পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৯৭

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५०० कादब्बरो पूर्वभागे पुष्यासव पान-मत्तया, नन्दनवन देवतया, (१) पारिजातकुसुममञ्जरोमिमामाढाय प्रणग्याभिहित -(त) ' भगवन ! सकलत्रिभुवनदर्शनाभिरामायास्तवाक्कतैरख्या सुसदृशोऽयम् (२) धखङ्ार , प्रसादीक्रियताम्, (२) इयमवत स-विलास दुर्ला'खिता समारोप्यता (४) श्रवणशिखरम्, व्रजतु सफलता जन्झ पारिजातस्य” (थ) इत्च वमभिधानाश्चायमात्मरुप स्तुतिवाद (५) त्रपावनमित लोचन ( ) तामनादृत्यैव गन्तु प्रष्ठत्त (द) । मया तु तामनुयान्तोमालोक्य 'कोो दोष , सखे । क्रियतामख्या प्रणयपरिग्रह ’ इत्यभिधाय बखादियमनिच्छ्रुतोऽप्यस्य कण'पूरोक्ता । तदेतत कात् स्रं न योऽयम यसय चायम, या चयम, (७) यथा चासय श्रवणशिखर समारुढा ततस्रव'मावेदितम्” (ध) । सुन्दरहस्तधारिणी त्यय । वकुलमालिका मेखला काखौ यखास्तथा । कण्ठमालिकाभिगैलदत्तमालाभि निरन्तर धनम् थाच्छाठित आइत विग्रह शरीर यस्यालया । नवाष ताङ्खुरा थाम्रमुकुला कण पूरा यखारतया । पुष्पासवस्य कुसुममधुरुपमदास्य पानेन मत्ता तथा । (थ) झिममिहित इत्याइ मगवस्थिति । संकलविभुवाग्य विजगद्दासिन सव ज स्य दश ने दृष्टी थभिरामाया सव ती मनोरमाया अस्या दृश्ह्यमानायास्तवाक्वते मुसटशोऽयमलङ्कार प्रसादौक्रियतां प्रसादपात्रौक्रियताम् अनुग्रहण उटच्चतामित्यथ । नन्वनया कि मया करणीयमित्याह इयमिति । अ त से अवत सस्थाने कण यी विनीस षगया क्षान्तिसम्याद्ग्र तद्धिान विषये दुख खिता बन्धं न दुष्य पितधा दु रवन लिस्तिा दुल भत्यथ *य मध्वरौ श्रवणशिखर क्षणाँपरिभाग समारीप्यताम् । पारिन्ातस्य जन्म सफलता त्रजतु तव तन्नस्ररौधारणादिति भाव । (द) इतौति । किञ्च अय पुण्डरीक भातमरुपस्य निजसौन्दर्यस्य स्तुतिवादैन प्रश सया या त्रपा लज्जा तथा अवनमिते लीचने चन्नुर्षौ येन स ताट्टश सन । ता नन्दनवनदैवताम् । (ध) मयेति । ता नन्दनवनदैवताम् अनुयान्ती पुण्डरौकमनुगच्छनौम् । प्रणयपरियक प्रीतिदानग्रहणम् । इय कुसुममञ्चरौ भनिच्छतीऽपि कर्णप रामनभिलषतीऽपि भख पुण्डरौकस्य बलात् कण पूरीकृता । तभखात् । برای تهیه میرحهای هخام به تیم. همه ہیمام s-سم میرسیم... مسم পাবিজ্ঞাতের কুসুম ও পল্পবদ্বাৰা গ্রথিত এব আজামুলম্বিত কতকগুলি মালা কণ্ঠে ধারণ করিয়াছিলেন, সেগুলি তাহাব সমস্ত শরীর আবৃত কবিয়ছিল আব তিনি নূতন আম্রমুকুলের কর্ণাভবণ ধারণ কবিয়ছিলেন এর পুষ্পেব মধুপানে মত্ত ছিলেন। তাহার পব তিনি বললেন—(থ) ভগবন। আপনার এই আকৃতি ত্ৰিজগদ্বাসী সকল লোকের দৃষ্টিতেই অত্যন্ত সুন্দর , অতএব ইহার সুযোগ্য এই অলঙ্কার অনুগ্রহপূর্বক গ্রহ। কবন , কর্ণে সমর্পণ করিয়া শোভা সম্পাদন করিতে ইহা অন্তের পক্ষে দুল্লভ , কিন্তু আপনি কর্ণেব উপরে ধাবণ করুন , আজ পারিজাতবৃক্ষের জন্ম সফলতা লাভ করুক। (দ) বনদেবতা এইরূপ বলিতে ছিলেন তখন পুগুলীক নিজেব সৌন্দর্ঘ্যের প্রশ সা শুনিয়া লজ্জায় নয়নযুগল অবনত করিয়া র্তাহাকে অনাদর করিয়াই যাইতে লাগিলেন। (ধ) এদিকে র্তাহাকেও পুণ্ডীকেব পশ্চাৎ (१) क्वचित् वनदेवतया इतिमात्र पाठ । (२) सट्टयोऽयम् । (३) प्रसौद क्रियताम् । (४) भारोप्यतां । (५) भाक्षस्तुतिवाद । (६) विलोचन । (७) यीश्य या वयम्।