পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৬৫০

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धाथायाँ कादब्बय्यां खविकारजा चिन्ता । ፴ኳኳ ‘मिष्षाविणीत ! यदि मया ण छात्चम्, एष गच्छ्ामि' ति भ्राड्ोत्कम्पचक्षितिज परिइसितैव चन्द्रार्षीडेन, तत्परित्यागसङ्कख्य समकाखप्रखितैण कण्ठखग्नेन पृप्टव जीवितैन, “अविशेषङ्गे ! पुनरपि प्रचाखितलोचनया दृक्षतामर्सी जन' प्रत्याख्यान योग्यो न वे”ति तत्कालागतैनाभिहितैव वाध्ग्रेण, “अपनयामि तेसञ्चासुभिधैंयीव खेप”मिति निर्भत्सितैव मनोभुया, पुनरपि तर्थव चन्द्रायोडाभिसुखह्रदया बभ्पूव (न) । तदेवमख्तमितप्रतिसमाधानबला (१) बलात् प्रमावेशीनाख्वतन्त्रीझता परवरी भन्तगैतेन भावनावशाबित्तखितेन इदयख कादग्वय्यां एव चितख थ उत्कम्पश्वन्द्रापौड़गमगब्रासादत्यन्त कम्यन तेन चखिती छदयात् प्रखित तरुकण्यनेन यथा तत्स्थ पचौ प्रतिष्ठते तददिति भाव तेण तथाविधेन चन्द्रापौकन रै मिष्याविनौते ! कादण्वरि ! यदि मया भन्छापौड़ न तव झत्य प्रयोजन नास्ति तदा एषोऽङ मच्छामि इत्युका परिहसितेष । मृदये मां गाढ़ खापयसि धथ च सडख्ययसि तेन चपलेग न मे कार्य मिति परिहास सन्भवत्येवेति भाव । अत्र शियीत्म चाखडार । तख चन्द्रापौड़ख परित्यागसङ्ख्यसमकाले प्रखिातेन देश विहाव चलितेन भतएव कण्ठलप्रम जीवितेन जौवनेन पृष्ठ व भइमपि गच्छामि इत्यामनित्रतेव ! भन्थोऽपि प्रख्यातुकाम प्रियतम कपङमाखिङ्गध खप्रख्यान पृच्छति । क्रियीत्म चा तया च चन्द्रापौड़परित्यागे जौवनमपि परित्यज्ञा भवे दित्धनुरागस्य पराकाष्ठा व्यज्यत इत्यखदारैच वस्तुध्वनि । तत्काले चन्द्रापौड़परित्यागसडरूपकरणसमये चागतेन भोकीदयादाविभ तेन ब्रायण हे थविशेषज्ञ ! तारतम्यानभिज्ञ । कादश्वरि । त्बया मढ़वारा प्रचखितखोचनया चित्षा पुनरपि इझताम् चङ्खौ जजश्चान्द्वापौङ्तब प्रत्याख्याणबीग्धी ग ब॥ इति षभििितष उक्तः ष । क्रिषेीत् चा तया च सव थव प्रत्याख्यानाबीग्य इति ध्वन्यत इति पूव वत् ध्वनि । तथा मनोभुवा मदनेन ते तव असुभि प्राच सह धर्यावलेप ग में कार्य तेन चपखेन इति धग्र्याइड्रारम्भपनयामि इति निभसितेव । क्रियोत्प्र चा तया च तदानीं धर्यलीप प्राचगमनीपक्रमश सच्चात इति द्योत्यत इति पूव वत् ध्वनि । चतएव तथैव पूव वदेव पुनरपि चन्द्रापौड़ाभिमुख तदाकाद्धि छदय वखा सा ताइमौ बभूव ।

      • حمحمحبوبہ براہِ محب۔ sی مہم۔ --- جميه سمجیے

হউক, সেই চপলস্বভাৰ কুমারের দ্বারা আমার প্রয়োজন নাহ” কাদম্বরী মনে মনে ক্ষণকাল এইরূপ সঙ্কল্প করিলেন । এইরূপ সঙ্কল্প করিলে তঁহার হৃদয়স্থিত চন্দ্রাপীড় সেই হৃদয়ের কম্পনবশত বিচলিত হইয়া যেন পরিহাদ করিয়া বলিলেন—“যদি আমাম্বারা তোমার প্রয়োজন না থাকে তবে আমি এই চলিলাম।” চন্দ্রাপীড়কে পরিত্যাগ করার সঙ্কল্প করিবার সময়ে কাদম্বীর জীবনও যেন প্রস্থান করিবার জন্য ক৬লগ্ন হইয় তাহাকে জিজ্ঞাসা করিল—(“তবে আমিও ধাই ?। ) সেই সময়ে অশ্রুজল আবিস্তুত হইয়া কাদম্বরীকে যেন বলিল-“তে তারতম্যানভিঞ্জে। তুমি নয়নযুগল গ্রক্ষালন করিয়া আবারও দেখ যে ঐ লোকটা তোমার প্রত্যাখ্যান করার যোগ্য কি না” এবং কামদেব যেন তিরষ্কর করিয়া বলিলেন—“কাদম্বরি ! তোমার প্রাণের সহিত ধৈৰ্য্যের অহঙ্কার আমি দূর করিতেছি।” সুতরাং কাদম্বীর হৃদয়, আবারও পূৰ্ব্বের ন্যায় চম্রাপীড়ের অভিমুখীন হইল। (१) चखान् प्रेझाषेमेन ।