পাতা:রাজা প্রতাপাদিত্যচরিত্র.djvu/১৫৬

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i sc • ] राजा मानसिंघर्जी सी देवी श्रावाज दीनी-सी सुनै समुद्रमें नाषि दीनी छै। सो उठा सू काट लीज्यी मेह तोसू प्रमत्र क्लवा । जदि राजा मानसिघजी केदार राजा ने दबाव दौयो। जदि राजा तो जाजि में वैठ भाज्यो । श्रर दीवाण ने मान सिंहजी कोठे भेजो सो दीवाण आप मिख्यो । जदि राजा मानसि'हर्जेो उर्वी वेटी मांगी । जदि राजा केदार ट्रेणी करी। श्रर मिलाप इवो । जदि नेौजर करी । जदि श्राप पुरमाइ सो थारी राज कै सो तोने दीनू। जदि सलाम करी । पाई समुद्र मे माता क्वी जैौठा सू काटि लौनी । श्रर श्ररज करौ— माता श्राप पुरमावो जैौ मांफक पूजन करु । जदि माता कही-महारै वलदान निति ब्लवा जासी जैोते थारी राज वण्यो रहसी । प्रर भें भी रहस्यों । जीं दिन वलदान रोजीना होतो रहजासी जी दिन थारो महारो वचन पूरो होसी। जदि श्राप कबूल करी । श्रर माता ने ले प्राया । प्रर वंगाला ने पूजन सॉपी अर उठा सू कूच करि आया"। ( মানসিংহ) পুনরায় কিছুদিন পরে পূর্বাঞ্চলে গেলেন। তথা গজনীপুর, নীলোদ ও কাশীতে গিয়া ঐ সকল স্থান দখল করিলেন ও কাশীতে মানমন্দির নিৰ্ম্মাণ করাইলেন। পরে পাটনায় গিয়া উক্ত স্থান অধিকার করিলেন এবং তথায় বৈকুণ্ঠপুর স্থাপন করিলেন। পরে গয়ায় গিয়া তথায় ৪৫টা শ্ৰাদ্ধ করিলেন। জগন্নাথ (পুরী ) অঞ্চলের দিকের সমস্ত পূৰ্ব্বাঞ্চল উসমান পাঠানের অধিকারে ছিল। তথায় গিয়া তাহার সহিত যুদ্ধ করিয়া জয়লাভ করিলেন ও তাহার সমস্ত রাজ্য অধিকার