পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৫৬

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

क्षधाय्iम. उपरतपुण्डरीकवणना । ሂሂፈ देइतया पृष्ठभाग-निपतितैर्मदन दहन-विब्रख-द्रदय न्यस्त इस्त नख मयूखच्छलेन चिकृद्रितमिव शभिकिरणे , (स) उच्छुष्क पाण्ड्रया (१) खविनागोत्पञ्चया (२) मदनचन्द्रकलयेव चन्दनलेखिकया रचितललाटिकम्, (३) (ह) “मत प्रियतर (४) तवापरी जनो जात ” इति कुपितैनैव जी'वर्तन परित्यक्तम्, (च) मझष्टव्यद्यया। सहैतानसून खयमिवोत्स्वच्य निर्खेतनतासुखम (५) अनुभवन्तम्, (क) अनङ्गयोग विद्यामिव ध्यायन्तम्, (ख) अपूर्वाग्राणायाममिवाभ्यस्यन्तम्, (ग) उपपादितास्मदा (स) इञ्चिति । इन्दुर षेण भधिकोशापकतया चन्द्र प्रति विद वेग परिवति तदैघ्तया न्युजोक्कतशरीरतया हेतुना पृष्ठभागनिपतिरः शशिकिरण मदनदइनेन क मानलन विद्वल यत् इदय सत्र न्यस्तस्य इस्तस्य नखमय खानां छ्लेन छिद्रितमिव सञ्चातचिक्कद्रमिव वचसोऽध प्रसृतानां नखकिरणानामपि पृष्ठपतितचन्द्रकिरणतुण्यत्वात् धर्मौ चन्द्रकिरणा एव दैछ भिखा नखकिरणचक्कन्नेनाधैोनिर्गता इव त सर नाथ । क्रिोतम्रै बा ! (घ्) उच्छुकोत । उच्छुष्का चासौ पाण्ड रा चैति तथा ब्वखामनी विनाशाय उत्पन्नया उदितया अकाल भरद्याने च ग्रहनचवाणामुदयस्य विनाशसूचकत्वादिति भ व मनसश्व धौ या चन्द्रकला तयेव ख्यितया चन्दनख लखिकया भईचन्द्राकारया रेखया रचित कपिञ्चलेन निमित ललाटिका ललाटे तिलकविशेषो यख तम्। भव द्रव्योत्प्रचालडार । (च) मत्त इति । अपरी महाश्वतालचण इत्यथ । इति हेती । क्रियोत्प्रेंचा । (क) मन्थेति । खयमात्मन च मन्थन्यथया कामपौङ्गया ख६ एतान् षसूल माषान् उत्खञ्च व विहायैव शिक्ष तनतया यत् सुख तदशुभवन्तम् सत्यां वेतनीयां नानाविधसखtरभावावशॆन दु खसन्ध्रिवादिति भाव । बव सङ्गोशिक्रिथीत्मिचयीरङ्गाङ्गिंभावन सद्भर । (ख) अनङ्ग ति । अनशसस्वधिनी या योगविद्या त ध्यायन्तमिव नियन्दलादिति भाव । क्रिथीत्ग्रेचा। যেন বলিতেছিলেন যে তোমাব জন্তই আমাব এই অবস্থা হইয়াছে। (স) চন্দ্রের প্রতি বিদ্বেষবশত ,দহ পরিবর্তিত করিয়া শয়ন করিয়াছিলেন তাহাতে পিঠের উপরে চন্দ্রর কিয় | পডিয়াছিল, তাহাতে বোধ হইতেছিল যে কামানলে বিহবল হৃদয়ের উপরে যে হস্ত স স্থাপন করিয়াছিলেন, তাহার নখের কিবণচ্ছলে সেই চ দ্রর কিরণগুলিই যেন দেচ ভেদ করিয়া ছিদ্র করিয়া দিয়াছে। (ই) কপিঞ্জল চন্দনের রেখাদ্বারা ললাটে একটা টিপ তৈয়ারী করিয়া দিয়াছিলেন, সেট শুকাইয়া পাণ্ডুবর্ণ হইয়াছিল তাহাতে বোধ হইতেছিল যেন নিজের বিনাশের জন্ত মদনবন্ধু চন্দ্রের একটা কল অস্থানে উদয় পাহয়াছে। (ক্ষ) অমি হইতেও তোমার অধিক ীিয় অন্ত লোক জুটিয়াছে ইহা মনে করিয়া ক্রুদ্ধ হইয়াই যেন জীবন তাহাকে পরিত্যাগ করিয়াছিল। (ক) নিজেই যেন কামবেদনার সহিত সহিত প্রাণ পরিত্যাগ করিয়ু অচৈতন্যমুখ অনুভব করিতে ছলেন। (খ) কামদেবের যোগবিস্তাকে যেন ধ্যান করিতে (१) पाण्ड्,तया । (२) खर्दइविनाशीत्पन्नया खविनाभीत्पातीत्पद्रया । (२) ईषदाखच्यपरिहत तारकेष भनवरतरीदनाताचथ प्राचीत्सर्गीपजातासुचथतया रुथिरमिव चरता मदनभरग्रख्यवेदनाकूणितबिभागेग नातिनिर्मौखितेन खोचनयुगलेन । अत्यधिक पाठ कचित् । (४) चतिप्रियतर । (५) नियतनासूखन्।