পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৭৯

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भू६ कादम्बरी पूर्हभागै प्रथ मुङ्गत्तादेव (/) वशम्यायन प्रतीहाय्यां ग्टहीतपञ्जर वानकवेत्रखताव खम्बिना किञ्चिदवनत-(२) पूर्वाकायेन सितकञ्च काच्छुच-(३) वपुषा जराधवलितमौलिना गद्गदखरेण मन्दमन्दसञ्चारिणा (४) विइङ्गजातिप्रोत्या जरत्क्रलर्छसेनेव कच्च किनानुगम्यमानो राजातिकमाजगाम (ज) । चितितल-निहितकरतलस्तु (५) कञ्चर्को राजान व्यञ्चापयत्-(१) "देव ! देव्यो विज्ञापयन्ति, देवादेशादेष वशम्यायन स्रात छाताहारख देवपादमूल प्रतीहार्यथार्नेोत ” इत्यभिधाय गतै च (७) तल्लिन् राजा वंशम्मायनमछुच्छ्त्"कञ्चित् (८) अभिमतमाखादितमभ्यन्तरे भवता किञ्चिदशनजातम् ?”इति (झ)। محمود می جمعیته همینماید میم’’مسلم، اس» میبات عمحت میایی - (ज) अथेति । बटशैत पञ्चर यस्य स । कनकवेत्रखतावलम्बिना सुवण खचितवैत्रथटिधारिणा विचि दवनत बाईक्यवशादौषब्रत पूव कायी नाभेरुह देशी यख तेन सितक खु,केन श्र तकूर्पासकैन आच्छब्रम् थाहत वपु प्ररौर यस्य तेन शरथा वाईक्येन धवलित श्वतौक्कत मौखि केशपाशी यस्य तेन गदूगद भशप्रष्ट खर करष्ठ DDD DD DDS BB BB BBBBBB BB BBBBBBSBBBBBBSBBBBBBBS इत्युक्तखचऐन । विइब्रजातौ पचिजातौ या औति प्रणयतन खजातिग्रेम्णेत्यथ जरत्कलह सेनेव केनचित्। हड्कादस्व नेव अनुगम्यमार्जी व एन्यायन सं झुक । अत्रीपमालङ्कार ! (झ) चिंतौति ।। ६ब्धो महिष्च । द्दवश्य झबत बांशाद्वियोगात् । तझिन् क्षश्चुक्षिनि गतॆ तषात् प्रह्यिते सति । अभ्यन्तरै अन्त पुरै अवता अभिमतम् आकाड़ित किचित् भजनजातम् थाहार्थवस्तुसमृष् चाखादितमिति काकु मचित किमित्यथ इति कञ्चित् वेदितुमिच्छा म । कञ्चित् कामप्रवेदने इत्यमर । (ছ) প্ৰতীহাবী জামযুগল ও পাণিযুগল ভূ-লে সংস্থাপন কবিয়া বলিল- মহারাজ যে আদেশ করেন” এই কথা বলিয় রাজীব আজ্ঞ মস্তকে ধারণ কবিয সেই অজ্ঞানুসারে কার্য্য করিল। (জ) তদনন্তর প্রতীহারী মুহুৰ্ত্তমধ্যেই পঞ্জব ধারণ করিয়া বৈশম্পায়নকে রজার নিকটে আনয়ন করিল , স্বজাতির প্রতি প্রণয়ুব ত বৃদ্ধ কলহংসের ন্যায় মনমেন্দগামী এক বৃদ্ধ ব্রাহ্মণ সেই বৈশম্পায়নের পশ্চাৎ পশ্চাৎ আগমন করিলেন , তাহার হস্তে একখানি সুবর্ণখচিত বেত্ৰখষ্টি ছিল, বাৰ্দ্ধক্যবশত নভির উৰ্দ্ধদেশ ঈষৎ অবনত হইয়াছিল শ্বেতকঞ্চকে (আলখেল্লায়) তাহার শরীর আবৃত ছিল বাৰ্দ্ধক্যনিবন্ধন কেশকলাপ শ্বেতবর্ণ এব কণ্ঠস্বর অস্পষ্ট হইয়। গিয়াছিল। (ঝ) সেই বৃদ্ধ ব্রাহ্মণ ভূতলে করযুগল সংস্থাপনপূর্বক রাজকে জানাইলেন–“মহারাজ ! মহিষীগণ আপনাকে জানাইতেছেন যে আপনার আদেশে বৈশম্পায়নকে স্নান ও আহার করান হইয়াছে এবং এখন প্রতীহারী আপনার চ ণসমীপে উহাকে নিয়া গেল।” এই কথা (१) मुहर्तादिव । (२) भानत । (२) थवच्छन्न । (४) चारिणा । (५) विञ्चितकरतखस्तु निहितकरख । (५) व्यजिज्ञापयत् । (७) थपगते । (८) झचित् ।