পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১৭৩

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মনহলি-লিপি।


निहित-चरणपद्मो भूभृतां मूर्द्ध्नि तस्मा-
दभवदवनिपालः श्रीमहीपालदेवः(১০)
त्यजन्-दो-
१५ षासङ्गं शिरसि कृतपादः क्षितिभृतां
वितन्वन् सर्व्वाशाः प्रसभ मुदयाद्रे रिव रविः।
गुणग्राम्या-स्निग्ध-प्रकृति रनुरागै-
१६ कवसति-
स्ततो धन्य[ः] पुण्यै रजनि नयपालो नरपतिः॥(১১)
पीतः सज्जन-लोचनैः स्मररिपोः पूजानुरक्तः सदा
संग्रामे च-
१७ (तुरोधिकञ्च हरितः) कालः कुले विद्विषां।
चातुर्व्वर्ण्य-समाश्रयः सितयशः-पूरै र्ज्जगल्लम्भयन्
तस्माद्विग्रहपालदेव नृ-
१८ पतिः पुण्यै र्ज्जनानामभूत्॥(১২)
तन्नन्दन श्चन्दन-वारि-हारि-
कीर्त्तिप्रभानन्दित-विश्वगीतः।
श्रीमान् महीपाल इति द्वितीयो
१९ द्विजेश-मौलिः शिववद्बभूव॥(১৩)
तस्याभूदनुजो महेन्द्रमहिमा क(स्क)न्दः प्रतापश्रिया-
मेकः साहस-सारथिर्ग्गुणनयः
२० श्रीशूरपालो नृपः[।]
यः स्वच्छन्द-निसर्ग्ग-विभ्रमभरा-[न्] विभ्रत्-[सु] सर्व्वायुध-
प्रागल्भ्येन मनःसु विस्मय-भयं सद्य स्ततान द्विषां॥(১৪)

^(১০)  মালিনী।

^(১১)  শিখরিণী। সাহিত্যপরিষৎ-পত্রিকায় “যোষাসঙ্গ”, এবং “সুতো” পাঠ মুদ্রিত হইয়াছে। তাহা “দোষাসঙ্গ” এবং “স্ততো” হইবে। আমগাছী-তাম্রশাসনের “হতধ্বান্ত” এই তাম্রশাসনে “গুণাগ্রাম্যা” হইয়াছে। [(১২): শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।]

^(১৩)  উপজাতি।

^(১৪)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত। লিপিকর-প্রমাদে একটি অক্ষর পরিত্যক্ত হইয়াছে বলিয়া, এই শ্লোকের পাঠোদ্ধারে

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