পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/১৬৩

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ፂፀፉ ॥ fइतेर्ध्रुपद्शः ॥ नियतविषयवर्ती प्रायशेादण्डयेागाजगति परेबसैझिन् दुखैभः स्ाघुवृचः । कृशमपि विकखं वा याधितं बाधनं बा पतिमपि कुखनारी दण्डभोत्थाभ्युपैति ॥ * ॥ ४ ॥ तद्यथां लग्नवेला न विचखंति तथा कृत्वा सत्वरमा गम्यतं देवेन । इत्युक्तूा उन्थाय चलितः। ततोऽसैौ राश्च खेाभाङ्क्रा कपूँरतिखक भूगालदर्जना धावन्झइपङ्के नृिब्बं ततलेन इखिना उतं सखे शृगाल किचधुना निर्धयंपङ्क निपतितेोऽहं चिये पराष्टन्धपश्य । शृगालेन विइखेानं देव मम पुच्छ्काबलम्बनं कृत्वा उत्तिष्ठ यख मद्दिधख वचसि बृया बन्धयः चतः तदनुभूयतामश रवंदुःखमितेि।तथाचेोक्तं॥यदि स्त्लङ्गनिरतोभविप्यस्ि भविष्यसि। तथा स्ञ्जनगोष्ठीषु पतिष्थवि पतिष्यसि ॥ অপর রাজদণ্ডেতেই লোক প্রায় আপনং উপযুক্ত কৰ্ম্ম কংে কেননা এই পুরাধান সংসারে সচ্চরিত্র লোকদুর্লভ। छठुमरि झ* श्न किञ्च काक्वईौन ७ श्म किशु 1 द्र धं ७ श्म কিম্বা নিধন ও হন তথাপি দণ্ড ভয়েতে ফুলস্ত্রী তাছাত্তে উপগত হন এইহেতুক যে প্রকারে সময় না যায় যে প্রকার করিয়া মহারাজ শী আসুন ইহা কহিয়া উঠিয়া চলিল । তংপর রাজ্যলোভেতে লুব্ধ হইয়া এই কপুর তিলক মাৰে গজ গালের পথে ধাইতে বৃহৎপঙ্কে পতিত হইল অনন্তর হস্তী কছিল হে ৰন্ধু শৃগাল এখন কি কৰ্ত্তৰ