পাতা:বিশ্বকোষ অষ্টাদশ খণ্ড.djvu/৩১৪

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पाक्नकियांइ केच्य श्चरे बाददछ, क्र भक बनराप्लेिज *छद्र गरिङ नक्छ ररेश षांrरू। यूक्रय । 4 वृहब मर्कंगबहे गवांन, शिक्षrवा मरण शेशन कांकब्र कूण, ऎशंङ्ग षांश्वश्रूं बां चौि ७ हि१ भ्रूं श्रोच्छ चंौ चागिषिनिि *वर क्री ५क्रच् चानक किकि९ अविक श्रॅब्र थाक। शक्क कशॉ ब्रष्यूबांद्रा श्रणांग्र ड्रगाहेह दीबहेिही पाहक 4क देशद्र बाबদিকেও খালি লেপন থাকে । वृनव । মৃদঙ্গ বন্ধটি অতি প্রাচীন । পুরাণে বর্ণিত আছে যে, ৰংকালে ত্রিপুরারি মহাদেৰ দেৰগণের জজের অতি দুর্থাৎ ত্রিপুর. इब्ररक जमदग्न विन♚ कब्रिग्रां श्रांननष्ठाङ्ग छNअब चांद्रक कcब्रन, cगई नमाज़ शृशडेकठी नप्ररषांनि अकां ८गहे जन्नाङ्गङ्ग भन्नैौइनि:एड ক্ষধিরে সমরাদণের ভূমি সিক্ত হইয় কদমে পরিণত হইলে সেই कर्कमरांब्रां शृनtत्रब cषांग, छर्दिषामा जांशशनैौ, निब्रांबांब्र कईनरrयांबक ब्रव्यू७ अश्विांब्र ठच यच्छ कग्निब्र नं4नांद्रक्रक महाबादङ्ग नृण्ठा फांण निंबांद्र जड़ यहांम कब्रिज्ञांश्लिम, नंtर्णनं সেই মৃদঙ্গ ৰাজনপূৰ্ব্বৰ মহাদেবের মৃত্য ও দেবগণের হর্ষবর্ধন कम्ब्रन । प३ वटजब यथाम चव cषगाँः मृखिकानिचॅिड इeब्रতেই মৃদঙ্গ এই ৰেগিৰ নাম ধারণ করিয়াছে। আধুনিক খোলই अंङ्गड बृक्णणनर्वाक्ला, विचाबच्न क्श गि३ cर, अक्रर्श्व यूनत्र सय cवांजिङ हिण, cषोष्ण ७च षारक ब । uई वraब्र फेङइब्रूषब्र श्रांशषनैौध्रपं धब्रलि cणनिड वांरक् । cषांण अकृ cकांन औ८ष्ठ बाक्रुङ श्छन,८रुमाज कैोर्डनरिफरे अपूरू श्रेङ्ग थारू । ♥ሽ ! उदगा जांधूनिक धृक्त्वा चइकद्रगबाब्र। यहे षड इंश्चांcन दिङख ? ७रुष्ठांरभग्न cषांज वृननष९ कांईनिनिॉफ, ५कछांtर्भग्न cषाण वृखिक व थांडूनिर्द्विज इहेब्रा थीtक । कांडैमिनिर्दछ छांशाः दक्रिण (७ॉश्मिा), वृखिकांभिरिँड डांनी बांधक (वैब्रिा) मात्म दिशांच् । केच्दणtभद्र ब्रांशश्मैौ थणि पूङ श । म्नांश्मिा हरेरठ फेक मधून ७ वैङ्गि इंदेरङ भडीन नावचा निर्णच् इम । शमtछ गमाग्र वैज्ञां *ककडे वाकहक दछ, किक फॉदिनां ज्झ” शब्द न । ७ॉश्निाः वृक्ष्मद्र छाद प्रचक्कबाब wांक्क * कrण पूख शह,१ीबाएच् छर्दहन्यूथ कांनीनाक् िक्रयश्चन्द् अपृच् ऋष, क्रूि करचद्र ●ारद्वांछन झकझ, अरष कां★ीणवि क्रूजवरु

  • बrछ निकणानि निविंडशिकि९इन अकूकैङ्कक (क्रकृब्रि) अक्षांश cनथ वीर ! आहे का £षत्राणक्नेिछन जह्नक ब्रदेश वांशिढ़ हा ।
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मांक्ण ऋण। श्रहे शह* नछा ब्रछ ऋक्ष *ब्रिनर्थिक ७ देशद्र 蕭