পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৯৫

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\e8 कादग्वरो पूव भागे तस्य चव विधस्य (१) समग्रत्यपि प्रकटोपखच्झमाण पूर्वीछत्तान्तस्वागख्यात्रमषत्र नातिदूरे जलनिधि पान कुपित वरुणोत्साशितेन (२) भगख्यमत्सरात्तदाश्रमसमीप वस्य पर इव वेधसा महाजलनिधिरुत्पादित , (भ) प्रखयकाल विघटिताष्ट दिग्भाग (१) खन्धिबन्धं गणनतलमिव भुवि निपतितम्, (७) धादिवराहखसुशृत-धरामष्टश खानमिव सलिख पूरितम्, (ट) अनवरत-मजदुझर्द-यवरकामिनो कुचकलस ASA SSASAS SSAS SSAS SSASAS SSASAS SSAS SSAS SSAS SSAS SSAS SSAS SSAS AASAASAAAS (ज) जनकेति । यज्ञाश्रमे भर्जा पत्या रामेण विरहविनोदनाय सौताया वियोगवंदनाखघु करणार्थम् उटजाग्वन्तरै पथ मालामध्य खिखिता चित्रिता अनकतनया तत्प्रतिमूति रामनिवासख रानावरह्माणभूमेदम गाय उत्सुका उत्कण्ठिता सती पुनध रपौतखात् पाताखात् उल्लसन्नी उत्तिष्ठन्तोष थद्यापि भअिब्रपि समये । वनचरी भवरी । यत्र क्रियीत्य चाखडार । प्रथम सँौताया मिथिखायां यन्नभूमिकष यसमये धरचौतक्षादुत्थानम् परौचाप्रस्तावे च पाताखप्रवेश ततश्रेदमुल्यानमिति पुन ग्रव्दाभिधान सङ्गच्छते । (झ) तखेति । प्रकटम् उपलक्षयमाणा उज्ञख्पेण स्रष्टमशुभूयमाना पूव इत्तान्ता यस्त्र तख्न । गातिदूरै पग्याभिधान सरी बत त इत्यन्वय । अत्र प्रथमान्तानि पश्यासरसी विशेषणानि । जखनिधौगां समुद्राषां पानेन छपितो अखखामिचात् क्रू,दी यो वरुणर्खन उत्साहित थपुर मराजलनिधिमुत्पादवित दत्तीत्सार तेग ३षसा सृष्टिकर्जा अगख्यमत्सरात् अगख्य प्रति विशेषात् तस्थागख्यख आश्रमसनौपवतौं अपरी महाजलनिधिरिव उत् पादित चतिविशालत्वादिति भाव । अत्र द्रव्योत्प्रेचाखडार । (अ) प्रलयेति । प्रखयकाले कल्यान्तसमये विघटिता विशिष्टा रखखिता भष्टाना दिग भागाणां सन्धिथग्धा संयोजनबन्धगानि यस्त्र वत् अतएव भुवि निपतित गगनतलनिव खित गितान्तनिर्बललादिति विद्याललार्थति भाग । अब्रापि द्रब्यीत्ग्रेचालडार । (ट) भादौति । भादिवराईथ नारायणढतौयावतारेण महावराईण समुड त समुतोखित यत् धरामख्ख पृथिवैौनकहख तख खानम् अवकाश सलिखपूरितमिव खितम् अतिविशाखत्वादित्यभिप्राय । चब्र क्रिबीत् प्र चीखङ्कार ! میامی بم سیمای مر -بی بی۔ -۔۔۔۔۔۔ حب۔ یہم۔ অগস্ত্যের ক্রোধ উপশমনের নিমিত্ত উপস্থিত অজগররূপধারী নহুষের শরীর বলিয়া মুনিগণের ভ্রম জন্মাইয়াছিল। (জ) আর যে আশ্রমে রামচন্দ্র সীতার বিরহছু থের উপশম করিবার নিমিত্ত স্বকীয় পর্শশালার মধ্যে সীতার মূৰ্ত্তি চিত্রিত করিয়াছিলেন তাহ দেখিয়া বনচরগণ এখনও মনে করিয়া থাকে যে, সীতাদেবী যেন রামচন্ত্রের বাসস্থান দেখিবার নিমিত্ত উৎকণ্ঠিত হইয়া পুনরা পাতাল হইতে উঠিতেছেন। (ঝ) সে আশ্রম দেখিলে পূৰ্ব্ববর্তী ঘটনাবলী স্পষ্টরূপে অনুভূত হয়, এতাদৃশ সেই জগন্তাশ্রমের অনতিদূরে পিম্পী" নামে এক সরোবর আছে , অগস্ত্য সমুদ্র পান করায় জলাধিপতি বরুণ র্তাহার প্রতি ক্রদ্ধ হইয়। অপর একটা মহাসমুদ্র স্বষ্টি করিবার জন্ত উৎসাহ দিলে, বিধাতা যেন অগস্ত্যের প্রতি বিদ্বেষবশত র্তাহার আশ্রমের নিকটবর্তী অপর একটা DDDBB D DB BDDDD BBD gBB DDSTS BBBB BBD BBD DDDDD BBB BBDD DDBBBBB BBB DD BBB DDB BB DDS (५) रुख च सणामपि। (२) बरुचीन्लच्चितेन ।(२)विधतिाडदिविभाग।