পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৯৮

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कथायाँ कादम्बरोप्रत्धुत्तरम् । ६०१ रटहनिवासापराधनिगुणोपालम्भ ? कि प्रमविच्छदाभिखाप ? विा भशाजनपरित्धागोपाय ? किवा प्रकोप ? (ट) । जानास्येव मे सहज-प्रम-निस्धन्द-(१) निर्भर हृदयम्, एवमतिनिष्ठ र सन्दिशन्तो कथमसि न लजिता ? तथा मधुरभाषिणी केनाखि शिचिता वक्त्मप्रिय परुषमभिधातु वा ? (ठ) खखोऽपि तावत् क द्रुव सह्रदय कर्नेोयस्यवसानविरसे कर्णप्रणोदृशे मतिसुपसर्पयेत् ? किमुतातिदु खाभिहतक्ऱृद्योऽस्मद्दिधी जन (ड) । सुप्वद्दु खखेदित चि मग्लखि वीव सुखाशा ? केव निष्ठति ? कोट्टशा सग्योगा ? कानि वा हसितानि ? (ढ) । येनेदृशी दशामुपनीdा प्रियसखी कथमतिदारुण तमइ विषमिवाप्रियकारिण ്സ്ബാ مسیحیی تعمیمیامی -هیعیمیہ، مسX^بrم حسی عمیم یحیی. مي په مرسw खभ उपयुतातिरखार त्वयि वने वसन्तामह यदृग्टई वसामि तस्यापराधस्य योग्यतिरखार किमित्यथ । प्रम विकिदाय थावयी प्रषथमङ्गाय अभिलाप उति । भक्तजनस्य अनुरताया ममेत्यथ परित्यागीपाय किम् । (3) जानासौति । सहज खाभाविक यत् ग्रेम तख निस्यन्दन रसेन निभ र परिपूण मे मम हदय त्व जानास्र्यव तथापि एवमतिनिछुर पाणिग्राइग्रीपदैग्ररूप सदिग्रन्तौत्यन्वय । (उ) ननु पाणिग्राइणे की नाम दोष यन व व मत्य दातयसौत्याह खरश इति । खख्योऽपि सुखशान्तयादिना स६ था सूरह्यचित्तैोsपि क द्रुव सह्रदयो हिताइितविवेकसमर्थी जन ईट्टश कनौयसि अत्यश्य तुच्छ्रे अबसागबिररी परिणामदु खदायिनि तवव विरइदिनेति भाव कर्मणि पाणिग्राइणं मतिमुपसप येत् बुद्धिमपयेत् भपि तु कोऽपि नेत्यथ । सुतरां बलवदखरथानां मादृशानान्तु का कथेत्याह किमुतति । तव दारुणदु खजनितातिदु खेनैव मे ड्रदथमभिइतमिति स्{ाव ! (ढ) ननु सत्यप्यवसानविरसे कर्मण्यविान् सुखादिकमपि दृश्यत इत्याइ सुद्वदिति । सुद्वद्दु खखेदिते बन्धु,जनदु खजनितदु खभाराक्रान्त । निष्ठ ति शान्ति । दु खभाराक्रान्त हि मनसि सुखादौनां प्रवेश्यावकाग्र एव नास्तौति भाव । معمیہ یتیمم مدتیsعیحیر আমাকে যে বলিল—লে বিষয়ে তুমি বল দেখি—এটা কি গুরুজনের অনুরোধ ? না— আমার মন পরীক্ষা করা ? কি বা আমি যে গৃহে বাস করিতেছি, এই অপরাধের উপযুক্ত তিরস্কার ? অথবা প্রণয় ভঙ্গ করিবার জন্য একটা কথা মাত্র ? না—অমুরক্ত লোককে পরিত্যাগ কবার একটা উপায় ? অথবা কোন কার জনিত ক্রোধ ? (ঠ) তুমি ত জনই যে অমাব হৃদয় তোমারই অকৃত্রিম প্রেমে পরিপূর্ণ, তথাপি তুমি এই জাতীয় অত্যন্ড নিষ্ঠুর খবর পাঠাইতে লজ্জিত হও নাই কেন ? তুমি সেইরূপ মধুরভাষিণী ছিলে , কিন্তু এখন অপ্রিয় ও নিষ্ঠুর কথা বণিতে তোমাকে কে শিখাইল । (ড) দেখ মুস্থচিত্ত হইয়াও কোন বুদ্ধিমান ব্যক্তি তুচ্ছ ও পরিণামে দুখজনক এইরূপ কধ্যে মন অর্পণ করে ? সুতরা, আমাদের মত অত্যন্ত দুখিতচিত্ত লোকের কথা আর বলিব কি ? । (ঢ) আর যে চিত্ত, BBBB BBB BBB BBBS BBB BBB BBB BB B S gBB D BS BBBD বা কি ? এবং হাস পরিহাসই বা কি ? । (৭) বিশেষত যে কন্যপ, তোমাকে এইরূপ (१) निष्पन्द । e६