পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৯৪

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कथायाँ केयरकेण सह तरलिकाया प्रागमनम् । 발 मनीहारिणि विद्याधराभिसारिकाजने, (श) चन्द्रार्पोड सुप्तामाखोवय महाश्र्खता पल्लवशयने शन शन (१) ससुपाविशत । अस्या वेलाया कि नु खलु मामन्तरेण चिन्तयति वंशम्यायन , कि वा वराको पत्रलेखा, कि वा राजपुत्रलोक ” इति चिक्लयश्नं व निद्रा ययौ (ष) । श्रय चीणाया चपायामुषसि सन्ध्यामुपास्य शिलातलोपविष्टाया पवित्राएखघमषणानि जपन्या महाश्खतायाम्, निर्वात्तितप्राभातिकविर्धौ चन्ट्रार्पौडे, (स) तरलिका षोडशवर्षवयसा सावष्टम्भाक्कतिना मद खेदालस गजराज गमनगुरूणि (२) पदानि निचिपता, (ह) पर्यये षितचन्दनाङ्गराग धूसरोरुदण्ड़इयेन, कुडुमराग पिञ्चरारुगी, चार्मोकर श्रृङ्खला कलाप निविड नियमित कचाबन्धाति विद्याधराभिसारिकाजने विद्वते भन्योद श्नभयात् पलायिते सति । अत्र हर्ष त्यादिपदै निरङ्ग केवलक्ष्पकम् तथा हारिणौत्थस्य एकक्रमेणाद्वीय मकच्चानर्थी ससृष्टि । (ष) चन्द्रेति । सुमा निद्रिताम् ! मामन्तर्रण विना । वरावौं जुद्रा । (स) भथेति । चपायां रात्रौ चौणाया घयमुपगतायाम् उषसि प्रभातकाले । भघमष णानि ऋतञ्च सत्यच्च त्यादिमन्त्रान्। चन्द्रापौर्ड च निव रिती निष्पादित प्रामातिकविधि प्रात क्कत्य वैन तझिन् सति । (६) तरैति । प्रत्यूषखव केय रकनाखा गन्धव दारकैणानुगम्यमाना तरलिका प्रादुरासौदिति परीणान्वय । अत्र ढतौय कवचनान्तपदानि गन्धव दारकैगति वच्यमाणस्य विशेषणानि । षोडशवर्षाणि वयी यस्य तेन । सावष्टम्भा सपना भक्वितिय स्य तेन । मदखदैन मदवहनपरिश्रमेण अलसी मन्दागामौ यी गजराजस्तस्य ब गमने गुरूणि मन्थराणि पदानि पढ्न्यासान् नि'चपता कुव ता । अत्र लुप्तीपमालङ्कार । (च) पर्य,षितेति । पर्य वितेन पूव दिनक्कतत्वाद्वगतरसैन शुष्कोण चन्दनाङ्ग रागैण ध सरम् ऊरुदण्डहय পবমমুনাব বিদ্যাধবরমণীগণ শিfারের স্থায় আনন্দাশ্র বিসর্জন করত অভিসারে যাইতেছিল কিন্তু চদ্রের উদয়ে অন্ধকার দূৰীভূত হওযায় তাহারা ইতস্তত পলায়ন কবিতে লাগিল । (ঘ) এমন সময়ে চন্দ্রপীড় মহাশ্বেতাকে নিদ্রিত দেখিয়া ধী র ধীরে পল্লবমষ যার উপরে উপবেশন করিলেন এব চিস্ত কৰিতে লাগিলেন যে “এক্ট সময়ে বৈশম্পাযন আমাকে না দেখিযা কি চিন্তা করিতেছেন বালিকা পত্ৰলেখাই বা কি ভাবিতেছে এবং রাজপুত্রগণই বা কি মনে করিতেছেন এইরূপ চিন্তা করিতে করিতে নিদ্রিত হইয়ু পড়িলেন । (গ) তদনন্তর রাত্রি অতীত হইলে প্রভাতকালে মহাশ্বেত সন্ধ্যাবন্দন শেষ করিয়া একখানি প্রস্তরখণ্ডের উপরে উপবেশন কবিয়া পবিত্র অঘমর্ষ - স্ত্র জপ করিতেছিল চন্দ্রপীড়ও প্রতি কৃত্য সমাপন করিয়া অবস্থান কবিতেছিলেন। (হ) এমন সময়ে কেযুবক নামে একটী গন্ধৰ্ব্ববালকের সহিত তবলিক আঃি য়ু সেই প্রভাতকালেই সেখানে উপস্থিত হইল সেই বালকটর বয়স ষোড়শ বর্ষ বলিয়া বোধ হইতেছিল আকৃতি ও সবল ছিল এব সে মদ পরিশ্রম মনগামী গজরাজেব দ্যায়_ধীরে ধীবে পদক্ষেপ করিয়া আসিতেছিল (ক্ষ) শুষ্ক to জৰিল ৰিদিন্ধি। (ર) मन्दखेदालस নগমাননযন্তৰি।