পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৫৪

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कथायाम. उपरतपुण्डरीकवणना । খুস্থ ৩ उत्खण्थ प्रयासि, कुतस्तवेयमतिनिष्ठ रता, कथय त्वदृते क्व गच्छामि, क याचे, क शरणमुपेमि । भन्धोऽसिा सष्ठत , शून्धा मे दिशो जाता , निरर्थक जीवितम्।, अप्रर्योजन तप , नि सुखाश्व खीका । केन सङ्घ परिभ्रमामि, कमालपामि (१) । उत्तिष्ठ, देहि ने प्रतिवचनम, (२) क्क तन्झमीपरि सुद्रत्ग्रेम, क्क सा स्त्रितपूर्वाभिभाषिता च” इत्यो तानि चान्धानि च विलपन्त कपिञ्जलमर्थौषम् (म) । तच्च श्रुत्वा पतितरिव प्राणदूरादेव सुतकताराक्रन्दा सरस्तीरखतासतित्रव्यमानाशुकीतरीया (३) यथाशक्तित्व रतेरज्ञात-सम-विषम-भूमिभाग विन्यस्त पादप्रचेपे प्रख्वलन्ती पदे पदे, केनाप्यत्चितप्य नीयमानेव त प्रदेश गत्वा (य) उत्सृज्य परित्यज्य । त्वदृते त्वां विना । शरणमुपमि रचक लझे । अन्योऽधिा त्वच्छीकजनितमीईन डटिशक्ति लीपादिति भाव । शून्बा इत्यादौ सव व तवाभावादिति भाव । लोकास्त्रौणि भुवनानि निन विद्यते सुख येषु ते तादृशा जाता इति शेष । विातपूव म् अभिमाषितु शौल यस्य स तथोक्तम्तख भाव सा । श्र धाती शाब्दबोधे प्राप्ति झुवतां नया कानां मते परिचितखरेणीञ्चाय्यमाण हा इतोऽसौत्याटिशब्द कपिञ्चलविषयक बोधमाकष मिथघ यत्राश्रौष द्रौपदीं रङ्गमध्य इत्यादिवत् । श्रवणन्द्रियजन्थप्रत्यचे शक्ति ब्रुवतां मौमांसकाना मत तु तादृशशाब्दबोध एव खघणेति । अथवा धातूनाभनेकाथ त्वात् थश्रौष खरपरिचया तुमानेन कपिञ्चलमशासिष मिश्यश्च । (य) तथति । पतित रिव वर्गित रिव वर्गिन्तुमुद्मत रिवेत्यथ प्रार्णरुपलचिता दूरादैव मुना एकतार भयुष भाक्रन्दी रीदन वनिय या सा सरसतौरेषु या लतातिासु भासनया लघयितुमनवकाशात् सखप्रतया मुठयमान झिद्यमानम् अ शुक प रहितवस्त्रम् उत्तरौय वस्त्रञ्च यस्या सा यथाशक्तिलरित ग्रनधनतिक्रमंण शौघ्रक्करै चशातषु अपरिचितेपु समविषमेषु समतखविषमतलेषु भूमिमागैषु विन्यस्त पान्प्रदेप पदै प्रदै प्रख्खलन्यौ केनापि जनेन যাহার সঙ্গে কখনও দেখা হয় নাই –এইরূপ লোকের ন্তাষ তুমি কেন আজ আমাকে ঠাৎ পরিত্যাগ কবিয়া যাইতেছ ? তোমার এই অত্যন্ত নিঠুবতা আজ কোথা হইতে আসিল ? BB BBBB BBB BBBD DDD BBB BB BBBS BBB BB BBBB BBBS লইব ? আমি অন্ধ হইয়াছি, আমার সকল দিক শূন্ত বলিয়া বোধ হইতেছে জীবন অনর্থক মনে করিতেছি তপস্তার প্রয়োজন নাই এবং ত্রিভুবনের কোথাও মুখ নাই । আমি কা রে সহিত বিচরণ করিব এব কাহার সঙ্গে আলাপ কবিব ? ভাই । উঠ কামার কথার উত্তর দাও, আমার উপরে তোমার সেই বন্ধুর প্রণয় কাজ কোথায় গেল এব ঈষৎ হস্ত করিয়া সেই কথা বলা আ জ কোথায় গেল , তখন কপিঞ্জল এই বকম ও অষ্টান্ত অনেক রকম বিলাপ করিতেছিলেন। (१) उांश उनिश श्रांभांद्र था।१८यन दर्शािङ श्हे८ड डेशृङ श्रेण श्रामि नूब श्हेtठहे মুক্তকণ্ঠে উচ্চৈ স্বরে রোদন করিয়া উঠিলাম, সরোবরের নিকটবর্তী লতাতে স ম গু হইয়া আমার পরিহিত ও উত্তরীয় বস্ত্র ছিড়িয়। যাইতে লাগিল অপরিচিত সমতল ও বিষমতল ভূমিতে (१) केन वार्ता करीमौत्वधिक पाठ क्वचित् । (९) मे विजपत । (३) खतानुषज्यमान ।