পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৬২২

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वाद्यायाँ कादम्बरीवर्णना । ¢oቧ उत्क्कष्टकैमतालोपल्लाभरणमयमासुज्ञकर्षीत्पलच्थ तमधुधारासन्दंहकारिथ कर्णपाश दोलायमानपत्र-मकर (१) माणिक्यकुणहख दधतीम्, (ब) पाटलीछातखलाटेन सोमन्तचुम्बिनखडामणे चरतांशुजालेन मदिरारसेनेव प्रचाख्धमानदोघ केण कखायाम् (भ) देहाचैप्रविष्टहरगवित गौरो विजिगोषयेव सर्वाङ्गानुप्रविष्ट मकाथदर्शितसँौभाग्यविशेषाम्, (म) उर समारोपितैकलद्मो (२) मुदित-नारायणावलेप हिरणाय प्रतिविब्बकेनि’जरुपती लच्नीशतानीव खअन्तीम, (य) उत्तमाङ्गनिहितैवा -്. ു്. ു." ബ്. چاحی حبیبی متحد» به اتحاد جمجمه جعه بی. ام. همسری (क) उत्झटति । उत्झट यत् ईख खण ख तालौपद्भवत् ताखौपत्रवत् भाभरण तन्मय तइयाप्तम् अतएव भामुक्तात् परिहितात् कर्थीत्पखात् ध्रुता गलिता या मधुधारा तखा सन्देश श्चम कर्पु यौल यस्त्र तम् तन्छाधु धाराया अपि पौतत्वादिति भाव तथा दीखायमान पत्रमवारमाणिक्धकुण्ड़खम् च शमेईन पत्राकारमकराकारक मणिमथकुण्ङख यत्र तम् कण पाण प्रशस्तकण दधतौम् । यत्र धान्तिमानलड़ार । (भ) पाटलीति। सौमन्त चुस्वति स्व शतौति तआत् चखामणे चरता पतता तथा पाटलौछातमारलौक्कप्त लखाट येन तेन मदिरारसैलेब ख्यितेन रज्ञातासाम्यादिति भाव अ शुशालेग प्रयास्यमान सा अग्नमानी दौध केशकलापी यस्याख्ताम् । अत्रीपमालड़ार । (म) दैछाड् ति । दैइस्याईमात्र प्रविष्ट न हर्रण गविता या गौरी पाव तौ तखा विजिगौषयेव विजेतु मिश्चैव स्वक्ष वङ्ग षु षजुप्रविष्टं ज झरक्षिरीधिना मन्थन दृित प्रक्षटित सौभाग्यविशेष पाव तौत शुभा। दृष्टाधिक्य यस्यास्ताम् दहार्बप्रविष्टदेवापेचया सर्वांछप्रविष्टदेवाया सव थ व सौभाग्यविशेष सगावतौति भाव । भत्र हेतूत्मचाखडार । (य) उर इति । उरसि वदसि समारोपितया खाफ्तिया एकया खच्या मुदितख द्रष्टख नारायणसा य भवलेपरतल्लचौसमारीपणजनिती गव खख इरणाय दूरौकरणाय प्रतिविश्वकभित्त्यादिष्वात्मन प्रतिमाभि निजरूपत -ہمہ .می. حمہ نہیمہ-سمیہ6حمتہ‘‘ যৌবনহস্তীর দুইটী মদজল রেখ-স্বরূপ ছিল , আর তাহারস প্রতি অমুক্তে কামদেবের হৃদয়ের স্তায় ছোট একটা তিলক তরল মন শিলাদ্বারা মুখমণ্ডলে চিত্রিত ছিল , তাহতে তাহার ললাটদেশ বিশেষ োভা পাইতেছিল। (ব) কাদম্বরীর সুন্দরকর্ণযুগল তড়িয়তের পাতার আকৃতি উৎকৃষ্ট সোণার অলঙ্কারে পরিপূর্ণ ছিল , সুতরা সেই ক যুগল পরিহিত কর্ণোৎপল হইতে বিগলিত মধুধারার ভ্রম জন্মাইতেছিল , আর তাহাতে, পত্র ও মকরাকৃতি দুইটী মণিময় কুণ্ডল দুলিতেছিল। (ভ) কাদম্বরীর সমস্তে একটা মণি ছিল তাহ হইতে মদিরার স্থায় রক্তবর্ণ কিরণজাল নির্গত হইয়া ললাটদেশ রক্তবর্ণ করিয়া দীর্ঘকেশকলাপকে বিধৌত করিতেছিল। (ম) মহাদেব, দেহের কেবল অৰ্দ্ধাংশে প্রবেশ করিয়াছিলেন বলিয়াই পৰ্ব্বতীয় গৰ্ব্ব জন্মিয়ছিল , তাই তাহা ক জয় করিবার নিমিত্তই যেন কামদেব কদম্বরীর সকল অঙ্গে প্রবেশ করিয়া, পাৰ্ব্বতী অপেক্ষায় কাদম্বরীর অতিরিক্ত সৌভাগ্য প্রকাশ করিতেছিলেন। (ঘ) একটী মাত্র লক্ষ্মীকে বক্ষে ধারণ করিয়াষ্ট আনন্দি-চিত্ত নারায়ণের যে অহঙ্কার জন্মিয়ছিল তাহ দুর করিবার নিমিত্ত কাদম্বরী যেন নিজের আকৃতি হইতে (१) मरकत । (२) उर समारीपितलकौ । లిలి