পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/২৩৯

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॥ दृिāfेषः । बाद्यति रघुगृrषयॆ जनागंधर्ात् षडाधिताः ततः करालया नाम कुदृिन्या विच्चथ्य चनदषरेम्ऽर्थ घण्टा वादः ततं किं मर्कटाघण्डं वादयति इति चयं विज्ञाय राञ्जr {बश्चापितः देड् बड् िझिषद्धलेृषध्वधः क्रियते। तदाहमेनं घण्डाकर्ष साधथाभि तताराज्ञा तखे धबं दतंकुटुिन्याच मखलं कृत्वा तच गणेशादिपूजागैरवं दर्शवित्वा खयं वानरभियफखान्यादाय बबं भविश्य फलान्याकीर्णानि ततेोघण्डं परिग्धज्य वानराः फलास नावभूवुः कुट्टिनी च घण्डं ऋदीला नगरमागता सर्व जनपूज्याभवत्थतेाइ जवीमि अब्दमाचान्न भेतथमि चादि । ततः खञ्जीवयतः चाबीच दर्शनं कारितः पश्चात्त चैवाविततया चन्यान्यं परमधीत्या चिरं निवसति। ० তাহারপর ঘন্টাক রুষ্ট হইয়া মনুষ্য সকলকে খায় ঘন্টাও BBB BB BBBS BBB BB DDDDDBB BBBBS DD স্তর করালা নামে কুট্টিনী পরামর্শ করিয়া অনুক্ষৰ এই ঘণ্টা बfघT श्ञ्च ऊtद कि बांमटब्रब्रा शकै बाँयाँध्न झेश थां★नि জানিয়া ৱাৰীক্ষে জানাইল হে মহারাজ যদ্যপি কিছু श्रुत्च ব্যয় কর রূৰে মাৰি এই ধন্টপুর্ণকে সাধন কৰি তাহার পর রাখা জ্ঞাহীকে খন দিল কুট্টিৰী মণ্ডল আঁকিয়া পৰেশ্বছি পূজার বড় বাহুল্য দেখাইল আপনি মৰ্কটের