পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৬৫৩

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ԱԱ- कादम्बरो पूर्वभागै प्रवेशखोमेनेव कर्पोलदर्पणमर्पयति (व) । मदवकाशदायिनो हृदयस्य प्रथमा विनयलेखामिव कररुहेण शयनार्द्र लिखति (ग)। मत्ताम्बूलबौटिकोोपनयन खेद विधूतेन (१) रक्तोत्पल भ्रम-भ्रमद्भ्चमरष्ठन्दन (२) करतलेन खिन्न मुखमिव (२) ग्टर्हीततमालपल्लवेनेव वोजयति” (क्ष) । पुनस्राचिन्तयत्-"प्रायेण मानुष्थकसुखभा लघता मिथ्यासङ्गख्यसहस्ररेवमायास्य मा (४) विप्रलभते, जुतविवेकी यौवनमदो मदयति मदनो वा (च) । यतस्तिमिरीपहतेव यूनां दृष्टिरष्पमपि कालुष्य (५) महृित् पश्यति (इ) । स्न'इलवोऽपि वारिऐव यैौवन (व) मदिति । किश्व मल्लज्जया विवत्तमान वदन यस्या सा प्रतिविश्वप्रवेश्लीमैजेव मम प्रतिमूत्तिपतनेचछ येव कपोल एव दपणस्तमपयति । वदनविवतनेन कपीखस्य ममाभिमुख्यादिति भाव । अत्र गुणीत्य षा निरङ्घकेवलकपकयोरञ्चाङ्गिमावेन सदर ! (य) मदिति । बाररुहेण नखेन प्रयनाड़ शृथ्याक्रीड़ मदवकाशदायिनी ममावस्थितिरझानदाथिन खख छदयस्य प्रथमा या भविनयलेखा अशिष्टाचाररेखा तां लिखतौव । क्रियीत्मचा । (ष) मदिति । मद्य ताख,खबौटिकाया उपनयने दानायोपखापने य खेद परिश्रमति न विध तेन कयितेन तत्करतले रक्तोत्पखश्वमेण धमत् धनरद्वन्द यखिान् तेन भतएव ग्टहौततमाखपल्लवेनेव खितेन धनरहन्दस्य तमालपल्लववत् क्वणवण त्वादिति भाव करतलेन पाणिना खिन्न धर्माझा मुख वैौजयतौव । धब की धान्तिमान् ध च क्रियेीत्नव च तेषामङ्गाङ्गिभावेन सङ्र च पुनश्च मित्थादौ छस्यनुप्रविल स्रस्ठज्यते । (स) पुणरिति । मानुष्यकेण मनुष्यतथा सुलमा अनायासप्राप्यो जघुता अगान्धौर्यम् । एवमित्यम् अयाख खेदवित्वा मां विप्रलभते वच्चयति । लुप्ती विवेको यह्मिन् स तादृशी यौवनमदी मदनी वा मदयति मत करोति । (च) प्ठतिामथ वमथ थितुमाह यत इति । यतो हॆती । य.नां दृष्टिश्वितछतिरेव गंधनम् तिमिरेष जेश्वरीम विशेषेण उपइता चपितग्रनिरिव सतैौ अल्पमपि कालुष्यम् चाखव्जनौभूतनायिकाचितविकार पदार्थानामाबिखताच লজায় অামার দিক্ হইতে মুখ ফিবাইয়া আমার প্রতিবিম্ব প্রবেশ করাইবার ইচ্ছায়ই যেন, নিজের গগুরূপ দৰ্পণ আমার দিকে সমর্পণ করিয়ছেন। (শ) বাদম্বরীর হৃদয় আমাকে থাকিবার জায়গা দিয়াছিল সুতরা তাহার সেই প্রথম অম্বায় আচরণের রেখাই যেন নথদ্বারা শয্যার উপরে তিনি অঙ্কিত করিতেছিলেন। (ষ) যখন তিনি আমাকে দিবার জন্য সেই পানের বাড়িট উপস্থিত করিয়াছিলেন তখন সেই পরিশ্রমে র্তাহার হাতখানি কঁাপিতেছিল এব সেই হাতখানিকে রক্তোৎপল মনে করিয়া কতকগুলি ভ্রমর তাহার উপরে ঘুরিতেছিল তাহাতে বোধ হইতেছিল যেন তিনি একটা তমালের পল্লব ধারণ করিয়াছেন, এইরূপ হস্তদ্বার। তিনি নিজের ঘৰ্ম্মত্ত মুখমণ্ডলে বাতাস করিতেছিলেন। (স) চন্দ্রপীড় পুনরায় চিন্তা করিলেন— প্রায়ই ময়ূন্যের স্বভাবসুলভ লঘুতাষ্ট এইরূপ মিথ্য ভাবনাসমূহে আমাকে পরিশ্রান্ত করিয়া শেষে প্রতারণা করিতেছে, অথবা ধেীবনমদ কি বা কন্দৰ্প আমাকে উন্মত্ত করিয়া তুলিয়াছে। (চ) কারণ যুবকগণের দৃষ্টি তিমিররোগে (१) विश्वतेन । (२) रक्तोत्पलधमद्धमरहन्देन । (२) मुखनिय । (s) एव मां । (५) कलुष ।