পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১১২

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লেখমালা।

पादात-भर-नमदवनेः। वि[ला]स पुर[১]-समा-
२९ वासित-श्रीमज्जयस्कन्धावारात्। परमसौगतो महाराजाधिराज-श्रीविग्रहपालदेव-पादानुध्यातः पर-
३० मेश्वरः परमभट्टारको महाराजाधिराजः श्रीमान्महीपालदेवः कुशली। श्रीपुण्ड्रवर्द्धनभुक्तौ। कोटीव-
३१ र्षविषये। गोकलिका-मण्डलान्तःपाति-स्वसम्ब[न्धाव]च्छिन्न[২] तलोपेत-चूटपल्लिकावर्ज्जित-कुरटपल्लि-
३२ का-ग्रामे। समुपगताशेष-राजपुरुषान्। राजराजन्यक। राजपुत्र। राजामात्य। महासान्धिविग्रहि-
३३ क। महाक्षपटलिक। महाम[न्त्रि]। महासेनापति। महाप्रतिहार। दौःसाधसाधनिक। महा[द]ण्डना-
३४ [यक]। महाकुमारामत्य। राजस्थानीयोपरिक। दाशापराधिक। चौरोद्धरणिक। दाण्डि[क]। [दा]ण्डपा-
३५ [शि]क। सौ(शौ)ल्किक। गौल्मिक। क्षेत्रप। प्रा-
३६ न्तपाल। कोट्टपाल। अङ्गरक्ष। तदायु-
३७ क्त-विनियुक्तक। हस्त्यश्वोष्ट्र-नौबल-व्या-
३८ पृतक। किशोरवड़वा-गोमहिषाजावि-
३९ काध्यक्ष[৩]। दूतप्रेषणिक। गमागमिक।
४० अभित्वरमाण। विषयपति। ग्रामपति। [तरि]क। गौड़। मालव। खस। हूण। कुलिक। कर्णाट। ला[ट।]
४१ चाट। भट। सेवकादीन् [।] अन्यां श्चाकीर्त्तितान् राजपादोपजीविनः प्रतिवासिनो ब्राह्मणोत्तरांश्च। महत्त-
४२ मोत्तम-कुटुम्बि-पुरोगमेदान्ध्र-चण्डाल-पर्य्यन्तान्। यथार्हं मानयति बोधयति। समादिशति विदित-

  1. বিলাসপুর-শব্দের লা-অক্ষরটি সংশয়পূর্ণ।
  2. অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “सम्बन्धाविच्छिन्न” পাঠ গ্রহণ করিয়াছেন।
  3. অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “गोमहिष्यजाविकाध्यक्ष” পাঠ উদ্ধৃত করিয়াছেন।

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