পাতা:বঙ্কিমচন্দ্রের গ্রন্থাবলী (নবম ভাগ).djvu/৮১

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অর্ণতৰ । जॐविश्प्रंडिङश जषाॉब्र । क्रिखब्रविनैौ बुडि। निदा।। ७चए4 चत्रांछ कांर्षीकांनेि वृखिद चष्ट्र. ♚णटनद्र श्रृंकरूि सनिटष्ठ केव्ह कब्रि । ●क्र ! cग जकल बिखांब्रिङ कर्ष निकांठरस्रब्र बखर्नङ । चांशांब्र रूitइ खांश विटचंद छनिबांह atब्रांबन बॉरे। नांग्रेौब्रिकौ वृद्धि व खांबांéनो बुद्धि जरुटक७ वांधि cरूबण नांदांबन चइलैणनणकडि बणिब्र निद्रांहि. वृखिविप्नंक्-नरtझ थइनॆणननषछि किडू भिषाहे बांहे। कि थकांटबू बंबौदब बणांषांब कब्रिहड कईटब, कि <धकारब चज्ञनिक र चचठांगन कब्रिटख् इज्ञैरव, कि यंकांरब cयषांरक ठीक कविरउ इहेरब, बा कि थकांटब्र बृक्रिरू अंविठनंitज्ञब्र छैनtषांने रूबिटड हडैरव, डांश बणि बांडे । कांड१, cण गरूल चिंचगंउtस्रब चखर्गठ । चइनॆणनउटसृज कूण वर्ष बूक्षितांब बछ cरूतन गाषांबनदिषि बांबिरगहे बरषहे श्छ। चांवि नांग्रैौब्रिकौ ७ जांनांéकी वृद्धि गण्टक ভাৰাই বলিয়াছি। কাৰ্য্যগরিণীবৃত্তি সম্বন্ধেও সেইরূপ रूषों बगाँहे चांयांब्र $रक्ॐ , किङ कांर्षीकांब्रिनै बुद्धि অনুশীলন সম্বন্ধে ৰে সাধারণ ৰিবি, তাছা ভক্তিতত্বের जखर्शल। ॐीठ डद्धिब चखगैंड ५वर बद्रl, dौडिब्र जस्वर्णङ । जबरा परेि गिरै छिनो बुखिइ छैनंद्र बिटनंद थकांरद्र निर्डब्र खटब्र। ७ई अञ्च बांधि छङि, वैडि, बब्ब, बिटनव अकांदब बुलांश्लेष्ठांहि। बद्दछद गरूण वृखि **ना कब्र, वा उांशंब्र चइनैननगकडि निर्विांकन रूबां, चांगांब्र छैtकता जटल, जॉषास नरह। लांबैौद्रिकी, खांबांéनो वा कांर्षीकांबिकैो बुद्धिगचtझ चांघांब्र बांश दख्खा, उiह शनिद्रांहि । बकरन फ़िज़ब्रथिनौ वृद्धि-जचटक जष्करणं किइ बणिव । জগতের সকল ধর্থের একটি অসম্পূর্ণত এই যে, फ्रेिडबिनौ वृद्धिeनिब थइनॆणन विानवब्रप्न छनशिडे हब बांहे। किछ siहे बनिब्रा cकह ७शन निकांख रूब्रिरष्ठ गांरब बl (ए, 4फोन पर्वtबखांबा देशंब चांदलाकडां चबरुग्रंछ हिरणब दl ७ जकरलब्र जङ्कैशtबन्न cकांब ठेगांद्र बिहिष्ठ कtब्रन बाहे। श्चूित পূজার গুপ, চন্ধন, মালা, ৰূপ, লীগ, খুল, গুগগুল, चूडा, नैऊ, बांच थङ्कडि नकटनबहे ऐरकनी छख्द्रि चह्नैणप्नद्र गरण ठिडदबिबी वृखिब चइनॆणtबद्ध जज्ञिणन जषव ७ई जकरणब्र चांब्रां खख्द्रि खेकौर्णन । o eधीहीन औकशिात्रब वाई, धबर षषाकांtणद्र है0xप्रांर* cबांशैब ॐदेवाई फेनांगनांद्र गएषोंछिडद्रबिनैौ बुखि गकरनद्र कूडिंद्र७ भक्कृितिब्र विणक4 cडे दिन । चांनिर्नौण बां ब्रांरकटणब्र क्लिब, बाँहैटकण अजिटणां च কিয়িলেৰ ভাস্কৰ্য্য, জর্বাণির বিখ্যাত সঙ্গীত-প্রশেভূऋ*ब जणेोड,Gत्रांनबांद्ध जशद्य इहैद्रांख्णि ॥ बिकटचत्र, छांकtब्रक, इनडिग्न, गर्चेौठकांब्रटकब्र जरूल बिछ पcईद्र लद्रव्र $९ण# कब्र हदैड ॥ छांब्रख्वार्षद७ शांनडा, छांकर्षी, छिबदिछ, जर्णेौड $णांनबांद्र जहांइ ॥ निषा। उररु शबब हऎटङ *ां८ब्र, aथछिशांनáन खेनांगनांब्र जरण कई थकांब क्रिडब्रजिनो बृखिब्र कृखिब खांकगंख्झांब्र शाल । ७ङ्ग ॥ ७ रूपंiजब छ बt?,० किल थछिषांनं#टनब्र ८ष ० ७ विदरब भूर्ल बांश देराबविटङ बर्डबांन cजधक कर्पुक गिषिउ श्रेबोश्णि, आँशंइ बिक्रर्न निा फेब्रुङ रूद्रा गिरेप्च्एरु।

  • The true explanation consists in the ever true relations of the Subjective Ideal to its objective Reality. Man is by instinct a poet and an artist, The pasionate yearnings of the heart for the Ideal in beauty, in power and in purity must find an expression in the world of the Real, Hence proceed all poetry and all art. Exactly in the same way, the ideal of the Divine in man receives a form from him, and the form an image. The existence of Idols is as justifiable as that of the tragedy nf Hamlet or of that of Prometheus. The religious worship of idols is as justifiable as the intellectual worship of Hamlet or Prometheus. The homage we owe to the ideal of the Human realized in art is admiration. The homage we owe to the ideal of the Divine realized in Idolatry is worship.”

Statesman, Sept ab, 1882. ५३ फस् इरणर्षक बांबू छखनांर्ष बबू बबचौबटनब्र “(बांस्ररनगळांtबभूज* ऐडानि नैर्षक अवप्क धब्रन विनंव ७ शनद्रबांशैकब्रिइ बूबांहेबांटाइन rर, चांषांद्र खेनब्रिवृड इरे झब देशtबचिब चइवांश ७gांटन क्विांत्र ●टब्रांजब चांद्रह cबाँष एज बl ॥