পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৭৩৯

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૭૪હ क्षाड्ब्री पूर्वभागे (प) खदेशभाषा-निबद्ध भागीरथी भक्ति-स्तोत्र नक्त केन, (फ) ग्टहौत तुरगब्रह्मचर्यतया अन्धदेशागतोषितासु जरत्प्रव्रजितासु बहुछत्व सम्प्रयुक्त-स्रौवशीकरणचूर्णेन (ब) प्रतिरोषणतया कदाचिद्दुन्ध स्ताष्टपुष्यिकापातोत्पादितक्रीधेन चणिड़कामपि सुखभङ्गिविकारो भृशमुपहसता, (भ) कदाचिचिवार्रवमाणावास-रुषिताध्वगारब्ध बडु बाडुयुद्ध पात-भग्न पृष्ठकेन (म) कदाचित् छातापराध बालक पलायनामश पञ्चात्-प्रधावित-रुखलिताधोमुख पात स्फटित शिर -कपाल ASAAAAS SAAAAMAMAAAS *- یہ۔-مد. 'sمی (प) दिषखमिति । दिवश्वनॆष यन्नश्शस्य झशित शिखित तदंशुशं शौख चट्य तदृचधा तथा षान्पितम् ख'तमाङ्ग झश्तक्षा यद्धिान् कर्त्रद्मि तदृधच। तथा च हिमपि चलिश् चगौश्य गाधता । दिवखमिति तत्प्रत्ययैऽसष षाङ्गादि ध्रौव्यस्य ति क्षुत्वम् । (फ्र) खदैोति । खदैश्रमाषा द्राविर्खौं तथा निबद्ध थङ्गार्गौरथ्या भर्तिास्तीत्र तेन नृत्थतँौति तैन । (ब) ग्टहौतेति । ग्टहौत तुरगस्य भश्वस्य व ब्रह्मचर्यं येन स तथीशास्तस्य भावस्तया हेतुना यथा तुरगा सततबन्धनप्रतिबन्धादैव ब्रह्मचर्यमवलम्बन्त न पुनध मंलाभलीमात् तथा अयमपि सबौखामाभावादैव ब्रघ्रचर्यमव लग्वितबान् न पुनध झाँज नप्रत्याशयेति भाव । अन्चर्दश्यादागता सत्य उषितास्तत्रावखिताप्तासु जरत्प्रव्रजितासु जराशैौय सन्यासिनौषु बड़छात्वी बहन् वारान् सम्प्रयुक्त निथिप्त स्रौनशैौकरणच ण येन तेन । (भ) अतैौति । भध्टानां पुष्याणां समाहार इत्यष्टपुष्यैौ अभ्राता अष्टपुष्पौत्यष्टपुष्पिका अज्ञाने कप्रत्यय *ानि कानिचिदष्टौ पुष्पाणैौत्यथ । तथा च अतिरोषणतथा नितान्तक्रोधशैौखतया कदाचित् दुग्च स्ताया अयथाभावेन ख्यापिताया घटपुयिकाया पातेन कौतुकाइ बाइा केनचिज्जनेन चण्ड़िकापैौठात् पातनेन उत्पादित क्रोधी यस्य तेन चतएव मुखभद्धिविकार थण्डिकामपि भृशमुपइसता तानि पुष्पाणि रचितुमशक्तत्वादिति भाव । (म) कदाचिदिँति ! निवार्यमारीीन अब न वास कन्तब्य दृति निषिध्यमानेन चयाबासैन वासरह्योलेन हेतुमा रुवित क्र,ड थध्वग पथिक रारब्धषु बहुषु थाइयुड़ षु पातेन भग्न पृष्ठ यस्य तेन । (य) कदाचिदिति । छाती ध.खिपवनिचेपादिना विहित अपराधी येन तख तादृग्रख बालकख पलायनेन BBBB BB BBBB BB BBBDD BB BBBBB S S BBBBS BBB BBB ভক্তিস্তোত্র রচনা করিয়া তাহ পাঠ করত নৃত্য করিতেছিল। (ব) অশ্বের ন্যায় ব্রহ্মচর্ষ্য অবলম্বন করায় অন্যদেশ হইতে আসিয়া সেটস্থানে অবস্থিত বৃদ্ধ সন্ন্যাসিনীগণের গাত্রে স্ত্রীংগীকরণের চুর্ণ নিক্ষেপ করিয়াছিল। (ভ) একে সে অত্যস্ত রোপনস্বভাব ছিল, তাহাতে আবার চণ্ডীর নিকটে ধে আটট ফুল পাতাইয়া রাখিয়াছিল তাহ কেহ ফেলাইয় দেওয়ায় নুতন ক্রোধ জন্মিয়ছিল , সুতরা সেই ফুল রক্ষা করিতে না পারায়, নানাবিধ মুখভদী করিয়া চণ্ডীদেবীকেও অভ্যন্ত উপহাস করিতেছিল। (ম) পথিকগণ আসিয়া থাকিবার ইচ্ছা করিলে সে বাধা দিত, তাহতে পথিকগণ ক্রুদ্ধ হইয়া গেলে তাহদের সহিত তাহার অনেক বাহুযুদ্ধ আরস্ত হইয়া যাইত কোন সময় তাহতে পড়িয়া যাওয়ায় তাহার পিঠ ভাঙ্গিয় গিয়াছিল। (য) কোন সময় কোন বালক অপরাধ করিয়া পলায়ন করিলে সে ক্রোধবশত তাহার পশ্চাৎ ধাবন করিবার সময়ে পদখলন হওয়ায় অধোমুখ হইয়া পড়িয়া গিয়াছিল, তাই