পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৬

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कथामुखे चण्डालकन्धावण नम् । ३५ तया पावकेनेव भगवता रूपक [१] पचपातिना प्रजापतिमप्रमाणीकुर्वता जातिसंशोधनाद्य'मालिङ्घ्रि'तदेच्हाम , [च] अनङ्ग-वारण-शिरोनचत्र-मालायमानेन रीम राजि लतालवालकेन मेखलादाञ्जा परिगतजघनखलाम्, [२] [छ] अतिस्थूल सुक्ता फल्ल घटितन शुचिना हारेण गङ्गास्नीत्वेव कालिन्ट्ांशाखुया জন্মত্যক, [ज] (च) थापिञ्चरणति । थापिञ्चरेण ईषत्पन्नखवण न उत्सपि ना ऊह गामिना नूपुरमशैनां प्रभाजालेन किरणसमृछैन रञ्चितशरीरतया हेतुना रुपंकपक्षपातिना केवलसौन्टथ्र्यादरकारिणा अतएव प्रजापति सृष्टिकर्तार ब्रह्माणम् षप्रमाणैौकुवि ता त्व'ममामौदृशसुन्द्री विधायापि धश्य झां चण्डालजातिमंव क्तवांश् तदश्मशt योधयामि इत्यमनियतकात ताक वि धता विधाळविहितस्यान्यथाविधानाभिखाषित्वादिति भाव भगवता पावकैन भग्निर्देवेन जातिसयोधनाथ चण्डालत्वनाशुवैखखा शुचित्वजननाथ मित्यथ भालि'द्वतदै हानिव ञ्चिताम्। सव मग्री प्रतप्त ग्रध्येत दृति पौटौनसिवचनाटिति भाव । ऊसै गामी नपुरमगौन किरणसमूह प्ररीरपरिवेटनादप्रिवत् प्रतौयते सति सरलाथ । अत्र क्रिथीत्मघालडार । तेन च वझ रपि कामावेशहेतुभूततया परमसौन्दर्य व्यज्यत इत्यलडारण वस्तुध्वनि । (क) अनङ्गति । अनङ्गस्य मटनस्य यी वारणेो हस्तौ तस्य णिरप्ति या नक्षत्रमाला सप्तवि शांतिर्सख्यकमुक्ता यथितमाखा तडदाचरता मन्नसब्बन्धितया मदनोद्दीपकत्वादिति माव । स व नचत्रमाखा स्यात् सप्तवि प्रति मौतिक इत्यमर । रोमराजि गाभिदैयात् सरलभावनीत गामिनो या लीमश्रणी संव लता तख्या आखवाल मूले जलदानाय खख्यजलाधार तत्खकपेण मेखलादाखा काचौगृणेन परिगत परिवेष्टित जधनखख नितग्वदेशी यखास्ताम् । चत्र रीमराजौ खताबारीपी मेखलादाखि थालवालत्वारीपे निमित्तमिति परम्परितरूपकमखड़ार क्यङगतीप मया सर्द्धौर्यते । " کنار (ज) भतौति । धतिख लमु झाफल मौक्तिक घटितेन निणिा तेन शुचिना शुधवण न झारण काखिन्दी अड्या यमुनाधमेष गब्राखीतसैव छत !कष्ट्यही गजावलखन-समीपावयष यखाताम् । भत्र चण्ड़ाखकन्यायां समानझामतया यमुनाधमाद्धान्तिमानलडार हारे गङ्गाप्रवाइलोत्प्रेचणाइबीत्ग्रेचा चानर्योरङ्मङ्घिमावेन सङ्कर । কবিতে অসমর্থ হহয়! ভূতলে যেন নুতা পল্লবসমূহ বিন্যস্ত করিয়া করিয়া তাহার উপরে সে গমন করিতেছিল , (চ) নুপুরন্থ মণিসমূহেব ঈষৎ পিঙ্গলবর্ণ ও উৰ্দ্ধপ্রসারী কিরণজালে তাহার সমস্ত রব বঞ্জিত হইয়াছিল সুতরাং একমাত্র রূপের পক্ষপাতী ভগবান অগ্নিদেব যেন বিধাতাকে অগ্রাহ কবিয়া তাহার চণ্ডালজাতি শোধনের নিমিত্ত সমস্ত দেহ অলিঙ্গন কবিতেছিলেন , (ছ) মদনহস্তীব মস্তকস্থিত মুক্তামালার স্থায় এব লোমশ্রেণীরূপ লতাব আলবালস্বরূপ কাঞ্চীদামে তাহার নিতম্বস্থল পবিবেষ্টিত ছিল , (জ) বৃহৎ বৃহৎ মুক্ত নিৰ্ম্মিত শুভ্রবর্ণ একছড়া হাব তাহার কণ্ঠদেশে গতি ছিল তাহাতে প্রতীতি হইতেছিল যেন যমুনাক্রমে গঙ্গাস্রোত আসিয়া উহার কণ্ঠাবলম্বন করিয়াছে , (ঝ) শরৎকালে যেমন (१) रुप एव पचपातिना। (२) रसनादास्त्रा परिगतजधनाम्।