পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫০৯

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५१२ काट्स्बरो पूर्वभागे स्वश सुखमिवान्तजनयता, श्रोत्रविषयेणापि रोमीद्गमानुमितसर्वाङ्गानुप्रवेशैंन मदनावशमन्त्रणेवावश्यमाना तस्या करतलादादाय ता वल्कलपत्रिका तस्यामिमा मभिनिखितामार्यथामपश्श्वम् (थ) ‘दूर सुझालतया विभसितया विप्रलोभ्यमानो मे । ह स दूव दशिताशो मानसजन्झा त्वया नीत ॥” (द) अनया च मे दृष्टया दिङ्नोह्भत्रान्त्य व प्रनष्टवत्म न , बहुिलनिश्येवान्धस्य, (थ) थइमिति । शव्दमयनापि भन्तरन्त करण रप्रशसूख जनयतैव । श्रत्र क्रिोत्चालद्धार । वीम विषयैणापि अब्दमयत्वात् केवलकण ग्राह्यणापि रामोद्गम सर्वाङ्ग पु रामञ्च अनुलित सवपु भङ्ग घु अनुप्रवी यस्य तादृश्नेव चव ष्वङ्ग षु मवश्याभाव चव ष्व व तेषु रोमाञ्चासम्भaादिति भाव । षत्र प्रतौधमाना क्रिाथीनि च लङ्कार । मदनावशमन्त्र गव कामाधिष्ठानजनकैौभूतमन्त्र गव । अत्र गुणेोत्प्रेंच लङ्कार । तत्सम्बधिना भाखापेग श्रावेश्झमाना भधिष्ठौयमाना सतौ । तस्यास्तरलिकाया । भाव्यम् भाय्र्याच्छ्न्दीवद्धामचरश्रणौम् । (ट्) दूरमिति । च् सुन्दरि ! त्वया विश्ववितया ऋषीलवद्धवलवण या मुझालतया ग्ट्घ्यतामियमचमाजा इयुब्बा मम कर विन्यस्तन खर्कौयमुतामय हारंण करणेन विप्रलोभ्यमानी विश्षप्रकर्षे श खसङ्गमर्खोभ प्राध्यमान मामुद्दिामात्झन्यपि कामावशन व ताइशचातुरौकणरािित भाव अतएव च दणि ता सूचिता आशा स्वसङ्गमाण सा यस्य स मे मम मानसाबितात् जन्म यस्य स मानसजनमा मनसिज काम इ सपदे तु मुक्तालतया सुशामय भ्रारवल्लग्बमानेन विससितया शुधस्वणागन करीन विप्रलोभ्यमान केनचिजनेन विशषप्रकष ण भक्षणीभ प्राप्यमान तया दशि ता भाशा खास्{िसतदिवो यस्म स मानसे तटाख्यसरोवर वन्द्म यस्य स ताट्टशो इ स इव दूर नीत कामुकेषु कामिनीकत कप्रचभिनखातौवोद्दीपकत्वादयन्त वद्धि त । भतएव शीघ्रमिदानीं तद्रिद्वत रुपाधरुवया विधेय इति भाव । इ सपचे तु दूर नौती विप्रक्वटर्दश प्रापित भचणलीभंन ६ सस्य नौयमान मृणालानुसरणाटिति भाव । भव पूर्णापमाखडार । भार्या जाति । इ सपचे विससितयेति थग्निस्तीकादिवत् विजेषणस्य परनिपात तथा खख्य विससितनिति विमसिता खौ सयात् काचिन्ध्र पाएद्यादिवि वचापचयै यदि इत्यमरोक्तदिशा स्त्रीत्वम् । এই কথা বলিয়া অরলিকা তাম্বলের পাত্র হইতে সেই পত্ৰখানা বাহির কবিয়া আমাকে দেখাইল। (থ) আমি কি স্তু তাহাব বিষয়েব পেই আলাপে একেবারে আবিষ্ট হইয়া পড়িলাম , কার । সে কথাগুলি দময় হইলেও অন্তরে যেন স্পর্শমুখ জন্মাইতেছিল কেবল কর্ণের বিষয় হইলেও রোণাঞ্চ উৎপন্ন হওয়ায যেন আমার সকল অঙ্গে প্রবেশ কবিয়ছিল বলিয়া অনুমান হইয়াছিল , আব সেই কথাগুলিকে যেন কামাবেশেব মন্ত্র বলিয়া বোধ হইতে ছিল তখন আমি তবলিকার হস্ত হইতে সেই বন্ধ লব পত্ৰখানা আনয়ন করিয়া তাহাতে লিখিত এই আর্য্যাট দেখিলাম— (দ) (হে সুন্দবি । ) কোন ব্যক্তি যেমন মুক্তময় হাবের ন্যায় শুভ্রবর্ণ মৃণালদ্বারা অত্যন্ত লোভ জন্মাইয় আপনার অভিমত দিক্‌ দর্শন কবাইয়া মানসসরোবরজাত কোন হ সকে দূরে লইয়া যায়, সেইরূপ তুমি মৃণালেব ন্তায় শুভ্রবর্ণ মুক্তমালাম্বারা অত্যন্ত লোভ জন্মাইয়ু আশা দেখাইয়া আমার কামবেগকে অত্যন্ত বর্ণিত করিয়াছ।