পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫২০

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

वाघाधt कामात पुण्डरीकावस्थावणना । ५२२ मानम्, (न) अतिनिष्यन्दतया (१) ह्रदयनिवासिनी प्रिया द्रष्ट मन्त प्रविष्टीरिवासह्यसन्तापसन्त्रासप्रखोर्नरिव मन चंोभप्रकुपितेरिव उन्मुच्य गतैरिन्द्रिये शून्योछत शरोरम्, (प) नियन्दनिमोजितेनान्तज्चलकादनदइनधूमाकुलिताभ्यन्तरेदेव पद्मान्तर (२) विवरवान्तानेकधारमनवरतमीचणयुगले वाष्यजलदुद्दिनसुत् स्वजन्तम्, (फ) आलोहिनोमधरप्रभामनङ्गाग्ने प्रदइतो ह्रदयम् ( ) उच्चससपिणी शिखामिवादाय निष्यतझिरुच्छासेस्तरलीक्कतासञ्चलताकुसुमकेशरम, (ब) ہی اہم بسی۔ مهم مه-شیخ محمد احم (प) भतौति। असन्नासन्तापात् य सनत्रासी भय तेन प्रीन लु क्कायित रिव तथा मनस चीमेण उद्देजनेण भसत्पथगमनेनेत्यथ प्रकुपित कु,बरिव खषा चिरादेवातिसाधुत्वादिति भाव भतएव उन,य खखख्यान १िछ्ाय गर्तैरिन्द्रियं इतपट्ादिभि शून्चौक्त परित्यक्ता श्रीौर यस्य तमिव स्यितम् बग्वधट्टशौ निष्पन्दता ग खादिति भाव । अत्र प्रथमास्तिस्रो वाच्या कियोन्म चा अन्ता च शरौरएन्यीकरणोत्य चणादिवाद्यभावाच्च प्रतौथमाना क्रिवीत्र्य वा इत्यासामङ्गाद्विभावन सङ्खर ! ST BBBBS BBBB DD DDBB BBBBBB BB BBBB BBB BB BBBBBB بی سیم حسن عبیه میهم कामाग्र ध म राकुलित ম্মামনুখন স্বল্প तेनेव यितुं शक्तश्च .मव्याप्ती यजनिकौखनस्य खाभाविकत्वादिति भाव ईचशयुगलेन नयनइथेन करर्णन पद्मान्तरविवरैभ्यी नयनलोमान्तरालदैशभ्य वान्ता उद्गौण अनेका धारा यख तत् वाष्पजलदुद्दि नम् भक्षुगलहटिम् उत्सृजन्त वध न्तम् । भत्र पदाथ हैतुक काव्यखिच्च मदनदइनेति निरद्व केवलरुप । क्रियौन्ग्रेचा चैर्यतेषामङ्गाङ्गिंभावन सढर । (ब) आखाहिनौमिति । हृदय प्रदइत अनङ्गाग्र कामानलख ऊन्न ससपि यौम् उपरिगामिनौं शिखानिव आलीहिनौम् भारताम् अधरप्रमान छक्षान्तिम दाय नियतििन गैच्छष्ट्रि उच्छूासनि श्वासै करणों तरलौक्कता क यता भासन्नलतान कुसुमकेशरा पुष्यकिञ्चरका येन तम्। धत्र निरङ्गकेवलरूपक यौ।त्यपमा च जात्युत् देति केचित् भनयीरङ्गाब्रिभावेन सदर । चालोहिनीमिति स्नेत तइरितलाइितभ्यती न इति लीडितशब्दस्य तकारस्य जकार ! ASA SSASAS SSAS SSAS تعیی ভয়েই যেন দর্শনদান না করিয়া তাহাকে সন্তপ্ত কবিতে ছিলেন। আর পুণ্ডরীক অভ্যস্ত BBBBB SBBB S BBBBS BBB BBB BBB BB BBBBBBtB LSBBB BBDD নিমিত্ত ভিতরে প্রবেশ করিয়াছিল অসহ সস্তাপের ভয়েই যেন লুক্কাস্থিত হইয়। বহিয়াছিল এব মন অসৎপথে ধাবিত হইয়াছে বণিয়াই যেন ক্রুদ্ধ হইয়া স্ব স্ব স্থান ত্যাগ করিয়া চলিয়৷ গিয়াছিল , স্বতবা শরীরটা যেন শূন্ত পড়িয়া রহিয়াছিল, (ক) নয়নযুগল নিপদ ও মুদ্রিত হইয়া বহিয়াছিল তাহাতে বোধ হইয়াছিল যেন অস্তরে ও জ্বলিত কামানলের ধূমে সেই নয়নযুগলের অভ্যস্তরদেশ ব্যাপ্ত রহিয়াছে এবং নয়নলো ের অন্তৰাল হইতে বহুতর ধারা পড়িতেছিল--এই অবস্থায় সে অবিশ্রাস্ত অশ্রুবর্ষণ কবিসেছিল । (৭) কামানল পুণ্ডরীকের DDB BB BBBBBS BBDS DDB BBBStD BBBB BH BBBBB LLSB BB লইয়া নির্গত নিশ্বাসম্বারা পুণ্ডরীক নিকটবর্তী লতার পুষ্পের কে রিগুলিকে কম্পিত করিতে (१) अतिनि अन्दत । (३) भविपक्षान्तर । (३) द्वदयात् ।