পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/১৮৫

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},६८ a f्ोग्रेः ॥ अत्र सम्रहरूकछदुर्नब्राह्निजन्नारखेचज्जीवकैोभज्ञ जानुर्कियतितकश्रयेोकायद्रणम्नेऽचिन्तबन्ध करीतु चनमीलिङ्गे चत्रसवमितभततः ॥ फलं पुवखदेवारू षङ्घ्रिर्भक्षशिखिनंश्gिशबिझषः शब्'बॉंश्च बहूटः सर्वकर्ना पड़ा । तचादिकाधभुत्रुजथे चार्थ चिद्विर्विधी बती ॥ निक्षूि वङ्क्षीबकं तषशरित्वञ्च कंझाचः पुनः खबन्धच भूरं चीम गचरं चं वचiशाचमन्यहृषभ। लेक समाजीय धुरि नियेाञ्थचशिमक्षतः सङ्कोषकेाधि कथं कथमषि चुरचये भरंछलेबितम्॥बत ॥निमज्ञख घवेोरादे पञ्चतान् पतितखच तचकेषाधि दथ्ख चायुश्रचाथि रचति ॥ नाकाले चियते जन्तुब्र्विद्व बरञ्जनैरपि कुमाश्लेबैक पंखुच् प्राप्तकाखेोन जीवति। अवखब नृपुनर्वtrय बशबट्वा भवब कबच लांशांब नछोरक ভগ্নপৰ দ্বীপদি ভাষাকে বেশিরবন্ধান চিষ্টা করিল নীতিজ্ঞ লোৰু ইগুস্তষ্ঠে ব্যৰগায় করুক কিন্তু ইহার ক্ষপ পুনঃ ভাষাই হয় যাৰ বিশ্বাস্থার মনে থাকে কিন্তু সকল কর্থের বিৰুষে প্ৰিয় ইছ সৰ্ব্ব প্রকারে ভ্যাজ্য সেইহেতুক ৰিঙ্গয়ৰে শক্টিভ্যাগ করিয়া সাধ; কৰ্ম্মেত্তে পিন্ধি বিধাৰ করা -ইঞ্চীৰৰ করিয়া গঞ্জৰক্ষকে সেই স্থাৰে পরিভ্যাগ করিয়া श्ननि नूनंक्षाबं चjनॉनं धर्मभूढूंनॉर्थननrत्र निद्रः दृश् श्रबॉब , बक अनादजीबभ#क भांमिब्रां छाब (बांबघा कबिग्राफ़निन ।