माना कथ तमतिचिर व्यहोकय मिति वाक्यान्तर्गतत्व ऽपि न गभि तन्वदोष प्रत्युत गुण एव चमत्काराति प्रयदीतनात् गभि तत्व गुण क्कापि इति साहित्यदप गीत । (ट) उत्चप्यति । इन्द्रियनयनादिभि उत्धिग्य उत्तीख्य तस्य मुनिकुमारस्य समौप नीयमानेव ष्ठदयेन يعي..ه سيير -صجسمي مين-ي. চিত্রিতের ন্তায় ক্ষোদিতেব স্তাষ আবদ্ধেব স্থায়, মূচ্ছিতের ন্যায় এব কোন ব্যক্তিকর্তৃক ধৃতের স্যায় হইয়া পডি লাম , আমার সমস্ত অঙ্গও নিম্পন্দ হহল এব তখন একপ্রকার বিকার উপস্থিত হইল, মুনিকুমাবের প্রতি দৃষ্টিপাত কবাষ্টবার নিমিত্ত সে বিকারকে উপদেশ না দিলেও সে সেই বিষয়ে বেশ শিক্ষিত ছিল এক সে বিকাবের স্বরূপ বর্ণনা করা যায় না, কেবল মনেই তাহা বুঝে আমি সেই বিকাবেব প্রভাবে কেবলই তাহাকে দেখিতে লাগিলাম , (ঞ) আমি নিশ্চয় করিয়া বলিতে পারি না যে র্তাহাকে দেখিবার জন্ত— কি তাহার সৌন্দৰ্য্যসমৃদ্ধি কি বা আমার মন অথবা কামদেব কি বা আমার নব যৌবন অথবা অনুরাগ, কিংবা এতদ্ভিন্ন অন্ত কেহ কোন অনিৰ্ব্বচনীয়ভাবে আমাকে উপদে দিতেছিল এই অবস্থায় আমি কোন অনিৰ্ব্বচনীয়ভাবে বহু সময় যাবৎ তাহাকে দেখিলাম , কেন যে দেখিলাম, তাহ আমিও জানি না । (१) अलुरागेणेव । (९) उपदिग्झमान । (३) भw न । ६९